चुनाव में सीईसी ने तो नहीं दिया था विपक्ष को लेबल फील्ड क्या संसद के भीतर स्पीकर देंगे ? (फिर बाहर आया माइक जिन्न)

(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) 

कटनी। 18 वीं लोकसभा की शुरूआती औपचारिकताओं मसलन संसद सदस्यों को शपथ, स्पीकर का चुनाव और राष्ट्रपति का अभिभाषण के बाद संसदीय कामकाज के लिए बैठी संसद की शुरुआत हंगामेदार रही और पक्ष तथा विपक्ष के बीच हुए सैध्दांतिक टकराव की भेंट चढ़ गई। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सोमवार तक स्थगित कर दी गई। सोमवार को जब एक बार फिर संसद बैठेगी तो देखना होगा कि लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष तराजू के दोनों पलडों (पक्ष और विपक्ष) में निष्पक्षता का संतुलन बना पाते हैं या नहीं।

हंगामे के मूल में यही रहा है कि जहां सत्ता पक्ष राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा की औपचारिकता पूरी करना चाहता है वहीं विपक्ष इससे पहले नीट में धांधली, एनटीए की विफलता और सरकार की जबावदेही सुनिश्चित करने के लिए बहस की मांग कर रहा है। व्यवहारिक रूप से देखा जाय तो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर की जाने वाली धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा से ज्यादा महत्वपूर्ण छात्रों के भविष्य से किये जाने वाले खिलवाड़ पर चर्चा किया जाना है। महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती मूर्मू ने भी अपने अभिभाषण में नीट को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। कायदे से तो नीट की क्लीनता के लिए सत्तापक्ष की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चर्चा की पहल करनी चाहिए थी मगर वे और उनकी पूरी सरकार मय गठबंधन मुंह में दही जमाये बैठी है और अगर इस बात पर विपक्ष की ओर से लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करने से पहले नीट पर चर्चा कराने की मांग की तो सरकार स्पीकर की मदद से विपक्ष की आवाज़ को दबाने की कोशिश करती दिख रही है। जबकि पीएम और स्पीकर को महामहिम की चिंता को महत्व देते हुए विपक्ष के द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों पर चर्चा करानी चाहिए।

बहरहाल इसी मुद्दे को लेकर संसद में हो रही चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता राहुल गांधी का माइक बंद हो जाता है या कर दिया जाता है। जो भी हो राहुल गांधी द्वारा स्पीकर ओम बिरला से माइक बंद होने की शिकायत करते हुए माइक की मांग की जाती है तब वे माइक बंद होने का निराकरण करने के बजाय यह कहते हैं कि मेरे पास कोई बटन नहीं है जिससे माइक बंद हो। देखा जाए तो स्पीकर का उत्तर किसी भी कोने से व्यवहारिक नहीं कहा जा सकता है। हाउस मानीटर होने के नाते स्पीकर को माइक में आई गडबडी को तत्काल दूर करने का आदेश देना चाहिए था साथ ही इस बात के लिए भी आदेशित किया जाना चाहिए था कि भविष्य में इस तरह की शिकायत किसी भी सदस्य से नहीं मिलनी चाहिए वरना जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाएगी।

17 वीं लोकसभा में भी राहुल गांधी द्वारा संसद में अपना माइक बंद किये जाने का आरोप लगाया गया था। मगर ऐसा लगता है कि पीएम नरेन्द्र मोदी की तरह ही स्पीकर ओम बिरला भी राहुल गांधी (गांधी परिवार) के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं ! जबकि स्पीकर की आसंदी पर बैठे हुए व्यक्ति को दलगत राजनीति से हटकर निष्पक्ष और तटस्थ होना चाहिए। कुछ इसी तरह की घटना राज्यसभा में भी घटित हुई। यहां पर भी सभापति जगदीप धनखड़ के ऊपर विपक्ष पक्षपात का आरोप लगाता रहा है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितना जरूरी सत्तादल के पास पर्याप्त बहुमत का होना है उतना ही जरूरी है सरकार की शक्तियों पर अंकुश और संतुलन बनाये रखने के लिए विपक्ष का मजबूत होना। इस हिसाब से 2024 में चुनी गई संसद को आदर्श लोकतंत्र के अनुरूप कहा जा सकता है बनिस्पत 2014 और 2019 में चुनी गई संसद के। मगर थ्योरी और प्रेक्टिकल से बहुत अंतर होता है और वह अंतर तब और अधिक गहरा हो जाता है जब राजनीतिक दलों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का स्थान राजनीतिक दुश्मनी, नफरत ले ले। जिसकी एक झलक 18 वीं लोकसभा में एकबार फिर से देखने को मिली।

