(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) आहत मन:स्थिति में मांगा पुराना शहर

कटनी। चौपाल से हटकर तीन सितारा होटल में शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, यातायात को लेकर कटनी विजन के नाम आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित प्रबुद्ध नागरिकों ने ढाई-तीन दशक से चल रही ट्रिपल इंजन की भाजपाई सरकार ने जिस तरह से शहर को बद से बदतर हालत में पहुंचा दिया है उस पर बेबाकी से अपनी बात रखी। प्रबुद्ध नागरिकों के तीखी आलोचना और सवालों से कार्यक्रम के मंच में बैठे सत्तापक्ष के तथाकथित सम्माननीयों के मुखमण्डल तनावपूर्ण तो दिखे मगर उन पर इसकी भी झलक दिखी कि फिलहाल जनता कितनी भी हाय-तौबा करे 2028 तक उनका बालबांका होने वाला नहीं है। कार्यक्रम में उपस्थित विपक्ष के तथाकथित नेताओं ने सत्ताधारियों को आड़े हाथों लेने का मौका हाथ से जाने नहीं दिया। तो सत्तापक्ष के नेता भी कटनी विजन के मुद्दों से हटकर विपक्ष पर ही कटनी की दुर्दशा के लिए दोषारोपण करते नजर आये।

नगर विकास की सोच लिए जनों ने जनप्रतिनिधियों के बीच शहर विकास के मामलों में सामंजस्य नहीं होने की बात कही। जो सीधे तौर पर महापौर और विधायक की ओर इंगित कर रहा था। यह अलग बात है कि महापौर और विधायक का नाम नहीं लिया गया। उपस्थित जनों में से कुछ ने पांडवों की वनवासी समयावधि में दिखाये गये लचछेदार ख्वाबों से छली गई भावनाओं की पीड़ा का इजहार करते हुए कहा कि हमें हमारा वही कटनी लौटा दिया जाय जो पहले था। तकरीबन बारह साल पहले नगरीय चुनाव के दौरान एक महापौर उम्मीदवार के पुत्र ने कटनीवासियों से यह कहते हुए वोट मांगे थे कि पांच साल के भीतर कटनी को सिंगापुर की तरह चमका दिया जायेगा और अन्तरराष्ट्रीय स्तर का खेल मैदान बनवाया जायेगा। विधायक का यह वादा चुनावी जुमला ही साबित हुआ। लगता है कि कटनी जिले से ही चुनावी जुमलों की शुरुआत हुई थी जिसे 2014 में नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल कर दिल्ली की सल्तनत हासिल की।

देखा जाय तो कटनी जिला मुख्यालय का विकास अपने पडोसी जिला मुख्यालयों के विकास से मीलों पीछे है। अच्छे खासे खेल मैदान में चौपाटी रूपी बबूल का पेड़ लगा दिया गया है। जो आज भी खेल मैदान के विस्तारीकरण में बाधक बना हुआ है। कुछ सत्तापक्षियों ने तो शहर विकास की नाकामियों का ठीकरा नगरवासियों पर यह कहते हुए फोड़ा कि वे जागरूक नहीं हैं। कटनी शहर की दुर्दशा का अह्सास नेत्रहीन को भी है दलीय नेताओं को छोड़कर। उच्च स्तर के शासकीय विद्यालय, महाविद्यालय की छोड़िए यहां तो दानदाताओं द्वारा बनवाये गये शिक्षा मंदिरों को मटियामेट कर वहां शापिंग काम्पलेक्स बनाने की योजनाएं बनाये जाने की खबरें आये दिन सुनाई देती रहती है। शहर का ऐसा कोई कोना बाकी नहीं है जो गंदगी से अटा-पटा ना हो। शहरवासियों का स्वास्थ्य प्रायवेट हॉस्पिटलों के जिम्मे है जहां गांठ से पूरे तो इलाज़ करा पाते हैं। गरीब गुरबे तो सरकारी अस्पताल के भरोसे ही हैं जो खुद 365 दिन अपने ही स्वास्थ्य लाभ की बाट जोहता रहता है। अब तो हास्पिटल के डाक्टरों की आपसी खींचातानी ही अखबारों की सुर्खियां बन रही है।

