_खामोश मिज़ाजी तुम्हें जीने नहीं देगी_ _इस दौर में जीना है तो - - - - - - - -_

खरी - अखरीगत दिनों द इंडियन एक्सप्रेस ने तकरीबन 25 ऐसे विपक्षी सियासतदां की राजनीतिक दास्ताँ देशवासियों के सामने परोसी है जिनके खिलाफ ईडी, सीबीआई, आईटी ने भृष्टाचार के गंभीरतम अपराधों को लेकर जांच शुरू की थी और उनका सलाखों के पीछे जाना लगभग तय था परन्तु उनने 2014 से लेकर अब में भाजपा ज्वाइन की और न केवल उनकी जांच बंद कर फाईलों को कचरेदान की तरफ धकेल दिया गया है बल्कि कईयों को तो संवैधानिक पदों से भी नवाज दिया गया है। अखबार ने अपराध दर्ज करने से लेकर भाजपा ज्वाइन करने की पूरी कुंडली छापी है। इनमें हेमंत विश्रवा शर्मा, हसन मुशर्रफ, भावना गावली, यामिनी, यशवंत जादव, सी एम रमेश, रानिन्द्र सिंह, संजय सेठ, सुवेन्दु अधिकारी, सोवन चटर्जी, छगन भुजबल, कृपा शंकर सिंह, दिगम्बर कामत, अशोक चव्हाण, नवीन जिंदल, तापस राॅय, अर्चना पटेल, गीता कोड़ा, बाबा सिद्दीकी, ज्योति मिर्धा, सुजाना चौधरी, प्रताप सरनाईक आदि शामिल हैं।

गुजरात भाजपा के नेता परषोत्तम रूपाला द्वारा क्षत्रिय समुदाय पर की गई घोर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर क्षत्रिय समुदाय की महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है। वे तो जौहर तक करने की बात कर रही हैं। जिससे बीजेपी के भितरखाने दहशत मिक्स सन्नाटा पसरा पड़ा है। जो इस बात की गवाही दे रहा है कि बदहवासी भरे माहौल में ऊलजलूल भाषणों का दौर शुरू हो गया है।

मोदी सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन के पति जाने-माने अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने तो समय-समय पर मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की ही है। ऐन आम चुनाव के बीच परकला प्रभाकर तो अब मीडिया इंटरव्यू में यहां तक कह रहे हैं कि यदि यह सरकार (मोदी सरकार) वापस आई (तीसरी बार) तो आगे चलकर चुनाव नहीं होगा। देश का संविधान, देश का नक्शा पूरा का पूरा बदल जायेगा जिसे पहचान नहीं पायेंगे। पीएम (नरेन्द्र मोदी) खुद लालकिले से हेट स्पीच देंगे। पूरे देश में मणिपुर, लद्दाख जैसे हालात होंगे। लगता है परकला की आलोचनाओं के मद्देनज़र ही निर्मला सीतारमन को घर बैठाना तय किया गया है। सीतारमन ने भी चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान यह कहते हुए किया कि चुनाव लड़ने के लिए मेरे पास "वैसा पैसा" नहीं है। निर्मला के "वैसा पैसा" कहने का मतलब तो यही हो सकता है कि चुनाव में कालेधन का उपयोग होता है।

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने 2024 के आम चुनाव को लेकर कहा है कि देश आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ रहा है।  यह जो आजादी की दूसरी लड़ाई है इसमें बीजेपी पीएम नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में "हिन्दू लीग" की स्थापना करना चाहती है। ठीक उसी तरह से जैसे आजादी की पहली लड़ाई के समय मोहम्मद अली जिन्ना ने "मुस्लिम लीग" की स्थापना की थी।

