विचारधारा की लड़ाई तो होनी ही है _संविधान के दायरे में लोकतंत्र और सम्प्रभुता को खोजा जा रहा है_

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं)


विचारधारा की लड़ाई आजादी के पहले भी राजनीतिक दलों और नेताओं के बीच होती रही है मगर आजादी की विचारधारा को लेकर इतनी तीखी लड़ाई पीएम नरेन्द्र मोदी के पहले हुए किसी भी प्रधानमंत्री और मोहन भागवत के पहले हुए किसी भी सरसंघचालक के कालखंड में नहीं हुई है जैसी मौजूदा समय में शुरू हो चुकी है। और वह तब जब इस वक्त विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस सबसे कमजोर है तथा सत्ता में रहते हुए बीजेपी तथा आरएसएस सबसे ताकतवर है और इस सबके बीच बिखरे हुए क्षत्रप कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ नजर आते रहते हैं। यह परिस्थिति इसलिए भी पैदा हो रही है क्योंकि अभी तक चुनावी जीत हार पारम्परिक राजनीति के आसरे होती रही है लेकिन पिछले दस सालों में पारम्परिक राजनीति हासिये पर जा चुकी है। क्योंकि पिछले दस सालों में सत्ता ने सभी संवैधानिक संस्थाओं भर को नहीं लोकतंत्र के चारों पायों को सत्तानुकूल कर लिया है। तो सवाल उठता है कि कौन सी लड़ाई कब और कैसे लड़ी जाए।

आजादी के पहले देश में टू नेशन थ्योरी की विचारधारा थी जिसमें एक तरफ मोहम्मद अली जिन्ना और विनायक दामोदर सावरकर थे तथा दूसरी तरफ कांग्रेस, सुभाष चंद्र बोस, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर और वे तमाम लोग थे जो आजादी की लड़ाई लड़े और आजादी दिलाई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इंदौर में अहिल्योत्सव समिति के कार्यक्रम में विवादित बयान देते हुए 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी को राजनीतिक आजादी कहते हुए अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में शहादत देने वाले बलिदानियों के योगदान को सिरे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि भारत को असल आजादी तो अयोध्या के राम मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा के दिन मिली थी। मोहन भागवत ने एक झटके में आजादी के लिए दिए गए उनके बलिदान पर भी मठ्ठा डाल दिया जिनकी फोटो के आगे आरएसएस और भाजपा नतमस्तक रहती है। उसमें भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, महारानी लक्ष्मी बाई, रानी दुर्गावती, महारानी अहिल्या बाई और संघ एवं बीजेपी के मुताबिक आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले सावरकर भी शामिल हैं।

मोहन भागवत के बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि "आरएसएस-बीजेपी को आजादी का दिन इसलिए याद नहीं है क्योंकि उन लोगों ने देश की आजादी में कोई योगदान नहीं दिया"। तेजस्वी यादव ने भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि संघ के लोगों का स्वतंत्रता संग्राम में अपना कोई योगदान नहीं था इसलिए ये अब बाकियों के योगदान को खत्म करने के लिए नये प्रपंच रच रहे हैं"। इसके पहले भी आरएसएस - बीजेपी के छुटभैये नेताओं के द्वारा द्वारा 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी को लेकर विवादास्पद बयानबाजी की जाती रही है, कंगना रानाउत ने तो 2014 में आजादी मिलने का जिक्र किया था जब नरेन्द्र मोदी ने पीएम की कुर्सी सम्हाली थी। वर्तमान समय में भी आरएसएस - बीजेपी की विचारधारा से कांग्रेस ही जूझ रही है शायद इसीलिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कांग्रेस के नई इमारत (मुख्यालय) 9 - 1 कोटला रोड़ (पहले 24 अकबर रोड़ था) में प्रथम प्रवेश के अवसर पर बिना लाग-लपेट सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान पर अब तक का सबसे तीखा हमला करते हुए कहा कि सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा दिये गये बयान के शब्द देशद्रोह वाले हैं इसलिए इन्हें तत्काल गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए। यही बयान अगर किसी दूसरे देश के व्यक्ति ने अपने देश में दिया होता तो तत्काल उसे गिरफ्तार कर लिया गया होता।

राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को भी लपेटे में लेते हुए कहा कि बीजेपी को चुनाव हड़पने में मदद करने के लिए एक झटके में करोड़ों वोट जोड़ दिए जाते हैं। राहुल ने 2024 में हुए लोकसभा और हरियाणा - महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि शिकायत करने पर चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार द्वारा शायराना अंदाज में शायरी करते हुए शिकायतें खारिज कर दी जाती हैं। चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार जिस तरह से सत्ता पार्टी के लिए इलेक्शन में तथाकथित हेराफेरी करते दिखते हैं उससे यह संदेश खुले तौर पर निकल कर आ रहा है कि मसला ईवीएम से आगे निकल कर करोड़ों वोटरों को जोड़ने तक पहुंच गया है और वह भी इस तर्ज पर कि जिससे मौजूदा राजनीतिक सत्ता बेदखल नहीं होने पाये यानी राजनीतिक जीत की मोहर चुनाव से पहले ही उसके साथ जुड़ जाए। भारत की राजनीति में अभी तक विपक्ष जनता से जुड़े जिन मुद्दों को मीडिया के जरिए उठाकर जनता तक पहुंचाता था और उन मुद्दों के आसरे चुनाव जीतने की कोशिश करता था मगर फील्ड से मीडिया पूरी तरह से गायब है। स्ट्रीम मीडिया दिखता भी है तो सत्ता के चौखट पर हाथ जोड़कर विरुदावली का गायन करते हुए ।

सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान के बाद देश में इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि  तिरंगे का बार बार अपमान करने और संविधान को नहीं मानने वालों द्वारा अब तो खुले तौर पर आजादी की तारीख बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा है। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के साथी एक ओर आरएसएस की तारीफ कर रहे हैं तथा बीजेपी जहां तमाम संवैधानिक संस्थाओं में कब्जा करने की कोशिश में लगी हुई है फिर भी शरद पवार पीएम को महाराष्ट्र के मराठी साहित्य सम्मेलन में निमंत्रण देना चाह रहे हैं। ममता बनर्जी भी आरएसएस के गीत गाने से चुकी नहीं हैं। सरसंघचालक मोहन भागवत के विवादास्पद बयान की आंच गृह मंत्री अमित शाह तक भी पहुंचेगी क्योंकि देश विरोधी बयानों पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी गृहमंत्री के अधीन आने वाले गृह मंत्रालय पर है। सवाल यह है कि विपक्षी नेताओं पर जांच ऐजेंसियों के मार्फत मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर जेल भेजा जा रहा है तो क्या गृह मंत्री और उनके अधीन आने वाले संस्थान सरसंघचालक मोहन भागवत को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने का साहस दिखायेंगे।

दिल्ली चुनाव में जिस तरह कांग्रेस को दरकिनार कर इंडिया गठबंधन में शामिल छत्रप कुल्हाड़ी चलाकर उसी डगाल को काटने में लगे हैं जिस पर वे खुद बैठे हैं। उससे साफ संकेत निकल कर आ रहा है कि आने वाले समय में छत्रप और उनकी पार्टियां का भविष्य अंधकारमय है भले ही वे अपने वोट बैंक और अपनी राजनीति बनाये और बचाये रखने के लिए घुटनाटेक कर रहे हैं। जहां अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन गठन को लेकर कहते हैं कि राज्यों में जो ताकतवर होगा सब उसके साथ हर कोई रहेगा, वहीं तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि इंडिया गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए बना था जबकि शरद पवार का कहना है कि गठबंधन लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों के मद्देनजर गठित किया गया है। ममता बनर्जी का अलापना है कि इंडिया एलायंस को नया लीडर चाहिए। जो लोग इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि 18 फरवरी के बाद नया चीफ इलेक्शन कमिश्नर आने से चुनाव आयोग की वर्तमान भूमिका में बदलाव आयेगा तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि सीईसी की नियुक्ति तो मोदी सरकार को ही करनी है। क्या देश इस मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है जहां पर एक वैचारिक लडाई शुरू हो चुकी है जिसके केंद्र में संविधान आकर खड़ा हो गया है और इसके जरिए लोकतंत्र, सम्प्रभुता को खोजा जा रहा है और राजनीतिक संघर्ष के दायरे में चुनाव भी हड़प लिया गया है ?

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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