दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा कुर्सी हमें तेरा एतबार ना रहा

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण समाप्त होते - होते भारतीय जनता पार्टी और पितृ संगठन आरएसएस के भीतर इस बात को लेकर मंथन होने लगा है कि यदि भाजपा अपने स्वघोषित 400 पार के आंकड़े से दूर रह जाती है तो फिर भाजपा में जयप्रकाश नड्डा और नरेन्द्र मोदी के बाद कौन ? (WHO AFTER MISTER JAIPRAKASH NADDA AND WHO AFTER MISTER NARENDRA MODI IN BJP NOT IN THE COUNTRY) ।

पहले चरण से ही चरण दर चरण जिस तरह वोटिंग पर्सेंटेज में गिरावट दर्ज की जा रही है उससे इस बात के संकेत मिलने लग गये हैं कि खुद नरेन्द्र मोदी का ही तीसरी पारी खेलने का आत्मविश्वास डगमगाने लगा है। गत दिवस नरेन्द्र मोदी ने अडानी - अंबानी को कटघरे में खड़ा कर अपने लड़खड़ाते आत्मविश्वास पर मुहर लगा दी है। ये वही अडानी - अंबानी हैं जिनके लिए पिछले 10 साल से नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की साख तक को दांव पर लगाया हुआ है। ये वही अडानी है जिसके चार्टर प्लेन का इस्तेमाल मोदी करते रहे हैं। 10 साल से मोदी रटंत रट रहे गोदी मीडिया के सुर भी बदलने लगे हैं। जिस तरह से शेयर मार्केट में गिरावट आ रही है उससे अर्थशास्त्रियों का मानना है कि शेयर मार्केट का गिरना मोदी की साख का गिरना है। कारण कि मोदी की साख का तंत्र पूंजीपतियों की ताकत पर ही टिका हुआ है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि शेयर बाजार गिरने से निवेशकों को तकरीबन छै लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है।

तीन चरणों में सम्पन्न हुए चुनाव में 20 राज्यों की आधी से कुछ ज्यादा लोकसभा सीटों के चुनाव हो चुके हैं। जिसमें से लगभग 132 सीटें सीधे-सीधे बीजेपी शासित राज्यों की हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार तीन चरणों में हुए मतदान में भाजपा या यूँ कहें एनडीए इंडिया गठबंधन से पिछड़ता हुआ लग रहा है। बाकी रह गई सीटों के लिए चार चरणों के मतदान में वैसे भी भाजपा के लिए भरपाई करना जैसा कुछ है नहीं। यही कारण है कि चौथे चरण के मतदान के पहले ही भाजपा लीडरशिप के आत्मविश्वास में टूटन दिखाई दे रही है। चुनावी पंडितों का मानना है कि बीजेपी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी तो हो सकती है मगर बीजेपी और एनडीए के कुनबे में मोदी की लीडरशिप कितनी कायम रह पायेगी कहना मुश्किल है।

राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर अभी से चर्चा होने लगी है कि भाजपा में बलि का बकरा किसको बनाया जायेगा। अभी तक तो केवल गेन ही मोदी के खाते में डाला जाता रहा है और लाॅस हमेशा दूसरों के सिर मढी गई है। कर्नाटक की हार का ठीकरा बोम्बई के माथे पर फोड़ा गया था तो हिमाचल की हार के लिए मुख्यमंत्री ठाकुर को ठहराया गया था। जबकि ठाकुर ने पलटवार करते हुए कहा था कि हार केंद्र की नीतियों के कारण हुई है। जयप्रकाश नड्डा का बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष कार्यकाल जून 2024 तक के लिए बढाया गया है तो यही तय लगता है कि यदि बीजेपी अपने लक्ष्य से पीछे रहती है तो उसके लिए हार की मटकी जयप्रकाश नड्डा के सिर फोड़ी जायेगी और लक्ष्य पा लिया तो मुकुट पहनने के लिए केवल एकमात्र मोदी का सिर तो है ही। सूत्रों के अनुसार ब्लेम गेम की चौसर बिछाने की तैयारियां की जाने लगी हैं।

