कहाँ लापता हो गए एक फोन से युद्ध रुकवाने वाले अंध भक्तों के पप्पा
संपादकीय। देशवासी तथाकथित अंधभक्तों के उस पप्पा को खोज रहे हैं जो गैर हिन्दूओं के मारे जाने से विचलित होकर अपने एक फोन से युद्ध रुकवाने का दावा करता है मगर ना जाने क्यों अपने ही अंधभक्तों द्वारा सोशल मीडिया पर परोसी जा रही खबरों और वीडियोज जो पडोसी बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ किये जा रहे अमानवीय कृत्यों का बखान करती हैं, उसकी कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। ऐसा लगता है कि उसके अंतर्मन की संवेदनाएं मर सी गई है। वह बांग्लादेश की भगोड़ी प्रधानमंत्री को भारत पनाह तो दे सकता है लेकिन बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा करना तो दूर वहां हो रहे अमानवीय कृत्यों की निंदा तक नहीं कर सकता है। हां उसके तथाकथित अंध भक्तों द्वारा जरूर सोशल मीडिया पर "बांग्लादेश में हिन्दुओं के हालात" शीर्षक बनाकर उत्तेजनात्मक खबरें और वीडियोज वायरल किये जा रहे हैं। यह अलग बात है कि जब उन वीडियोज के फैक्ट चैक किये जाते हैं तो वे बांग्लादेश के ना होकर अपने ही एक "बटोगे तो कटोगे" का नारा लगाने राज्य के मुखिया के शहर के होते हैं जहां सूरजपाल सिंह उर्फ भोलेबाबा उर्फ नारायण साकार हरि नामक कथावाचक के एक सत्संग में मची भगदड़ में एक सैकड़ा से ज्यादा मारे गए लोगों की निकलती है।
इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि बांग्लादेश में भी भारत की तरह अल्पसंख्यकों पर जुल्मों सितम ढाया जा रहा है। मौजूदा हालात में तथाकथित हिन्दूवादी ठेकेदारों द्वारा सोशल मीडिया में बयान जारी करने के अलावा और कुछ नहीं किया जा रहा है। यहां तक कि खुद को धर्म निरपेक्ष कहने वाले बुध्दिजीवियों की भूमिका भी निंदनीय ही है। वे ब्लैक लाइव्स मैटर यानी फिलिस्तीनियों के लिए तो लामबंद हो जाते हैं लेकिन जब पडोसी देश बांग्लादेश में हिन्दुओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों की बात आती है तो वे चुप हो जाते हैं आखिर क्यों?
बांग्लादेश में एक हिन्दू सम्प्रदाय के धर्म गुरु को यह आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया गया कि उसने भगवा ध्वज को बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर लगाया जबकि भारत में ऐसी घटनाएं (तिरंगे और जाति विशेष के झंडे के ऊपर भगवा झंडा लगाना, जाति विशेष के धर्म स्थलों के सामने से जुलूस निकालकर उत्तेजनात्मक नारे लगाना) आये दिन होती रहती हैं। तब ना किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस लगती है ना ही किसी की गिरफ्तारी होती है उल्टे उनकी पीठ थपथपाई जाती है। भारत की यह कडवी सच्चाई है कि यहां तो दल और संगठन विशेष से जुड़े लोगों द्वारा किसी भी जाति (हिन्दू - मुस्लिम) की महिला का बलात्कार और हत्या करने के बाद उनको सजा पूरी होने के पहले ही रिहा भर नहीं किया जाता बल्कि बाकायदा उन अपराधियों को महिमामंडित करते हुए फूल मालाओं से स्वागत सत्कार किया जाता है।
अंध भक्तों के पप्पा अगर बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे तथाकथित अत्याचार पर फोन करके रोक लगाने में निस्सहाय हैं तो वे इतना तो कर ही सकते हैं कि एक जहाज से देशभर में उत्तेजनात्मक नारे लगाते हुए प्रदर्शन करने वाले तथाकथित हिन्दूवादी सूरमाओं को (हर जिले से कम से कम एक) बांग्लादेश भेज दें जिससे वे बांग्लादेश की जमी पर उतरकर हिन्दुओं की रक्षा कर सकें। जहां तक महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन सौपने की बात है उससे कुछ होना - हुबाना नहीं है क्योंकि महामहिम से नाउम्मीदी ही हाथ लगेगी।
1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान पाकिस्तान में फैले आंतरिक संकट के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरा युध्द हुआ था जिसमें पाकिस्तान का एक हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान जिसे बांग्लादेश के नाम से जाना गया अलग होकर 26 मार्च 1971 को अस्तित्व में आया। जिसे भारत ने 6 दिसम्बर 1971 को आजाद देश के रूप में मान्यता दी थी। यह सही है कि जिस तरह भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं उसी तरह बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। 2022 की जनगणना के मुताबिक वहां हिन्दूओं की संख्या 13.1 मिलियन है।
अधिकांश लोकतंत्र की दुहाई देने वाले देशों में सत्ता हथियाने के लिए चुनाव में लोकतांत्रिक तानाशाही का नया राजनीतिक रूप साफ - साफ देखा जा रहा है।कहा जाता है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पर भी धांधली करके चुनाव जीतने को लेकर पब्लिक में अच्छी खासी नाराजगी थी। जनता और छात्र सड़कों पर उतर कर आन्दोलन कर रहे थे। जिसे रोकने के लिए हसीना सरकार ने दमनकारी नीतियों का सहारा लिया, जिसने आन्दोलन को हिंसात्मक बना दिया। परिणाम यह हुआ कि जनाक्रोश में हसीना की सरकार खाक हो गई। जन चर्चा है कि यदि शेख हसीना देश छोड़कर नहीं भागती तो उनके जीवन पर भी संकट आ सकता था। शेख हसीना 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश से भाग कर भारत में शरण लेने दिल्ली के पास बांग्लादेशी सैन्य विमान से हिंडन एयरबेस पहुंची थी। आज की स्थिति में भी वे भारत की शरणार्थी हैं।
वैसे इतिहास बताता है कि बांग्लादेश में सरकार के खिलाफ़ विद्रोह होना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। 1975 में तो बांग्लादेश के जनक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान और उनके पारिवारिक सदस्यों का सामूहिक नरसंहार किया गया था तब भी हसीना सहित बच गये लोगों को भारत ने पनाह देकर जिंदा रखा था। इसी तरह 2009 में भी बांग्लादेश राइफल्स के विद्रोह के वक्त भी भारत ने ही सैन्य अशांति को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कहा जाता है कि अमरीकी प्रशासन लीक हुए एक दस्तावेज से खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करने की साजिश अमरीकी सरकारी एजेंसियों द्वारा रची गई थी। इन ऐजेंसियों ने ही बांग्लादेशी नागरिकों, सरकारी अधिकारियों का इस्तेमाल कर बगावत को जन्म दिया है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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