राज दिखा तो रहे थे आईने में कांग्रेस का राज मगर दिखाई दे रही थी मोदी राज की बदसूरत

संपादकीय। देश की सबसे बड़ी पंचायत में संविधान पर डिबेट हो रही है और पंचायत का मुखिया पंचायत छोड़कर गंगा की लहरों में नौका विहार का आनंद ले रहा है। देश के संविधान का इससे बड़ा अनादर हो नहीं सकता है। सत्तापक्ष की ओर से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने शुरुआत करते हुए कांग्रेसी सरकारों द्वारा किए गए संविधान के छेड़छाड़ खासकर 1975 में लगाई गई इमर्जेंसी का रोना रोया। राजनाथ सिंह के व्यक्तव्य की खास बात यह रही कि वे आईना कांग्रेस को दिखा रहे थे लेकिन आईने में अक्श मोदी सरकार का उभर रहा था। राजनाथ कर तो रहे थे इंदिरा गांधी द्वारा खुले तौर पर लगाए गए आपातकाल के दौरान खुद के जेल में रहने का जिक्र लेकिन सूरत नजर आ रही थी मोदी सरकार द्वारा 2014 के बाद से लगाये गये अघोषित आपातकाल में किये जा रहे अमानवीय अत्याचारों की। जिसमें प्रोफेसर जी एन सांईबाबा को बिना सबूत बिना कसूर जेल में दी गई यातनाएं, 4 साल से जेल में बंद उमर खालिद, 80 वर्षीय स्टेस स्वामी की जेल में ही मृत्यु जिन्हें पानी पीने के लिए भी अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था, सांईबाबा, पत्रकार सिद्दिकी, नताशा नरवाल को उनकी माॅं का देहांत हो जाने पर अंतिम दर्शन - अंतिम संस्कार करने तक की मोहलत नहीं दी गई, विपक्षी दलों के नेताओं के यहां संवैधानिक संस्थाओं पर दबाव बना कर छापे डलवाना, अवैधानिक तरीके से गिरफ्तारियां करवा कर जेल में बंद करना नजर आ रहा था।

कांग्रेस सरकार के दौरान जनता द्वारा निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने का जिक्र तो राजनाथ सिंह ने किया मगर वे भूल गए कि 2014 के बाद मोदी सरकार ने जनादेश को अपमानित करते हुए किस तरीके से जांच ऐजेंसियों का दुरूपयोग करके मध्यप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि - आदि प्रदेशों की सरकारों को गिराया, किस तरह से राजनीतिक दलों में रातों-रात फोड़फाड़ कर बीजेपी की सरकार बनाई गई। दूसरे दलों के दागी नेताओं के बीजेपी ज्वाइन करते ही उन्हें क्लीन किया गया, भृष्टाचार केस की फाइलें बंद की गई। मार्च 2016 में किस तरह से उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को फ्लोर टेस्ट के एक दिन पहले राष्ट्रपति शासन लगाकर बर्खास्त कर दिया गया। जिसे उत्तराखंड हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए खारिज किया और टिप्पणी की थी कि "ऐसा लगता है कि केंद्र की सरकार मैग्नीफाइन ग्लास लेकर राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के मौके तलाश कर रही है। इस तरह तो हर राज्य में 10-15 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दीजिए फिर किसी और को कहिये कि वह शपथ ले ले। नाराज होने से ज्यादा हम इस बात से व्यथित हैं कि केंद्र सरकार इस तरह का बर्ताव कर रही है। आप कोर्ट के साथ खेल खेलने के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं"।

कांग्रेसी शासन के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता खत्म करने की जितनी भी कोशिशें हुई थी उनसे पत्रकारों ने दो - हाथ किये थे और सफलता पाई थी । अदालतों ने भी न्याय किया था । मगर आज उम्मीद टूट रही है। मीडिया को गोदी मीडिया में तब्दील कर मोदी सरकार का भोंपू बनाने का काम किया जा रहा है। गोदी मीडिया द्वारा पत्रकारिता के सिद्धांतों को तिलांजलि देकर एंटी मुस्लिम नफरतें फैलाई जा रही है, फैक न्यूज परोसी जा रही है, विपक्ष की खबरों को गायब किया जा रहा है। देशवासियों की अंतिम उम्मीद अदालतें अपना दम तोड़ रही हैं। यौन उत्पीड़न के आरोपी सीजेआई ने खुद को क्लीन चिट दे दी। आगे चलकर इसी जज की अगुआई वाली बैंच ने संवैधानिक प्रक्रिया को नजर अंदाज कर आस्था के आधार पर रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद का फैसला दिया। जिसका खुलासा उस पीठ के सदस्य रहे और फैसला लिखने वाले जस्टिस तात्कालिक सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने अपने मुखारबिंद से खुद कर दिया। रंजन गोगोई को तो रिटायर्मेंट के चंद महीने बाद ही राज्यसभा में मनोनीत कर दिया गया। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज शेखर यादव ने तो सारी संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर कह दिया कि देश बहुसंख्यक की इच्छा के अनुसार चलेगा मतलब संविधान मर चुका है। जज शेखर ने कठमुल्ला जैसी साम्प्रदायिक टिप्पणी करने से भी परहेज नहीं किया। इसके पहले कलकत्ता हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश तो इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन की और चुनाव लड़कर सांसद बन चुके हैं। आज के दौर में न्याय मिलना पहले की अपेक्षा ज्यादा जटिल और दूभर होता जा रहा है। जनता लाचार है और खतरे अधिक हैं।

