बच निकलने का कातिल ने गजब ढंग निकाला है - - - - - हर किसी से पूछता है इसको किसने मार डाला है

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं)

बजट  _दो ने दो के लिए बनाया, दो टेका लगाए हुए हैं _


केन्द्रीय बजट पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं तो औपचारिक ही होती हैं। बजट के "ब" की भी समझ ना रखने वाला सत्तापक्ष का छुटभैया भी जहां बजट की तारीफ करता दिखेगा वहीं विपक्षी उसकी बखिया उधेड़ता मिलेगा। जहां अर्थशास्त्रियों और मीडिया घरानों का बड़ा हिस्सा सरकारी विज्ञापन दिखाते मिलता है तो थोड़ा सा भाग खबरें दिखाने की कोशिश करता भी दिखाई दे रहा है। (सरकार जो दिखाये वह विज्ञापन और सरकार जो छिपाये वह खबर)। पत्रकारिता के साथ ही अर्थशास्त्र की गहरी समझ रखने वालों का कहना है कि सतही तौर पर तो यह बजट विपक्ष के आरोपों को सही साबित करते हुए कुर्सी बचाओ, सरकार बचाओ वाला लगता है मगर गहराई पर उतरने पर समझ में आता है कि बजट नेता (डबल "एन") परस्ती से ज्यादा कार्पोरेट (डबल "ए") परस्ती है।

वरिष्ठ पत्रकारों के एक वर्ग के अनुसार चुनावी नतीजों ने भले ही हालात बदल दिये हों मगर सरकार का मुखिया अपनी आदतों से मजबूर है। पिछले दस साल बताते हैं कि सरकार के मुखिया जो बोलते हैं और जो करते हैं उसमें जमीन - आसमान की दूरी होती है। जमीनी हकीकत बताती है कि भारत में टैक्स तो लंदन की तरह लग रहा है मगर सरकारी सुविधाएं सूडान जैसी मिल रही है (यूरोप जैसा टैक्स, अफ्रीका जैसी सुविधाएं)। देश के तकरीबन 10 परसेंट लोग अमरीका जैसे अमीरों का जीवन जी रहे हैं तो 90 परसेंट आबादी जिम्बाब्वे जैसी गरीबी जीने मजबूर हैं। नवजवानों को डेनमार्क के सपने दिखाये जा रहे हैं और नौकरी के अवसर अफगानिस्तान जैसे दिये जा रहे हैं। अधिकांश अर्थशास्त्री सरकार की इस बात से सहमत हैं कि जीडीपी की ग्रोथ अच्छी है, मंहगाई मोटे तौर पर कंट्रोल में है, करेंट अकाउंट एसेट के साथ ही सरकार का राजकोषीय घाटा भी कंट्रोल में है, ग्रास कैपिटल फार्मेशन के साथ ही ग्रास सेविंग भी ठीक ठाक है। मगर सरकार ने बजट में इस बात को बताने से पूरी तरह से परहेज किया है कि यूथ सहित जनरल बेरोजगारी की दर बहुत ज्यादा है। देश की आय का लगभग 57 फीसदी हिस्सा 10 परसेंट लोगों की जेब में जा रहा है। 50 परसेंट के हिस्से बमुश्किल 15 फीसदी आ रहा है। मंहगाई, गरीबी, लाचारी को दूर करने का कोई रोडमैप बजट में नहीं बताया गया है।

आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते समय वित्त मंत्री द्वारा उद्योगपतियों को कोसा तो गया मगर इसका कोई जिक्र नहीं किया गया कि उद्योगपति कोई बड़ा उद्योग स्थापित क्यों नहीं कर रहे हैं। हकीकत यह है कि पिछले दस सालों में पैदा हुई परिस्थितियों से बड़े उद्योगपतियों में इस बात को लेकर भय का वातावरण बना हुआ है कि अगर उन्होंने कोई बड़ा उद्योग लगाया तो कब आकर डबल ए में से कोई भी ए आकर सरकार के सहयोग से येन-केन-प्रकारेण उसको हथिया ले । सरकार द्वारा इस भय को दूर करने के लिए कोई ढांचागत प्रयास नहीं किया जा रहा है। हालात बताते हैं कि टाप एक परसेंट कार्पोरेट, लूटोक्रेट और धन्नासेठों की मुठ्ठी में कैद हो चुका है देश। मीडिया, राजनीति, चुनावों में फंडिंग से लेकर आर्थिक और रोजगार की नीतियां भी इसी एक परसेंट द्वारा निर्धारित व नियंत्रित की जाती है। कह सकते हैं कि 2024 का बजट देश का पहला बजट है जो दो ने दो के लिए बनाया है और दो टेक लगाये हुए हैं।

राजनीति करने और राजनीति में बने रहने के लिए अनपढ़ युवाओं की फौज चाहिए !

