पेरिस में गोल्ड गवां कर लौटा भारत

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) 


शिखर पर रहकर रचे जाते हैं इतिहास

पेरिस में गोल्ड गवां कर लौटा भारत

_हरियाणवी खिलाड़ियों ने जीते फिफ्टी परसेंट पदक_

ओलिंपिक में 44 साल से सोने और 72 साल से चांदी के लिए तरसती भारतीय हाकी के लिए 52 साल बाद कांसा जीतने पर देशी मीडिया गर्वित भाषा में लिखता है इतिहास रच दिया

_भारतीय हाकी ने तो इतिहास रचा था 1928, 1932, 1936 और उसके बाद 1956, 1960 और 1964 में जब भारत ने लगातार दो बार सोने की हैट्रिक बनाई थी।_

भारतीय हाकी ने एस्टर्डम (1928), लाॅस एंजिल्स (1932), बर्लिन (1936)और उसके बाद मेलबर्न (1956), रोम (1960), टोक्यो (1964) में हुए ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद भारतीय हाकी को स्वर्ण पदक के दर्शन 16 साल बाद 1980 में मास्को ओलिंपिक में हुए थे। भारतीय हाकी को एकमात्र चांदी (रजत) का पदक 1952 में हेलेन्सकी ओलिंपिक में मिला था। फिर न जाने किसकी नजर लगी कि भारतीय हाकी 40 सालों तक सोना, चांदी, कांसा सभी के लिए तरसती रही। भारतीय हाकी के पदक का सूखा 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में जाकर दूर हुआ जब भारत ने कांस्य पदक जीता।

_कलम का काम है इंसाफ की तलवार हो जाना, जमाना पढ सके जिसको वही अखबार हो जाना_

भारत सरकार द्वारा खेल को बढ़ावा देने के लिए ढिंढोरा तो बहुत पीटा जाता है, खेल संघों द्वारा भी ओलंपिक में टीम भेजते समय लम्बी - लम्बी लम्मतरानी फेंकी जाती है मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात ही आता है। इस बार (2024) में भी पेरिस ओलिंपिक में पदकों के कलर बदलने के दावे किए गए थे। पर जो हुआ उसकी तस्वीर सामने है। 2020 में मास्को ओलिंपिक में भालाफेंक कर जीता गया एकमात्र सोने का तमगा भी बरकरार नहीं रखा जा सका वह भी चांदी में तब्दील हो गया। भला हुआ कि भारतीय हाकी मास्को ओलिंपिक में जीते गये कांस्य पदक को पेरिस ओलिंपिक में बरकरार रखने में सफल रही। भारत के खाते में तीन कांस्य पदक निशानेबाजी, एक कांस्य पदक हाकी, एक कांस्य पदक कुश्ती तथा एक रजत पदक भालाफेंक से जमा हुआ। मतलब भारी भरकम भारतीय दल (117) पर ओलिंपिक की तैयारियों में लगभग आधा अरब रुपया खर्च करने के बाद पेरिस ओलिंपिक में कुल एक चांदी व पांच कांसे के पदकों सहित कुल 6 पदक हासिल किए हैं जबकि चार साल पहले भारत ने 2020 के मास्को ओलिंपिक में एक स्वर्ण, दो रजत और 4 कांस्य पदक सहित कुल जमा 7 पदक हासिल किये थे। अगर मीडिया की नजर ने इसे इतिहास बनाना माना है तो फिर वाकई भारी भरकम भारतीय दल ने पेरिस ओलिंपिक में एक अदद सोने और एक चांदी के तमगे को गमा कर इतिहास रचा है।

जो बात कहते डरते हैं सब, तू वो बात लिख, इतनी अंधेरी थी न कभी पहले, वो रात लिख

इतिहास तो रचा है उस भारतीय एथलीट ने जिसने अपने मान्यता पास से अपनी बहन को एथलीट गांव में प्रवेश कराने की असफल कोशिश की और ओलिंपिक कमेटी के फरमान से वापिस भारत भेज दी गई। इतिहास तो बनाया है उस महिला पहलवान ने जिसने प्री-क्वार्टर फाइनल, क्वार्टर फाइनल और सेमी-फाइनल में दुनिया के नामी गिरामी महिला पहलवानों को पराजित किया और फिर वह एक अबूझ षड्यंत्र का शिकार होकर डिस्क्वालीफाई करार देते हुए प्रतियोगिता से बाहर कर दी गई जिसकी सबसे ज्यादा बौछारें भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर पड़ीं क्योंकि यह वही महिला पहलवान है जिसने अपने साथ भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा किये शारीरिक यौनाचार के खिलाफ़ आवाज उठाकर न्याय देने की गुहार प्रधानमंत्री से लगाई थी। पूरा देश उस महिला पहलवान की आवाज से आवाज मिला रहा था मगर भारतीय प्रधानमंत्री चंद लोकसभा सीटों की खातिर गांधी के तीन बंदरों की माफिक बने रहे। इतना ही नहीं उस महिला पहलवान और उसके साथ दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने वालों को दिल्ली पुलिस ने सड़कों पर घसीट - घसीट कर अमानवीय यातनाएं उस समय दीं जब प्रधानमंत्री हाथों में संगोल लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के पुराने भवन को छोड़कर नये भवन की तरफ जा रहे थे। शाजिशन के छींटे तो पीएम के खासम-खास कहे जाने वाले की पत्नी पर भी छिड़के गये जो बतौर ओलिंपिक सदस्य पेरिस में मौजूद रहीं। उस महिला पहलवान ने दुनिया की बड़ी से बड़ी पहलवान से हार नहीं मानी मगर अपने ही देश के सिस्टम से हार मानते हुए कुश्ती को अलबिदा कह दिया। जिसे भारतीय सरकार, उसके मंत्रियों - संतरियों सहित खेल जगत के मुंह पर कालिख पोतना कहा जा सकता है।

_हार-जीत खेल का अहम हिस्सा है फिर भी_ - - -

पक गई हैं आदतें, बातों से सर होगी नहीं

कोई हंगामा करो, ऐसे गुज़र होगी नहीं

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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