मोदी ने चलनी शुरू की फुसलाने वाली चाल !

कटनी। उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले प्रदेश महाराष्ट्र ने भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी की सेहत खराब कर रखी है। इसलिए भाजपा को चाहिए कि वह उन्हें ज्यादा परेशान न करे क्योंकि देश के लिए नहीं भाजपा के लिए मोदी जरूरी है। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी भी कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, सैम पित्रोदा जैसे लोगों की कतार में जाकर बैठ गए हैं। जिस तरह से मणिशंकर अय्यर, सैम पित्रोदा आदि जैसे लोगों के द्वारा दिए जाने वाले ऊलजलूल बयानों से कांग्रेस संकट में पड़ जाती है कुछ वैसी ही दुविधा का सामना इन दिनों नरेन्द्र मोदी के ऊलजलूल बयानों से भाजपा को भी करना पड़ रहा है। जो इस बात का संकेत देते हैं कि नरेन्द्र मोदी की मानसिक सेहत ठीक नहीं है।

हाल ही में नरेन्द्र मोदी महाराष्ट्र के नंदुरबार में भाजपा प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार करने गए थे। वहां उन्होंने हास्यास्पद बयान देते हुए उध्व ठाकरे और शरद पवार को अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने (मोदी) साथ आने का न्योता दे दिया। लगता है कि मोदी को इस बात का अह्सास हो गया है कि महाराष्ट्र में उनकी नैया डूबने जा रही है और वे महाराष्ट्र से डरने लगे हैं। इसके पहले तक नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में लगातार उध्व ठाकरे और शरद पवार के लिए जहरीली बयानबाजी कर रहे थे। उन्होंने अमर्यादित भाषा का जहर उगलते हुए उध्व ठाकरे को नकली संतान होना तक कह डाला ।

तो फिर सवाल यही है कि खुद को एक अकेला सब पर भारी और अपने दम पर 400 लोकसभा सीटें लाने की भविष्यवाणी करने वाले नरेन्द्र मोदी को फिर उध्व ठाकरे और शरद पवार का साथ क्यों चाहिए ? उन्होंने तो एकनाथ शिंदे, अजित पवार और अशोक चव्हाण को यह जानते समझते हुए महाबली कहा कि हकीकत में वे भाजपा के लिए खोखले बांसों की टेक से ज्यादा नहीं हैं। इतने दंभी को फिर उध्व और पवार का साथ क्योंकर चाहिए ?

इसका जवाब तो एक वाक्य में यही हो सकता है कि नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव हार रहे हैं, वे बहुमत से बहुत दूर रहने वाले हैं इसलिए बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए उन्हें उध्व ठाकरे और शरद पवार की जरूरत है। इसीलिए मोदी ने अभी से फुसलाने वाली चाल चलना शुरू कर दिया है।

देश के बाकी हिस्सों की तरह महाराष्ट्र में भी "मोदी मैजिक", "मोदी का जादू", "मोदी है तो मुमकिन है" जैसे जुमलाई वाक्य ध्वस्त हो चुके हैं। महाराष्ट्र में मोदी ने जो ऊटपटांग चालें चली हैं वे अब उन पर ही पलटवार कर रही हैं। महाराष्ट्र के मतदाताओं के मूड को समझते हुए मोदी - शाह की जोड़ी भयग्रस्त होती जा रही है। वे यह जानते हैं कि राजनीति एक बुलबुले की तरह है। यहां हर कोई अपने निजी स्वार्थ और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। भूलवश देश की जनता को भी यह समझ में आने लगा है कि नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति का एक खोखला स्तंभ है।

जहां तक उध्व ठाकरे और शरद पवार का सवाल है वे इस समय मोदी की तानाशाही और भृष्टाचारियों-बलात्कारियों को संरक्षण देने के कदम के खिलाफ कदमताल कर रहे हैं। शरद पवार के इस कथन से भी मोदी का रक्तचाप अपेनडाउन हो रहा है कि यदि लोकसभा चुनाव परिणाम कांग्रेस पार्टी के अनुकूल रहे तो कांग्रेस विचारधारा वाले बहुत से क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस में विलय हो सकता है। भाजपा के साथ गठबंधन (एनडीए) करने वाले क्षेत्रीय दल भी मोदी छाप तानाशाही जंजीर को उतार फेंकने के लिए मौका तलाश रहे हैं। अपनी निजी स्वार्थसिध्दी के लिए भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों का बड़ा कुनवा भी घर वापिसी  कर सकता है। भाजपा के लिए टेकू खोखले बांस शिंदे, पवार, चव्हाण भी भाजपा को छोड़कर घर वापिस जा सकते हैं।

भाजपा की नीति भी बहुत कुछ बसपा से मिलती जुलती रही है कि क्षेत्रीय पार्टियों को सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ना और शिखर पर पहुंच कर सीढ़ी को ही ऊपर खींच लेना। जरुरत पूरी करने के बाद क्षेत्रीय दलों को नेस्तनाबूद कर देना। मोदी - शाह को भविष्य में कांग्रेस की मजबूती का भय भी खाये जा रहा है। वरना ऐसा कोई कारण नहीं है कि लगभग - लगभग लकवाग्रस्त हो चुकी पार्टी और उसके व्यालार मुर्गे को मोदी - शाह की जोड़ी सोते जागते गरियाती रहती है और वह भी अमर्यादित शब्दों का उपयोग करते हुए।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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