रीढ़ विहीनता के फंदे में फंस गई निर्मला, झटके पर झटके दे रही अदालतें

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) 


2024 के आम चुनाव के मोदी भाजपा केंचुआ से किए गए गुणकतान के बदौलत किसी तरह सबसे बड़ी पार्टी बन तो गई और एनडीए के कांधे का सहारा लेकर नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी हथिया ली क्योंकि आज तक नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की संसदीय दल ने अपनी बैठक में नेता नहीं चुना है कारण यह है कि नेता चुनने के लिए संसदीय दल की बैठक ही नहीं होने दी गई। अपने तीसरे कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने उस रुतबे के साथ वापसी नहीं की जो उन्होंने 2019 में की थी।

नरेन्द्र मोदी के दो कार्यकाल की तानाशाही पर सबसे जबरदस्त प्रहार सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के पहले यह आदेश देते हुए कर दिया था कि 2018 में लांच की गई इलेक्ट्रोरल बांड्स योजना असंवैधानिक है और इस रोक लगा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तो इलेक्ट्रोरल बांड्स बेचने वाले स्टेट बैंक को सारा डेटा सार्वजनिक का हुक्म दिया था। जिसे रोकने के लिए मोदी सरकार ने अपने सारे घोड़े दौड़ा दिए थे लेकिन आखिर में उसे हथियार डालने पड़े। 21 मार्च 2024 जब सारा डेटा सामने आया तो पता चला कि 2018 से 2023 के बीच 771 कम्पनियों ने 11484 करोड़ रुपये के बांड्स खरीदे हैं। उनमें ट्रेडिंग कम्पनियों ने सबसे ज्यादा 2955 करोड़ रुपये सियासी दलों पर निछावर किए हैं। डेटा सार्वजनिक होने के बाद जुलाई 2024 में ही कार्पोरेट और सियासी दलों के बीच हुए लेनदेन की जांच एसआईटी से कराने के लिए याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। इस चुनावी चंदे के शिल्पकार मोदी सरकार की पहली पारी के वित्त मंत्री मरहूम अरुण जेटली थे जिन्होंने 2018 में इस योजना को लांच किया था। इस चुनावी चंदे की योजना को पैदा होते ही चुनौती मिलने लगी थी। नामी एडवोकेट प्रशांत भूषण ने तो पहले दिन से ही इसे असंवैधानिक बताया था।

इसी इलेक्ट्रोरल बांड्स ने अब मोदी सरकार में वित्त मंत्री की तीसरी पारी खेल रही शुध्दतावादी (लहसुन प्याज से परहेज करने वाली) निर्मला सीतारमन को अपने लपेटे में ले लिया है। भारतीय इतिहास में निर्मला सीतारमन ऐसी पहली वित्त मंत्री हो गई हैं जिनके ऊपर कुछ इस तरह का आरोप लगा है कि वे भृष्ट हैं, कम्पनियों से बलात बसूली करने के लिए बसूली गैंग चलाती हैं, बसूली गैंग चलाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का इस्तेमाल करती हैं। जनता से परदेदारी करती हैं। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, हेमंत सोरेन को जेल की सलाखों के पीछे भेजने वाला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) बसूली गैंग की सरगना के लिए गुर्गे (लठैत) का काम करता है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर भाजपा ने राज्यपाल थावर चंद गहलोत के आदेश पर एफआईआर दर्ज कराई और जश्न मनाते हुए सीएम सिद्दारमैया का इस्तीफा मांग रही है उसी कर्नाटक से न्यायालय के जरिए मोदी भाजपा के लिए बेहद बुरी खबर आई है और अब सीएम सिद्दारमैया मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का इस्तीफा मांग रहे हैं। भाजपा के भितरखाने सन्नाटा पसरा पड़ा है। वह बदले की राजनीति का आरोप लगाने की हालत में भी नहीं है। कहा जाता सकता है कि न्यायालय का आदेश निर्मला सीतारमन के साथ ही नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के गले की फांस बन गया है। इस मुद्दे पर हो रहे और होने वाले चुनावों में होने वाली सियासत भाजपा को बैकफुट पर धकेलने के लिए पर्याप्त होगी।