राजनाथ सिंह ने कांग्रेस शासन के समय किये गये संविधान संशोधनों की बात तो कही मगर यह नहीं बताया कि कौन - कौन से संशोधन असंवैधानिक और जन विरोधी थे। राजीव गांधी ने 73 वें संशोधन के जरिए पंचायती राज कानून बनाया। मनमोहन सिंह ने 2006 में आर्टिकल 15 में संशोधन करके ओबीसी को प्राइवेट और सरकारी शिक्षण संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया। 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाया जिसकी बुनियाद पर मोदी सरकार 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज दे रही है। 2005 में मनरेगा का कानून बनाया। 2005 में ही सूचना का अधिकार कानून बनाया ताकि आदमी खुद सूचना हासिल कर सके। जिसे मोदी सरकार खत्म करने पर तुली हुई है। जबकि मोदी सरकार के दौरान लाये गये इलेक्ट्रिकल बांड्स को देश की सबसे बड़ी अदालत ने असंवैधानिक और मानवाधिकारों के खिलाफ़ बताकर खारिज कर दिया।

संघ की विचारधारा से अलहदा सोच रखने वाले अच्युत चेतन को याद करते हुए राजनाथ सिंह ने संविधान निर्माण में योगदान देने वाली महिला सदस्यों को याद किया। अच्युत चेतन लिखते हैं कि "भारत का लोकतंत्र अंतिम सांसे ले रहा है। संविधान लोकतंत्र को बचा पाने में सक्षम नहीं रहा। मीडिया लोकतंत्र के चेहरे पर जूते मार रहा है और हमें हार मान लेनी चाहिए" । DEMOCRACY IS BREATHING IT'S LAST IN INDIA, THE CONSTITUTION HAS LITTLE ABILITY TO RESUSCITATE IT, MEDIA HAS ITS THUMPING BOOTS ON DEMOCRACY'S FACE. WE MUST ADMIT DEFEAT AND ALSO ACCEPT OUR COMPLICITY. नंदनी सुंदर के हवाले से कहते हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पूछ सकता है कि वह शपथपत्र देकर कहे कि वह भारतीय संविधान पर विश्वास करता है। WILL THE HONORABLE SUPREME COURT OF INDIA ASK THE RSS TO GIVE AN AFFIDAVIT STATING THAT THEY BELIEVE IN THE CONSTITUTION OF INDIA. मोदी सरकार द्वारा आईटी एक्ट के तहत बनाये गये फैक्ट चैक को बाम्बे हाईकोर्ट ने गलत करार दिया। BOMBAY HIGH COURT RULING THAT DECLARES IT RULE ON FACT CHECK UNIT ILLEGAL. तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने मोदी सरकार द्वारा नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के इस्तेमाल को कानून के राज की भावना के खिलाफ बताया। THIS IS THE DANGER. WE ARE AVERSE TO SEALED COVER JURISPRUDENCE.

कांग्रेस पार्टी की ओर से नई नवेली सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह कहते हुए संसद में मोदी सरकार के खिलाफ़ ही एफआईआर दर्ज करा दी कि "राजा को भेष बदलने शौक तो बहुत है, बदलता भी है मगर वह जनता के बीच जाने और अपनी आलोचना सुनने से डरता है। ये देश कायरों के हाथों में ज्यादा देर तक कभी नहीं रहा। ये देश उठेगा। ये देश लड़ेगा। सत्य मांगेगा। सत्यमेव जयते। _(कायर देश को डराता है। डराने के साथ ही ऐसी लकीर भी खींचता चलता है  जहां लोगों को लगने लगे कि लोकतंत्र यही है)_

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

No comments

Powered by Blogger.