नरेन्द्र मोदी के भाषणों में तो वैसे भी मंहगाई, बेरोजगारी, किसान आन्दोलन, मणिपुर, हाथरस, महिला पहलवानों का यौन शोषण आदि होते ही नहीं थे और जो होता था उसमें भी तीसरे चरण के बाद से बहुत कुछ बाहर हो गया है। पहले चरण तक अलापे जाने वाला शब्द "गारंटी" दूसरे चरण में गायब, दूसरे चरण तक अलापा जाने वाला जुमला "अबकी बार 400 पार" तीसरे चरण में गायब, तीसरे चरण में केवल और केवल हिन्दू - मुस्लिम के साथ ही मछली, मंगलसूत्र, भैंस, प्रापर्टी आदि के बटवारे की बातें की जाने लगी । वैसे देखा जाए तो अब जनता मोदी के मुख से हिन्दू - मुस्लिम, मंदिर - मस्जिद की तोता रटंत सुनते - सुनते ऊब चुकी है और शायद यह बात मोदी को भी समझ में आ गई है तभी तो मोदी ने पाकिस्तान, मुस्लिम लीग के बाद पहली बार दरभंगा में गोधराकांड की एंट्री कराई है। तीन चरणों में हुई वोटिंग से हतोत्साहित हुए मोदी की बाॅडी लेंग्वेज बताती है कि वह अब एक नये तरह का नैरेटिव चलाने की तैयारी कर रहे हैं। जिसकी उन्होंने यह कह कर शुरूआत कर दी है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर (बाबरी मस्जिद) पर दिये गये निर्णय को बदल देगी ! और यह बात इसलिए भी कही जाने लगी है कि बेमहूरत आधे-अधूरे मंदिर में सुप्रीम कोर्ट से केस जीते रामलला को दरकिनार कर नवीन राम मूर्ति की स्थापना कर जिस राजनीतिक फायदे की उम्मीद की गई थी वह पूरी होते हुए नहीं दिख रही है।

कांग्रेस के पीछे छुपकर जिस तरह से मोदी ने अडानी - अंबानी पर कालाधन जमा करने का खुलासा किया है उससे नरेन्द्र मोदी खुद भी कालाधन रखने वालों को संरक्षण देने वाले कटघरे में आ गये हैं। कारण देश के प्रधानमंत्री को पल - पल और हर चीज की जानकारी होती है। यह बात अलहदा है कि कल तक जिन भृष्टाचारियों पर ईडी, आईटी, सीबीआई जांच कर रही थी और पीएम तथा उनकी पार्टी कोस रही थी, भाजपा ज्वाइन करते ही सारी जांच कार्रवाई ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है। हो सकता है कि मोदी ने कांग्रेस को अडानी - अंबानी द्वारा बोरे भर भरकर कालेधन के रुपये टैम्पों से कांग्रेस या उसके शहजादे को देने की बात कहकर अडानी - अंबानी को चेतावनी दी हो मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस तरह की बात कहकर नरेन्द्र मोदी ने एक तरह से अपनी हार स्वीकार कर ली है। वैसे अडानी - अंबानी की करतूतों को उनके मित्र नरेन्द्र मोदी ने अपनी तरफ से उजागर कर ही दिया है तो अब बारी है मोदी के कहे पर मोहर लगाने की राहुल गांधी और अडानी - अंबानी की। कहा जा सकता है कि जिस तरह के भाषण पीएम नरेन्द्र मोदी के द्वारा दिए जा रहे हैं वैसे भाषण तो छुटभैये नेता भी नहीं देते हैं। मोदी के सड़क छाप भाषणों से प्रधानमंत्री पद की गरिमा भी तार - तार हो रही है।

एक पार्टी और वह भी मृतप्राय पार्टी और उसके एक नेता पर केन्द्रित नरेन्द्र मोदी के भाषणों से जनता ऊब चुकी है तथा मोदी ने खुद ही अपने कद को छोटा कर लिया है। वैसे केंचुआ ने सात चरणों में चुनाव कराकर मोदी की हरसंभव मदद करने का भरसक प्रयास किया है मगर न तो चुनाव आयोग ने न ही मोदी ने सोचा था कि दांव उल्टा भी पड़ सकता है । मोदी के तिलस्मी जादू को खत्म करने के लिए खुद मोदी का ओव्हर एक्सपोजर होना जिम्मेदार है। इसी तरह आरएसएस और बीजेपी के काॅडर के उत्साहहीन होने के पीछे भी भारतीय जनता पार्टी का "मोदी इज बीजेपी" का हो जाना है। वरना आज की स्थिति में भाजपा के पास न तो कार्यकर्ताओं की कमी है न ही साधन - संसाधनों की।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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