गत दिवस वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा मोदी सरकार के पेश किए गए पूर्ण बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जो आवंटन किया गया है उससे लगता है कि वे देश में अनपढ़, जाहिल और बीमार लोगों की फौज खड़ा करना चाहती है जो मोदी और भाजपा के लिए ताली थाली बजाने का काम करते रहें। कूपढ सत्ता प्रमुख को कूपढ फौज इसलिए भी चाहिए जो बुद्धि विवेक त्याग कर इस बात पर विश्वास करे कि नाली पर उल्टा भगौना रखने से गैस जलती है, तीन सदियों को एक साथ बैठाकर बातचीत की जा सकती है, आक्सीजन - हायड्रोजन को जब चाहें तब अलग किया जा सकता है, राडार बादल के पीछे छिपे हुए प्लेन को नहीं देख सकता है। यूपीए सरकार के समय शिक्षा पर जो बजट 4 परसेंट था उसे मोदी सरकार 2.5 परसेंट पर ले आई है। गुजरात के सीएम रहते नरेन्द्र मोदी कभी शिक्षा व स्वास्थ्य पर किये जाने वाले आवंटन में को लेकर चीन - अमेरिका द्वारा किए जाने वाले खर्च से तुलना कर केन्द्र सरकार को कोसा करते थे। नरेन्द्र मोदी ने ही कहा था कि जब डालर के मुकाबले रुपये की कीमत कम होती है तो देश की इज्जत गिरती है मगर 2014 से अभी तक मोदी कार्यकाल में जिस तरह से देश की इज्जत में बट्टा लगा है उस पर ना तो मोदी मुंह खोलते हैं ना ही विरुदावली गायक (चमचे-करछुली)। पढ़ेगा भारत, बढेगा भारत, विश्व गुरु बनेगा भारत, झूठ बोलेगा भारत (पीएम!) ताली बजायेगा भारत कब तक ऐसे चलेगा भारत क्या जब तक नरेन्द्र मोदी जैसे लोग सत्ता में रहेंगे तब तक ऐसे ही चलेगा भारत।

इस वर्ष शिक्षा पर आवंटित की गयी राशि 120627 करोड़ रुपये कुल बजट राशि 4820512 करोड़ का 2.5 परसेंट है इसी तरह हेल्थ के लिए आवंटित राशि 90958 करोड़ रुपये 1.88 परसेंट होती है। उच्च शिक्षा के लिए पिछले बजट में जहां 1554 करोड़ रुपये दिए गए थे वहीं इस बजट में 1545 करोड़ रुपये दिए गए हैं मतलब 9 करोड़ रुपये कम कर दिया गया। उच्च शिक्षा के लिए हर साल 2 करोड़ से ज्यादा बच्चे एडमीशन लेते हैं। उनमें से तकरीबन 1 करोड़ बच्चे एज्युकेशन लोन लेते हैं। उन 1 करोड़ में से मोदी सरकार 1 लाख बच्चों को लोन देगी वह भी 300 करोड़ रुपयों में से। कुपोषण सब्सिडी पर नजर डालें तो 3 साल पहले 86 हजार करोड़ रुपये दिए गए जिसमें पिछले साल 20 हजार करोड़ रुपये कम कर 60300 करोड़ कर दिया गया था इस बार 45 हजार करोड़ कर दिया गया। पीएम पोषण योजना में सरकार ने पहले 12681 करोड़ रुपये दिए थे इस बार 12468 करोड़ आवंटित किया है। पिछले बजट में अनुसंधान के लिए बजट में 50000 करोड़ रुपये खर्च करने को कहा गया था विवरण पत्रक आने पर पता चला कि सरकार 5 साल में 10000 करोड़ रुपये देगी बाकी 40000 करोड़ रुपये प्रायवेट सेक्टर देगा। आंगनबाड़ी के लिए पिछली बार 21523 करोड़ रुपये दिए गए थे तो इस बार 20200 करोड़ रुपये एलाट किए गए। समग्र शिक्षा अभियान जरूर 37453 करोड़ से बढाकर 37500 करोड़ रुपये दिए गए। एक समय नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का सबसे बड़ा शिक्षा का केंद्र हुआ करता था जहां दुनिया भर से लोग शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। मोदी सरकार नालंदा विश्वविद्यालय को एज्युकेशन हब बनाने के बजाय उसे एज्युकेशन टूरिज़्म डेस्टिनेशन बनाकर सैलानियों को लाना चाहती है।

देश में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के हालात यह हैं कि गर्भवती महिलाओं को एम्बुलेंस नहीं मिलती। बीच रास्ते में प्रसव हो जाता है। अस्पताल में एक पलंग पर दो - दो मरीज लिटाए जाते हैं यहां तक कि मरीज को जमीन पर भी लिटा दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के हालात तो बद से बदतर हैं। कह सकते हैं कि स्वास्थ्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जाता है। पिछली बार जहां हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में 7980 करोड़ रुपये दिए गए थे उसे कम करके इस बार मात्र 7000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। एक शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होती है और मोदी सरकार ने 500 स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी। जिसके लिए पिछले साल 8000 करोड़ रुपये दिए जाने का प्रावधान था इस बजट में मात्र 2400 करोड़ रुपये दिए जाने का प्रावधान किया गया है। रक्षा बजट में भी 1 हजार करोड़ रुपये की कटौती कर दी गई है। पिछली बार डिफेंस के लिए जहां 455000 करोड़ रुपये दिए गए थे तो इस साल 454000 करोड़ रुपये दिए गए हैं।

देश पर तकरीबन 200 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। मतलब देश में पैदा होने वाला नवजात शिशु भी 1 से 1.5 लाख का कर्जदार है। देश की कुल कमाई लगभग 3129000 करोड़ रुपये है जिसमें से 1162000 करोड़ रुपये सिर्फ ब्याज पटाने में जाता है मतलब कुल कमाई का 35 फीसदी। घाटा 12 लाख करोड़ का। कह सकते हैं कि भारत देश कर्जदारों का घर है साहूकारों का नहीं। लोगों का एक बड़ा तबका मोदी सरकार को व्यापारियों - पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली कहने के बजाय व्यापारियों - पूंजीपतियों की सरकार कह रहा है। लोगों का कहना है कि नोबेल पुरस्कार देने वालों को धूर्तता, झूठ, मक्कारी पर भी नोबेल पुरस्कार दिए जाने की शुरुआत करने पर विचार करना चाहिए क्योंकि इस पुरस्कार को लेने के लिए ब्रम्हांड का सबसे योग्य व्यक्ति तैयार है।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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