मैं - मेरा - मुझे के त्रिकोणीय चक्रव्यूह में घूमता रहा पीएम नरेन्द्र मोदी का भाषण
खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) _
फिर साबित हुआ मोदी का इतिहास नाॅलेज कितना स्तरीय है_
कटनी। एक बार फिर पीएम नरेन्द्र मोदी ने आजादी की 78वीं सालगिरह पर दिल्ली के लालकिले से देशवासियों को संबोधित करते हुए स्तरहीन उद्बोधन दिया। जिस तरह पीएम मोदी ने चुनाव के दौरान "म" शब्द का उपयोग मणिपुर छोड़कर मंदिर, मस्जिद, मुल्ला, मांस, मछली, मदिरा, मुजरा के लिए किया था आजादी की वर्षगांठ के अवसर पर भी उसी "म" शब्द का उच्चारण मैं, मेरा, मुझे के त्रिकोण में लालकिले पर खड़े होकर करते रहे। फिल्म कलाकार गोविंदा अभिनीत फिल्म "राजाबाबू" के बहुरुपिया का मंचन तो पीएम मोदी पिछले दस सालों से करते आ रहे हैं इस बार तो उन्होंने फिल्म अदाकारा ललिता पवार और रामायण की पात्र मंथरा की यादें ताजा कर दी। नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में एकबार भी स्वतंत्रता संग्राम के नायकों महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस, भीमराव अम्बेडकर, भगतसिंह, चन्द्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस, सुखदेव, राजगुरु आदि में से किसी का भी नाम नहीं लिया। इसे कृतघ्नता ना कहा जाए तो फिर क्या कहा जाए। मोदी इतने आत्म मुग्ध होकर बोल रहे थे जैसे कि उन्होंने ही देश को बनाया है जबकि हकीकत यह है कि देश ने उन्हें और उन जैसों को बनाया है। आत्म मुग्धता में वे देश को मिली आजादी को ही दुर्भाग्य से जोड़ गये।
कोविड वैक्सीनेशन का जिक्र करते हुए उन्होंने गंगा के किनारे तैरती लाशों, कफन के लिए कम पड़ गए कपड़ों, लाशें दफन करने के लिए कम पड़ते श्मशानघाट, चिताओं के लिए कम पड़ती लकड़ियों, अस्पतालों में कम पड़ रहे बिस्तरों और दवाईयों के घावों को कुरेद दिया। देशवासियों के आगे पीएम नरेन्द्र मोदी का वो चेहरा झलकने लगा जब वो देशवासियों को अनाथ छोड़कर अपने राजमहल में मोर को दाने चुगा रहे थे। तब पीएम नरेन्द्र मोदी की दलाली में लिप्त मीडिया तक को भी लिखना पड़ा था "मिसिंग प्राइम मिनिस्टर"। मोदी देश को परिवारवाद से मुक्ति दिलाने की बात कहना कभी नहीं भूलते मगर मुक्ति की शुरुआत भी नहीं करते। नरेन्द्र मोदी को देश के सामने बतौर उदाहरण रामविलास पासवान के बेटे को अपने मंत्रीमंडल से, सुषमा स्वराज की बेटी को सांसद से, राजनाथ सिंह के बेटे को विधायक से और अमित शाह के बेटे को बीसीसीआई से तत्काल हटा देना चाहिए। मगर मोदी के परिवारवादी लगाव का इजहार तो उस दिन शिखर पर दिखाई दिया था जब वे सैकड़ों बेटियों को रौंदने वाले उज्जवल रैंवन्ना के लिए वोट मांग रहे थे। मगर वे तो केवल "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" वाली बात करते हैं।
बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर ज्ञान बघारते समय वे यह भूल गए कि देश के अल्पसंख्यकों के प्रति उनकी पार्टी का नजरिया क्या है ? आपका एक मंत्री बीच बाजार में नारे लगाता है "गोली मारो सालों को", संसद के भीतर भाजपा का एक सांसद एक मुस्लिम सांसद को "कटुआ, मुल्ला, उग्रवादी बोलता है और आप चुप रहते हैं। आपकी कथनी और करनी का फर्क पूरी दुनिया देख रही है। कितना अजीब लगता है जब सरकार की नीतियों के कारण 180 देशों के बीच प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 159 पायदान पर खड़ा है और देश का प्रधानमंत्री मीडिया को ग्लोबल करने की बात करता है। सच तो यह है कि उनका वैभव उनके पैरों तले पड़े मीडिया के दम पर ही कायम है। एक तरफ पीएम देश में ऐसे शिक्षण संस्थान होने की बात करते हैं जिससे देश के बच्चों को पढाई के लिए दूसरे देशों में ना जाना पड़े तो दूसरी ओर देश के टाप शैक्षणिक संस्थानों में शामिल जेएनयू, जेएमयू, एचयू को दहशतगर्दी, आतंकवाद, देशद्रोह से जोड़ा जाता है। शिक्षा और वैचारिक विविधता को लेकर पीएम की कुंठित मानसिकता का ही परिणाम है लोगों को "अर्बन नक्सल" कहना।