पहले सत्ता के तराजू में तौले जाते हैं रेप - मर्डर फिर नफा-नुकसान देखकर उठाई जाती है आवाज

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) 

कटनी। लगभग बारह साल बाद एकबार फिर रेप और मर्डर को लेकर देश गुस्से में है मगर इस बीच ना जाने कितने रेप और मर्डर होने की खबरें दफन कर दी गईं। समय के साथ बदलते राजनीतिक परिवेश में बलात्कार और हत्या भी सियासी रंग ले चुकी है। (16 दिसम्बर 2012 की रात में हुआ था चलती सिटी बस में बच्ची के साथ बलात्कार जिसे नाम दिया गया था निर्भया कांड़) । देखने में आता है कि दिल्ली की सरकार वाली पार्टी उसी बलात्कार और हत्या को हवा देती है जहां उसे सियासी लाभ दिखाई देता है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि निर्भया कांड़ के दौरान सड़कों पर उतरे लोग कठुआ और हाथरस कांड़ में बलात्कारियों के साथ खड़े नजर आये थे । देशभर में हररोज अधिकारिक तौर पर लगभग एक सैकड़ा रेप की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है। सरकार, मीडिया, अदालतों की सेहत पर पड़ने वाला फर्क सियासी रंग में रंगा होता है। सामुदायिक आक्रोश भी दलीय-धार्मिक-जातीय-आर्थिक आधार पर व्यक्त किए जाते हैं।

राजनीतिक दलों की नजर में वोट दिलवाने वाली - "बेटी" है। हजार - पन्द्रह सौ रुपैया के खैरात की हकदार महिलाएं "लाड़ली बहना - लाड़ली लक्ष्मी" हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर बंगाल की ट्रेनी डाॅक्टर बेटी और बिहार में नोची, मारी गई लड़की बेटी की जगह दलित क्यों ? लगता है ईश्वर ने दलित, गरीब, आदिवासी महिलाओं को लुटने - खसुटने, नुचने के लिए ही धरती पर भेजा है। बंगाल की बेटी के क्षत-विक्षत शव को रौंदकर बीजेपी और विपक्ष सियासी चौसर बिछा रहा है। वैसे भी दुनिया की हर जंग औरत के शरीर पर ही लड़ी गई है। फिर ये तो सत्ता की लड़ाई है। पितृ सत्ता की - मूंछों की।

ममता बनर्जी के राज्य में आर जी कर मेडिकल कॉलेज (R G KAR MEDICAL COLLEGE AND HOSPITAL) की ट्रेनी डाॅक्टर के साथ हुए रेप-मर्डर को लेकर देशभर में आक्रोशित प्रदर्शन हो रहे हैं। देशभर के डाॅक्टर अपने लिए सुरक्षा कानून बनाये जाने की मांग कर रहे हैं। मगर जिस तरह की जांच रिपोर्ट की प्रारंभिक खबरें सामने आ रही है वह तो मेडिकल कॉलेज के भीतर ही संचालित हो रहे घिनौने कारनामों को उजागर करती हुई मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को ही कटघरे में खड़ा करती हुई दिखाई दे रही है। खैर।

बंगाल की घटना की आंच धीमी तक नहीं हुई थी कि बिहार के मुजफ्फरपुर, उत्तराखंड के उधमसिंह नगर और मुंबई में घटित घटना सामने आ गई। बिहार के मुजफ्फरपुर में 14 साल की एक दलित लड़की का उसके माता-पिता के सामने अपहरण किया गया। इसके बाद उस दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इतने पर भी दरिंदों का मन नहीं भरा तो उसके एक स्तन को ही काट दिया गया और प्राइवेट पार्ट को चाकू से गोदा गया और आखिरी में उसे मार डाला गया। इसी तरह उत्तराखंड के उधमसिंह नगर में एक नर्स के साथ पहले गैंगरेप फिर मर्डर कर दिया गया। मुंबई में 9वीं पढ़ रहे एक छात्र ने 3 साल की बच्ची के साथ रेप कर दिया।

सवाल यह है कि बंगाल की घटना को लेकर आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है मगर बिहार, उत्तराखंड और मुंबई की घटना को लेकर खामोशी क्यों ? अगर यह कहा जा रहा है कि बंगाल की घटना को लेकर भाजपा इसलिए आक्रामक है कि वहां ममता बनर्जी की तृणमूल-कांग्रेस सत्ता में है और भाजपा वहां शासन पाने के लिए लालायित है। बिहार, उत्तराखंड और मुंबई में घटित घटनाओं को लेकर वह अंध-मूक-बधिर की हालत में इसलिए है कि बिहार में वह नीतेश कुमार की जेडीयू के साथ सत्ता में भागीदार है, उत्तराखंड में उसकी खुद की सरकार है और मुंबई में भी वह शासनाधीन है - तो क्या गलत कहा जा रहा है।

अपनी गैरत को दिल्ली में बैठी देश की सरकार के पैरों तले दबा चुका मीडिया भी बंगाल रेप - मर्डर पर तो विधवा विलाप कर रहा है परंतु बिहार, उत्तराखंड, मुंबई, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, मणिपुर सहित भाजपा शासित प्रदेशों में होने वाले रेप - मर्डर मीडिया की आंखों में रासलीला दिखाई देते हैं। अब तो लोग धिक्कारने लगे हैं सरकार के महिला सशक्तिकरण को और लानत भेजने लगे हैं सरकार के बेटी बचाओ अभियान पर। महिलाओं के बीच से ही आवाजें आ रही है कि महिला सशक्तिकरण के कागजों पर मूत रही है सरकार।

लोगों का कहना है कि जबसे भाजपा सरकारों ने बलात्कारियों को संस्कारी बताकर उनका महिमामंडन करने की परंपरा शुरू की है तबसे रेप और मर्डर की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश की सरकारों द्वारा जाति - धर्म देखकर बुलडोजर चलाये जा रहे हैं। धर्मवाद का जहर घोलकर देश के भविष्य को नफरत के दलदल में धकेला जा रहा है। बलात्कारी - हत्यारे सजायाफ्ता बाबाओं को खुली हवा में सांस लेने के लिए सलाखों से बाहर भेजा जा रहा है, राजनीतिक बलात्कारियों - हत्यारों को सत्ता संरक्षित किया जा रहा है, जिस तरह से देशभर में फीमेल जेंडर के साथ मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं घटित हो रही हैं और देश के पीएम अंध-मूक-बधिर की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं तो फिर मध्यम वर्गीय समाज को महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों पर आवाज उठाने की जरूरत है। सरकार बदलने और कानून कड़ा कर देने भर से समस्या हल होने वाली नहीं है। इससे बलात्कार नहीं रुकेंगे। समस्या महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की है। महिलाओं के साथ होने वाले यौनाचार के लिए जो सोच, जो व्यवहार जिम्मेदार हैं उन्हें बदलने की है। शुरुआत घर से करनी होगी।

कटनी से अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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