मोदी राज के 10 सालों में हुए तकरीबन ढाई दर्जन बड़े आतंकी हमले जिसमें गई करीब छै सैकड़ा जानें और लगभग दो सैकड़ा हुए घायल

कटनी। आतंकी घटनाओं को लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी की अपनी अलग ही ढपली और अलग ही राग है। जब मोदी चुनाव के दौरान घूम घूमकर आतंकवादी घटनाओं पर लगाम लगाने का ढिंढोरा पीटते हैं तभी आतंकवादी घटना को अंजाम देकर मोदी सरकार को चुनौती देते हुए उनके दावे की हवा निकाल देते हैं। 2019 में चुनाव के पहले 14 फरवरी को पुलवामा में हमला हुआ और बेकसूर 46 अर्धसैनिक बल के जवान काल कलवित हो गये। 2024 में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं। कुछ ही दिन पहले चुनावी सभा में पीएम मोदी ने आतंकवाद पर रोक लगाने पर अपनी पीठ थपथपाई थी और 4 मई 2024 शनिवार के दिन शाम को आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के एक काफिले पर घात लगाकर हमला किया जिसमें एक सैनिक की मौत और चार अन्य घायल हो गए हैं जिसमें अभी भी एक सैनिक की हालत नाजुक बनी हुई है । बताया जाता है कि यह हमला सुरनकोट इलाके में शाहसितार के पास शाम के वक्त तब हुआ जब सैनिक सनाई टॉप स्थित अपने अड्डे पर लौट रहे थे।

ऐन चुनाव के बीच सैनिकों पर हुए इस हमले ने 2019 में लोकसभा चुनाव के पूर्व हुए पुलवामा हमले के घावों को तरोताजा कर पीएम मोदी और उनकी पार्टी भाजपा की नियत को संदेहास्पद करार देते हुए कठघरे में खड़ा कर दिया है। वजह यह भी है कि 5 साल गुजर जाने के बाद भी मोदी सरकार इस बात की सच्चाई देश के सामने नहीं ला पाई है कि पुलवामा में 300 किलो से ज्यादा आरडीएक्स कैसे पहुँचा। अर्धसैनिक बल को ले जाने में इतनी बड़ी चूक कैसे और किसके कहने पर की गई थी। जबकि प्रथम दृष्टया इस घटना की जबावदेही गृहमंत्रालय की बनती है।

नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद से 2014 -2023 के बीच 28 आतंकी घटनाओं में 568 जवानों की शहादत हुई है तथा 174 जवान घायल हुए हैं। 2014 में हुई 5 आतंकी घटनाओं में 127 जवानों की मौत हुई है तथा 20 जवान घायल हुए हैं। 2015 की 3 आतंकी घटनाओं में 192 जवानों को अपने प्राण न्योछावर करने पड़े थे तो 30 जवान घायल भी हुए थे। इसी तरह 2016 के 7 और 2017 के 3 आतंकी हमलों में 67 और 44 जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया था और 45 तथा 18 जवान घायल कर दिए गए थे। 2018 के 2 एवं 2019 के 5 आतंकी हमलों में आतंकियों ने 20 और 76 जवानों की हत्या की थी तथा 35 और 15 जवानों को घायल कर दिया था। इसी तरह 2020, 2021 और 2023 की एक - एक आतंकी वारदात में 17, 22 और 03 जवान शहीद हो गए थे तथा 15 जवान घायल हुए थे।

