आ बैल मुझे मार _के चक्रव्यूह में फंस गये सीजेआई !
खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं)
देखने में आता है कि राजनीति में धर्म का उपयोग करने में सिध्द हस्त नरेन्द्र मोदी ऐसा एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देते जिसमें राजनीतिक लाभ की लेशमात्र भी गुंजाइश दिखाई देती हो। फिर भले ही राजनीतिक मर्यादाओं की अर्थी निकले या सामने वाले के सामने विकट विपरीत परिस्थिति उत्पन्न हो।
ऐसा ही अवसर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों तब लगा जब भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने अपने घर पर विराजमान विघ्नहर्ता भगवान गणेश के पूजन में पीएम नरेन्द्र मोदी को सद्भावनावश आमंत्रित कर लिया। हरदम आपदा में अवसर की तलाश में रहने वाले पीएम भला इस अवसर को कैसे छोड़ देते वह भी तब जब निकट भविष्य में महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। (यहां यह ध्यान रखें कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड महाराष्ट्रियन हैं)। समय - परिस्थिति - काल के हिसाब से वेषभूषा धारण करने वाले मोदी महाराष्ट्रियन टोपी लगाकर पहुंच गए चंद्रचूड के घर। फोटो के शौकीन की फोटो भी खींची गई और सार्वजनिक भी की गई।
चंद्रचूड के घर पर पधारे मोदी की पूजन फोटो सार्वजनिक होते ही राजनीतिक तूफान आना था और आ गया। जहां विपक्षी दल सीजेआई - पीएम मिलन को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए अशुभ मान रहा है वहीं सत्तापक्ष के चेहरे चमक रहे हैं। लगता है कि विघ्नहर्ता भगवान गणेश ने तो सीजेआई डीवाई चंद्रचूड का विघ्न हरने के बजाय उनके सामने विघ्न ही खड़ा कर दिया है। माना जाता है कि पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा न्यायिक विश्वसनीयता को पहुंचाई गई क्षति की बहुत हद भरपाई करने में सफल रहे हैं डीवाई चंद्रचूड। मगर सीजेआई की फिनिशिंग लाईन टच करने के पहले (रिटायर्मेंट) ही चंद्रचूड की साफ सुथरी छवि पर कालिमा के बादल छा गये हैं।
चंद्रचूड के सामने ठीक वैसी ही स्थित उत्पन्न हो गई है जैसी लंका विजय के उपरांत अशोक वाटिका से लाई गई माॅं सीता के सामने थी खुद को पाक-साफ बताने के लिए अग्नि परीक्षा देने की। जबकि गलती सीता की नहीं रावण की थी। सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ में मोदी सरकार के कई केस सुनवाई के लिए लिस्टेड हैं। अब सीजेआई डीवाई चंद्रचूड का हर फैसला उनके लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा - खुद की ईमानदार छबि को बनाये - बचाये रखने के साथ - साथ आम आदमी के मन में न्यायिक विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए।
राजनीतिक क्षेत्र के साथ ही न्यायिक जगत से भी केर - बेर मिलन पर तीखी आलोचनात्मक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। शिवसेना (उध्व) ने तो बकायदा बयान जारी कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की सुनवाई चल रही है। उसमें पीएम एक पार्टी है । क्या सीजेआई न्याय कर पायेंगे ? हमें तारीख पर तारीख मिलती है। उन्हें इस केस से खुद को अलग कर लेना चाहिए। कहा जा सकता है कि सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ के द्वारा मोदी सरकार के पक्ष में दिया जाने वाला हर एक फैसला सीजेआई की ओर संदेहास्पद ऊंगली उठाता हुआ दिखाई देगा !
क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
1997 में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने न्यायिक जीवन के मूल्यों की पुनर्स्थापना करते हुए न्यायाधीशों को उनके पेशेवर और व्यक्तिगत आचरण के लिए मार्गदर्शिका निर्धारित की है । जिसके अनुसार उच्च न्यायपालिका के सदस्यों के व्यवहार और आचरण से न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों का विश्वास सतत बना रहना चाहिए। इसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के न्यायाधीशों का कोई भी कार्य चाहे वह आधिकारिक हो या व्यक्तिगत जिससे निष्पक्षता की धारणा की विश्वसनीयता कम होती हो टाला जाना चाहिए।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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