लोकसभा स्पीकर के लिए सत्ता पक्ष को समर्थन देने के एवज में विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर का प्रस्ताव रखा था मगर अधिनायकवादी एकला चलो रोग से ग्रसित सत्ता पक्ष ने अनिच्छा दिखाई तो विपक्ष ने भी स्पीकर के लिए अपने उम्मीदवार को खड़ा कर दिया। हालांकि प्रमोट स्पीकर ने स्पीकर के लिए विपक्षी उम्मीदवार की उम्मीदवारी खारिज कर सत्तापक्ष के उम्मीदवार ओम बिरला को स्पीकर निर्वाचित घोषित कर दिया। सुखद रहा कि विपक्ष के नेता ने भी संसदीय मान - मर्यादा का मान रखते हुए ओम बिरला को बधाई भी दी और स्पीकर की आसंदी पर बैठाया भी। आजाद भारत के इतिहास में 2024 के पहले तीन ऐसे मौके आये हैं जब स्पीकर पद के लिए पक्ष और विपक्ष के बीच मत विभाजन हुआ है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार चुनी गई संसद में जहां सत्ताधारी पार्टी ने स्पीकर के लिए जी वी मावलंकर को मैदान में उतारा तो वहीं विपक्ष ने मुकाबले के लिए शांताराम मोरे को खड़ा किया। 1967 में सत्ता पार्टी के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के सामने तेजेटी विश्वनाथम रहे। तीसरे मौके में विपक्ष ने जगन्नाथ राव को खड़ा किया था बी आर भगत के मुकाबले 1976 में।

स्पीकर की आसंदी पर बैठते ही ओम बिरला के कार्य - व्यवहार को लेकर विपक्षी सदस्यों के साथ जिस तरह की नोकझोंक होते दिखी इससे संकेत मिलता है कि यह भले ही लोकतांत्रिक सरकार को चलाने के लिए सैध्दांतिक रूप से ठीक हो मगर इसे व्यवहारिक रूप से कतई ठीक नहीं कहा जा सकता है। विपक्ष ने सत्ताधारियों के सामने झुकने के बजाय स्पीकर के लिए अपना कैंडीडेट उतार कर इतना तो बता ही दिया है कि वे संसद से सड़क तक जनता के अधिकारों के लिए लड़ेंगे। एक बात और 18 वीं लोकसभा में 5 साल बाद विपक्ष का नेता लोकसभा में बोलता हुआ दिखाई देगा। वह भी राहुल गांधी के रूप में, जो पीएम नरेन्द्र मोदी को फूटी आंखों नहीं सुहाता ! राहुल गांधी की जबसे राजनीतिक एंट्री हुई है तबसे वह नरेन्द्र मोदी के निशाने पर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने घृणा की पराकाष्ठा तक राहुल गांधी को अपमानित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। मोदी ने निशाने पर तो राहुल की मां सोनिया गांधी तक रही है जिन्हें कांग्रेस की विधवा तक कहने से परहेज नहीं किया गया। मगर समय की बात है आज वही पप्पू-शहजादा नरेन्द्र मोदी की आंख से आंख मिलाकर संसद के भीतर सवाल - जबाव करता हुआ दिखेगा । लोकनीति - सीएसडीएस का सर्वेक्षण बताता है कि 2014 - 2019 के मुकाबले 2024 में नरेन्द्र मोदी के साथ ही भाजपा की छबि भी धूमिल - दागदार हो चुकी है। पप्पू की लोकप्रियता साहब से 14 फीसदी ज्यादा बताई जा रही है। जहां साहब की लोकप्रियता को 27 फीसदी आंका गया है वहीं पप्पू की लोकप्रियता 41 प्रतिशत आंकी गई है।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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