आतंकी हमलों पर सिलसिलेवार नजर डाली जाय तो 2014 में 01 मई को चेन्नई ट्रेन बम ब्लास्ट में 1 मौत तथा 14 घायल हुए थे। 02 मई को असन नरसंहार में 33 मौतें हुईं थीं। 12 मई को गढ़चिरौली ब्लास्ट में 7 मौत और 2 घायल, 23 दिसम्बर को असम में 85 मौतें, 28 दिसम्बर को बेंगलूरू आईईडी बम विस्फोट में 1 मौत 4 घायल हुए थे। इस तरह 2014 में मौतों का आंकड़ा 127 और घायलों की संख्या 20 होती है। 2015 में नजर डालें तो 20 मार्च को जम्मू में हुए पाकिस्तानी हमले में 6, 04 - 09 जून को मणिपुर में हुए आतंकी हमले में 176 मौतें और 15 घायल तथा 27 जुलाई को गुरदासपुर (पंजाब) पर हुए आतंकी हमले में 10 हत्या और 15 घायल किए गए थे। मतलब 2015 में 192 मौतें हुईं और 30 घायल हुए। इसी तरह 2016 की 2 जनवरी को पठानकोट में पाकिस्तानी हमला हुआ जिसमें 7 जवानों को अपनी जान गवांनी पड़ी। 25 जून में पम्पोर कश्मीर में हमला हुआ जिसमें 8 जानें गई और 22 घायल हुए। 5 अगस्त को कोकराझार (असम) में आतंकी हमला हुआ और बेवजह 14 शहीद हो गए तथा 15 घायल हुए। 18 सितम्बर को उरी कश्मीर में हुए पाकिस्तानी हमले ने 23 बलि ले ली और 8 को घायल कर दिया गया था। 03 अक्टूबर को बारामूला (कश्मीर) पर हुए पाकिस्तानी हमले में 5 जानें गई। 29 नवम्बर को नगरकोट (कश्मीर) सेना छावनी पर पाकिस्तानी हमला हुआ और 10 जवान शहीद हो गए। मतलब 2016 में 67 जानें गई और 45 घायल हुए। 07 मार्च 2017 को भोपाल - उज्जैन पैसेंजर ट्रेन पर हमला कर 10 को मौत के घाट उतार दिया गया। 24 अप्रैल 2017 के दिन सुकमा (छत्तीसगढ़) में माओवादियों ने हमला कर 26 लोगों को कालकलवित कर दिया। इसी तरह 11 जुलाई 2017 को अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमला हुआ जिसमें 8 मौतें और 18 घायल हुए। मतलब 2017 के खाते में 44 मौतें और 18 घायल आये थे। 10 फरवरी 2018 को सजवान (कश्मीर) में हुए पाकिस्तानी हमले में मौतों और घायलों की संख्या बराबर - बराबर याने 11 - 11 थी। इसी प्रकार 13 मार्च 2018 को एक बार फिर सुकमा (छत्तीसगढ़) में माओवादियों ने हमला कर 09 जानें ली थी। अर्थात 2018 में 20 जानें गई तथा 11 घायल हुए।

2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले पुलवामा में तकरीबन 300 किलोग्राम आरडीएक्स से अर्धसैनिक बल के वाहन को उड़ा दिया गया जिसमें बिना वजह 46 जवानों के चीथड़े उड़ गए। मोदी सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए हमले में मारे गए जवानों को शहीद का दर्जा देने से मना कर दिया। इस हमले में प्रथम दृष्टया सरकारी लापरवाही जाहिर होती है। दुर्भाग्य यह है कि 5 साल बीत जाने के बाद मोदी सरकार ने पुलवामा हमले का सच जाहिर करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि मोदी और उनके सिपहसलारों ने पुलवामा में मारे गए जवानों के नाम पर वोट मांगकर दूसरी बार दिल्ली सल्तनत फतह की थी। आज भी देश पुलवामा हमले के सच को जानने के लिए बेताब है। मगर मोदी अपनी हठधर्मिता छोड़न तैतैयार नहीं दिखते जो कहीं न कहीं चोर की दाड़ी में तिनका को इंगित करता है। 07 मार्च को जम्मू बस स्टैंड पर ग्रेनेड से पाकिस्तानी हमला हुआ जिसमें 3 जानें गई और 35 घायल हुए। 09 अप्रैल को दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) में माओवादियों ने हमला कर 5 को परलोक पहुंचा दिया। 01 मई को गढ़चिरौली में हुए नक्सली हमले में 16 जानें गई थी। इसी तरह 12 जून को अवंतीपुरा (कश्मीर) में हुए पाकिस्तानी हमले में 6 मौतें हुईं थीं। 2019 में जहां 76 को निगला था तो वहीं 35 को घायल किया था। 21 मार्च 2020 को सुकमा (छत्तीसगढ़) में हुए माओवादियों ने 17 की हत्या की और 15 को घायल कर दिया। 03 अप्रैल 2021 में एकबार फिर बीजापुर (छत्तीसगढ़) में नक्सलियों ने हमला कर 22 लोगों को यमपुरी भेजा। इसी तरह 08 अप्रैल 2023 को कोझीकोड ट्रेन में आग लगाकर हमला किया गया जिसमें 3 लोग मौत का ग्रास बन गये थे।

पुंछ में वायुसेना के काफिले पर हुए आतंकी हमले और उसमें हुई शहादत ने सवाल उठाया है कि क्या एकबार फिर मोदी सरकार 2019 में हुए पुलवामा हमले की तरह लोगों से सैनिकों की शहादत के नाम पर वोट मांगकर तीसरी बार दिल्ली की सल्तनत पर कब्जा करने का खेला खेलेगी ?

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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