कर्नाटक की जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदेश अय्यर ने अप्रैल 2024 में 42 वीं एसीएमएम कोर्ट (जनप्रतिनिधियों की विशेष अदालत) में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा, कर्नाटक भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नलिन कुमार, बी वाई विजयेंद्र के ऊपर इलेक्ट्रोरल बांड्स के जरिए जबरिया उगाही (बसूली) करने व अपराधिक साजिश रचने का आरोप लगाते हुए मामला दायर कर इनके खिलाफ पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिए जाने की प्रार्थना की थी। सुनवाई के पश्चात पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव कोर्ट ने फरियादी जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदेश अय्यर की निजी शिकायत (पीसीआर) में लगाये गये आरोपों को सारगर्भित मानते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन, जयप्रकाश नड्डा, नलिन कुमार, बी वाई विजयेंद्र और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों के खिलाफ धारा 384 (जबरन बसूली), 120 बी (अपराधिक साजिश) 34 (सामान्य इरादे से कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कृत्य) के तहत बेंगलुरु के तिलक नगर थाने की पुलिस को आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। आगामी सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी।

अदालती सूली के फंदे में निर्मला सीतारमन और जयप्रकाश नड्डा का गला तो फंस गया मगर सवाल है कि क्या निर्मला सीतारमन की इतनी हैसियत है कि वे अपने बूते इलेक्ट्रोरल बांड्स की गोपनीयता की आड़ में तमाम लोगों को जबरिया चुनावी चंदा वाले बांड्स को खरीदने के लिए मजबूर कर सकें ? क्या अप्रैल 2019 से अगस्त 2022 के बीच धनकुबेर व्यवसाई अनिल अग्रवाल फर्म को 230 करोड़ रुपये और अरविंदो फार्मेसी को 49 करोड़ रुपये के चुनावी बांड्स खरीदने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों का उपयोग करने के पीछे केवल निर्मला थीं ? इसका उत्तर है कदापि नहीं। यह अलग बात है कि निर्मला बलि का बकरा बन गई हैं। मोदी सरकार और भाजपा पार्टी के भीतर किसी की इतनी औकात नहीं है कि वह नरेन्द्र मोदी - अमित शाह के ईशारे बिना सांस भी ले सके।

मोदी - शाह की जोड़ी ने जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं को अपनी गिरफ्त में लिया हुआ है तथा न्यायपालिका में भी कुछ हद तक अपनी दखलंदाजी बढ़ाई है उससे इन्हें इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि कर्नाटक की अदालत इस तरह का फैसला सुना सकती है। यह मोदी - शाह के लिए लगातार दूसरा झटका है। इसके पहले हाल ही में बाॅम्बे हाई कोर्ट ने मोदी सरकार के द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नकेल कसने के लिए लाये गये इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (संशोधित) नियम 2023 को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और 191-जी (पेशे का अधिकार) के प्रावधानों का उल्लंघन मानते हुए निरस्त कर दिया है। जिससे फैक्ट-चैक यूनिट (एफसीयू) कचरे में चली गई है।

हाल ही में जिस तरह की खबरें आ रही हैं इससे लगता है कि मोदी - शाह की मुठ्ठी में फिसलन होने लगी है। हरियाणा, जम्मू-कश्मीर के चुनावी रण से आ रही बयार मोदी - शाह के अनुकूल नहीं है। जिसकी झलक अमित शाह के महाराष्ट्र दौरे में भाजपाईयों को धमकी भरे उद्बोधन में दिखाई दी। पितृ संगठन आरएसएस भी मोदी - शाह को ठिकाने लगाने की योजना पर काम कर रहा है। हो सकता है कि इसकी झलक नवम्बर में ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में दिख जाए। जहां मोदी - शाह नड्डा जैसे किसी खैरख्वाह को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं वहीं आरएसएस अपनी विचारधारा के कट्टरपंथी को अध्यक्ष बनाना चाहता है। जैसे संकेत हैं भाजपा अध्यक्ष के रूप में आरएसएस की पहली पसंद संजय जोशी, दूसरी वसुंधरा राजे सिंधिया है। अगर ऐसा हुआ तो तय है कि नरेन्द्र मोदी को अपने ही खोदे गढ्ढे में गिरना होगा (जो राजनीतिक जीवनदाता गुरु लालकृष्ण आडवाणी के लिए खोदा गया था)। तब विष्णु, मोहन, भजन का क्या होगा कालिया !

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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