सड़कों के हाल भी बेहाल ही हैं। जब शहर की वीआईपी रोड़ ही जिम्मेदारों का मर्सिया पढ़ रही हो तो शहर के गली - कुलियों वाली सड़क अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। शहर की बिजली ही नहीं बिजली विभाग के हालात दयनीय है। उपभोक्ताओं के हिसाब से कर्मचारियों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरे की माफिक है। हर महीने दो - चार कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। नई भर्तियां हो नहीं रही। बिजली विभाग सामान खरीद नहीं रहा है। शहर हो गांव बिजली व्यवस्था जुगाड़ और ठेकेदारों के भरोसे चल रही है। यह स्थिति केवल कटनी जिले भर की नहीं है पूरा प्रदेश ऐसे ही चल रहा है। यातायात के तो हाल ही मत पूछिए। शहर के भीतर उग आये कुकुरमुत्तों की तरह ट्रांसपोर्ट यातायात के लिए कोढ़ से बन गये हैं। ट्रांसपोर्ट नगर बना दिए जाने के बाद भी ना तो ट्रांसपोर्टर जाना चाहते हैं ना ही जिम्मेदारों में इच्छा शक्ति दिख रही है उन्हें ट्रांसर्पोट नगर भेजने की।

शहर के लिए नासूर सी बन चुकी है जगन्नाथ तिराहे से लेकर डाॅ गर्ग चौराहे तक की सड़क । जहां महापौर इस सड़क से अतिक्रमण हटाकर नालियां और रोड़ बनाने की पक्षधर बताई जाती हैं तो वहीं अतिक्रमणकारियों सहित विधायक पर आरोप लगाये जाने की भी खबरें सुनाईं देती हैं कि वे यथास्थिति में ही रोड़ बनाने के लिए लाबिंग करते रहते हैं। जबकि शहर विकास के लिए महापौर और क्षेत्रीय विधायक का तालमेल अतिआवश्यक होता है। जिसका अभाव साफ़ - साफ़ दिखाई दे रहा है ! सवाल यह है कि क्या महापौर को महिला होने का खामियाजा उठाना पड़ रहा है ? प्रशासनिक अधिकारी भी महापौर के प्रोटोकॉल को नजरअंदाज करते हुए देखे जाते हैं। जिसका नजारा हाल ही में कलेक्ट्रेट में आयोजित एक बैठक में दिखाई दिया जिसमें महापौर को प्रोटोकॉल वाली उनकी कुर्सी के स्थान पर ना बैठाकर किनारे बैठाया गया था।

कटनी विजन के लिए मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग काॅलेज खोले जाने की बात तो उठी मगर किसी ने भी दानदाताओं द्वारा खोले गए विद्यालयों की दुर्दशा दूर करने के लिए ना तो केयर टेकर को कटघरे में खड़ा किया गया ना ही जनप्रतिनिधियों को। इसी तरह शहर की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक कमानिया गेट तोड़े जाने की बात किसी ने नहीं उठाई। ऐतिहासिक कमानिया गेट नागरिकों को सुरक्षित और सुलभ यातायात के नाम पर ध्वस्त कर दिया गया था, मगर आज भी एक मंदिर यातायात को बाधित किये हुए है। यह भी कहा गया था कि जल्द ही ऐसे नये कमानिया गेट का निर्माण कराया जायेगा जो यातायात में बाधक ना हो। यह भी जनप्रतिनिधियों का जुमला ही साबित हुआ है। सवाल यह है कि इस पर मौन साधना क्यों ?

शहर विकास के लिए सबसे जरूरी है सकारात्मक सोच, जिसके लिए जनप्रतिनिधि और जनता सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा। प्रशासनिक अधिकारियों पर विकास के लिए दबाव बनाना होगा। अखबारों को भी अपने निजी स्वार्थ को दरकिनार कर जनप्रतिनिधि हों या प्रशासनिक अधिकारी उनके खिलाफ भी तीखी टिप्पणियां करनी होगी। इन बातों का अभाव तो स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। सकारात्मक सोच रखने के बावजूद जनप्रतिनिधि और जनता दलगत सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जिसका सीधा फायदा अधिकारी उठाकर स्वछंद विचरण कर रहे हैं। अखबार भी तराजू के पलड़े को बराबर रखने की जद्दोजहद वाली खबरें छापते रहते हैं। अखबारों में छ्प रही कलेक्टर की फोटोज ऐसा आभास कराती हैं कि नरेन्द्र मोदी का कोई कम्पटीटर आ गया है फोटो के मामले में ! कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि शहरवासी आज भी कस्बाई मानसिकता में ही जी रहे हैं। इस बात का जिक्र क्षेत्रीय विधायक भी कर चुके हैं। एक बार फिर से नगरवासियों को सपने दिखाये गये हैं। आने वाला समय बतायेगा कि ये सपने धरातल पर उतर कर मूर्तरूप लेते हैं या परम्परागत जुमले साबित होते हैं। बहरहाल आयोजन सराहनीय कहा जा सकता है इस मामले में कि प्रबुद्ध जनों को संभवतः पहली बार अपनी मन:स्थिति को व्यक्त करने का मौका मिला है ।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

_स्वतंत्र पत्रकार_

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