एक और राजनीतिक पार्टी की पैदाइश _कल तक जो बनाता था दूसरे को दूल्हा अब खुद चढे़गा घोड़ी_

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) 

राजनीति विश्लेषण। यूं तो भारत में जब भी कोई जनाधार वाला  नेता अपनी पार्टी से बाहर का रास्ता देखता है तो वह एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन कर लेता है। जैसे शरद पवार, ममता बनर्जी, लालू यादव, नितीश कुमार आदि । कांग्रेस के खिलाफ अन्ना हजारे द्वारा चलाए गए प्रायोजित आंदोलन से निकले महत्वाकांक्षी अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (आप) बनाई। नये भारत में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अकेला ऐसा राजनीतिक दल है जिसने अपने पहले चुनाव में ही देश की स्थापित पार्टी कांग्रेस और भाजपा को हासिये पर धकेल कर दिल्ली विधानसभा पर कब्जा करते हुए हैट्रिक बनाई । ऐसा करिश्मा इसके पहले कोई नवगठित राजनीतिक दल नहीं कर पाया।

परम्परागत चली आ रही राजनीति को मार्केटिंग (बाजारीकरण) के आवरण में लपेट कर पेश करने का श्रेय प्रशांत किशोर पांडे (पीके) को दिया जा सकता है। जिसने बीजेपी, कांग्रेस, जेडीयू - आरजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव में राजनीतिक रणनीति बनाकर इन दलों को सत्तानशी कराने में सहयोग दिया। राजनीति का नशा सिर चढ़कर बोलता है। जिसका नजारा गत दिवस दिखाई दिया जब प्रशांत किशोर पांडे ने जन सुराज पार्टी नामक एक नये राजनीतिक दल का गठन किया।

राजनीति के पहाड़े में कभी भी दो दूनी चार नहीं होते यहां तो दो दूनी तीन - दो दूनी पांच (तिया - पांचा) होता रहता है। दूसरों के लिए गुणा-भाग कर सफलता पाना अलग बात है क्योंकि उस सफलता में आप भर की रणनीति काम नहीं करती उस सफलता में उस राजनीतिक दल की अपनी रणनीति भी काम करती है। मगर जब केवल अपने लिए रणनीति बनाकर राजनीतिक अखाड़े में उतरते हैं तो उसमें आप शतप्रतिशत सफल होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं होती। कल तक आप जिसके पाले में पैड वर्कर के रूप में खड़े होकर काम कर रहे थे आज आप उसके सामने बतौर प्रतिद्वंद्वी खड़े होते हैं।

पीके ने अपनी जन सुराज पार्टी की किस्मत को 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में आजमाने की बात कही है। उसने बिहार की 243 सीटों पर कैंडीडेट खड़ा करने का मंसूबा पाला है। एक साल के भीतर इतनी सारी तैयारी वह भी राज्य में स्थापित राजनीतिक घाघों के बीच आसान काम नहीं है। बिहार के रोहतास जिले से ताल्लुक रखने वाले प्रशांत किशोर पांडे ने अपनी जन सुराज पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष का दायित्व मधुबनी निवासी मनोज भारती (पूर्व भारतीय राजनयिक) को सौंपा है। पार्टी लांचिंग कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेन्द्र प्रसाद यादव, राजनयिक पवन वर्मा की सहभागिता भी थी। पार्टी फाउंडर प्रशांत किशोर ने कहा कि वे बिहार में चली शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन के पक्षधर हैं जिसके लिए वे बिहार में लागू शराबबंदी को हटाने का इरादा रखते हैं। मतलब तो यही निकलता है कि वे शराब की कमाई से शिक्षा सुधार करेंगे कुछ गले नहीं उतरता। अनैतिक कमाई में नैतिक उत्थान संभव नहीं है। पिछले अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि शराब के सिर शिक्षा नहीं शिक्षा के सिर चढ़कर शराब ही नृत्य करेगी। पीकेपी ने राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार, गवर्नेस में सुधार और पारदर्शिता को भी पार्टी के ऐजेंड में रखने की बात कही है। अभी तो जन सुराज पार्टी को अपने चुनाव चिन्ह की दरकार है। प्रशांत ने अभी तक बैनर के रूप में महात्मा गांधी और उनके चरखे का उपयोग किया है। तो हो सकता है कि वे चुनाव आयोग से ऐसा कुछ ही मांग सकते हैं मगर चुनाव आयोग के चुनाव चिन्हों वाली लिस्ट में न तो महात्मा गांधी हैं न ही उनका चरखा। तो हो सकता है कि वे परोक्ष रूप से गांधी से जुड़ी छड़ी की मांग कर सकते हैं।

बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में 20 मार्च 1977 को डाक्टर श्रीकांत पांडे के घर जन्मे प्रशांत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बक्सर तथा उच्च शिक्षा (इंजीनियरिंग) हैदराबाद से पूरी करने के बाद 8 साल तक यू एन में नौकरी की। प्रशांत किशोर ने 2011 में नौकरी छोड़कर चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम करना शुरू किया। प्रशांत किशोर (पीके) को राजनीति में ब्रांडिंग दौर की शुरूआत करने वाला माना जाता है। पीके ने 2013 में इंडियन पालिटिकल एक्शन कमिटी (IPAC), 2014 में सिटीजन फार अकांउटेबल गर्वेंस बनाई। प्रशांत को चुनावी रणनीतिकार के रूप में पहचान 2014 में मिली जब उसने नरेन्द्र मोदी की ब्रांडिंग करते हुए बीजेपी को दिल्ली का तख्तोताज दिलाया। बिहार में नितीश और लालू के गठबंधन वाली सरकार बनाने के लिए भी प्रशांत की सेवाएं ली गई। 2017 में अमरिंदर सिंह (पंजाब), 2019 में जगनमोहन (आंध्र प्रदेश), 2021 में ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), 2020 में अरविंद केजरीवाल (दिल्ली), 2021 में एम के स्टालिन (तमिलनाडु) ने भी अपने राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर को हायर किया था।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

रवि कुमार गुप्ता 

( Editor-in-Chief )

( जन आवाज )

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