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर एकबार फिर साबित कर दिया कि उनका इतिहास नाॅलेज उनके अंग्रेज़ी नाॅलेज की तरह है कि "20 - 22 साल के एक नवजवान बिरसा मुंडा ने 1857 की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लिया था जबकि बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को हुआ था। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर पीएम नरेन्द्र मोदी का लालकिले की प्राचीर से चिंता जताना हाथी के खाने और दिखाने वाले दांतों की तरह ही लगा। आजाद भारत के 78 साल में महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार, यौन उत्पीड़न, सामूहिक बलात्कार जैसे कुकृत्यों के मामलों में सबसे असंवेदनशील प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं नरेन्द्र मोदी। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी इनका रिकार्ड बदतर ही रहा है। इनने, इनकी सरकार ने यहां तक कि इनकी पार्टी ने बलात्कारियों को बचाने और संरक्षित करने का ही काम किया है और आज भी कर रहे हैं। बलात्कार और हत्या के सजा याफ्ता राम रहीम पर तो भाजपा सरकार इतनी मेहरवान है कि आये दिन राम रहीम को पैरोल - फरलो पर छोड़ देती है वह भी खासकर चुनाव के आसपास। संयोग देखिए राम रहीम के बाहर आते ही हरियाणा विधानसभा के चुनाव की घोषणा कर दी गई।
महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपी तात्कालिक भाजपाई सांसद और भारतीय कुश्ती संघ अध्यक्ष ब्रजभूषण को तो पीएम नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह संरक्षित किया शायद ही किसी पीएम ने किया होगा। इतना ही नहीं पीडित महिला पहलवानों का भाजपाईयों द्वारा चरित्र हनन किया गया, उन्हें अश्लीलता की हदें पार करते हुए गालियां दी गई। दिल्ली पुलिस द्वारा तब महिला पहलवानों का मानमर्दन किया गया जब पीएम नरेन्द्र मोदी हाथों में संगोल थामे पुराने संसद भवन को छोड़कर नये संसद भवन जा रहे थे। हाथरस में तो मानवीय संवेदनाओं को कुचलते हुए अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी की भाजपाई सरकार ने अपनी जाति के बलात्कार के आरोपियों को बचाने के लिए बलात्कार के बाद मार डाली गई दलित लड़की की लाश को रात में ही जला दिया गया जबकि पीड़िता का परिवार मना करता रहा। उन्नाव रेप कांड के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर तथा कठुआ की मासूम बच्ची के साथ किये गये सामूहिक बलात्कार और हत्या करने वालों को बचाने के लिए तो भाजपा और उससे जुड़े संगठनों ने सड़कों पर जुलूस तक निकाले। पीड़िता, परिवारजनों और गवाहों को प्रताड़ित किया गया। यहां तक कि पीड़िता के पिता को पुलिस कस्टडी में मार डाला गया। यौन उत्पीड़क चिन्मयानंद को बचाने के लिए तो यूपी सीएम बिष्ट उर्फ योगी की सरकार ने तो केस ही वापिस ले लिया। बिलकिस बानो के साथ किये गये सामूहिक बलात्कार और परिवार जनों की हत्या करने वाले सजायाफ्तों को सजा पूरी होने के पहले ही रिहा कर दिया गया और जिस तरह से भाजपाईयों ने बलात्कारियों और हत्यारों को सेलीब्रेटी की तरह पेश कर सम्मानित किया उसने मानवीयता को ही शर्मशार कर दिया। मणिपुर में हुए बलात्कार और नरसंहार की निंदा तो दूर पीएम नरेन्द्र मोदी के मुंह से आज तक "म" शब्द तक नहीं निकला।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के दिन वह भी लालकिले से आरोपियों को सजा दिलाने और उसका प्रचार - प्रसार करने वाले बयान को महिलाओं के प्रति गंदा, घटिया और फूहड़ मजाक ही कहा जाएगा ! देश के कुछ भाजपाई राज्य तो बलात्कारियों और हत्यारों के लिए सुरक्षित ठिकाने से बन गये हैं। बस शर्त इतनी है कि वह भाजपाई विचारधारा का सवर्ण हिन्दू हो ! मैं, मेरा, मुझे संरक्षित करने के लिए एकबार फिर पीएम नरेन्द्र मोदी ने "वन नेशन - वन इलेक्शन" का जिक्र किया जिसके लिए संविधान पर बुलडोजर चलाया जायेगा और बदलाव का लबादा पहनाया जायेगा।
_चलते - चलते_
लालकिले में नेता प्रतिपक्ष की बैठक व्यवस्था को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा
_धुआं दर्द बयाँ करता है और राख कहानियां छोड़ जाती है_
कुछ लोगों की बातों में दम नहीं होता और कुछ लोगों की खामोशी निशानी छोड़ जाती है
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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