कांग्रेस का न्याय पत्र कहें या घोषणा पत्र उसको लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी इतने अधिक विचलित और बौखलाए से नजर आ रहे हैं कि  उन्हें कांग्रेस के घोषणा पत्र में "मुस्लिम लीग" दिखाई पड़ रहा है। नरेन्द्र मोदी और उनकी भाजपा इस असमंजस में पड़ गई है कि खुदा न खास्ता अगर चुनाव परिणाम उनके अनुकूल नहीं आये तो उनके विघटनकारी ऐजेंडे का क्या होगा। भारत को "हिन्दू राष्ट्र" किस दम पर घोषित किया जा सकेगा। शायद इसी बुनियाद पर ही बीजेपी का सांसद कहता है कि हमको (बीजेपी गठबंधन) 400 सीटें इसलिए चाहिए कि हम संविधान बदल सकें। वर्तमान की हकीकत छुपाकर भविष्य के सपने दिखाए जा रहे हैं। कौन जीता है तेरी जुल्फों के सहर होने तक।

कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर जिसमें जाति जनगणना, अल्पसंख्यकों के लिए न्याय, महिलाओं के लिए आत्म सम्मान, किसानों, बेरोजगारों के साथ ही तमाम वर्गों के लिए तमाम तरह की बातों का समावेश हो उससे मोदी इतने ज्यादा उत्तेजित हैं कि उनको समझ ही नहीं आ रहा है कि वे कहाँ से शुरू करें और कहाॅं खत्म करें शायद इसीलिए उनको इसमें मुस्लिम लीग नजर आता है तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके द्वारा मेरठ, रुद्रपुर, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना आदि जगहों में दिए गए भाषणों का फोकस विभाजन की राजनीति पर क्यों है। लगता तो यही है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी के पास सिवाय "राम और मोदी" के नाम को छोड़कर ऐसा कुछ है नहीं जिसे लेकर वह जनता के बीच जाकर वोट मांग सकें । नख से लेकर शिख तक विराजमान नेताओं के भाषणों में नवजातों, नवजवानों, महिलाओं से लेकर बुजुर्गों तक, घर के चौके-चूल्हे से लेकर बाजार तक के मूलभूत सरोकारी मुद्दे गायब हैं। शायद यही वजह है कि फिल्मों के टाईटल की तरह मोदी वन, मोदी टू, मोदी थ्री बनाने की कोशिश की जा रही है।

मोदी और उनकी भाजपा 2024 के आम चुनाव में देशवासियों से तीसरे टर्म के लिए जनादेश तो मांग रही है लेकिन जो मोदी सरकार 2019 में पुलवामा में हुए सैनिकों की शहादत को मुद्दा बनाकर जनता की भावनाओं को ईनकैस करते हुए दुबारा सत्तानशी हुई थी। उसी मोदी सरकार द्वारा उसी पुलवामा हत्या कांड (जिसमें देश सेवा कर रहे दसियों निर्दोष राष्ट्रभक्त सैनिकों की हत्या कर दी गई थी) का सच आज तक देश के सामने नहीं लाया जा रहा है आखिर क्यों ? सवाल तो यह भी हैं कि 300 किलो आर डी एक्स पुलवामा कैसे पहुंचा ? डीएसपी देविंदर सिंह का क्या हुआ ? जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल वरिष्ठतम भाजपा नेताओं में शुमार सत्यपाल मलिक द्वारा पुलवामा हत्या कांड को लेकर केंद्र सरकार पर गंभीरतम आरोप लगाये गये हैं उन पर मोदी सरकार और भाजपा ने गहरी चुप्पी साधी हुई है आखिर क्यों ? यदि सत्यपाल मलिक द्वारा लगाए गए गंभीर आरोप गलत हैं तो उन पर अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? 13 दिसम्बर 2023 को संसद के भीतर हुए पटाका कांड की निष्पक्ष जांच (जिसकी मांग करने पर तकरीबन डेढ़ सैकड़ा विपक्षी सांसदों को संसद से निलंबित कर दिया गया था) का क्या हुआ ? घटना कारित करने वाले आरोपियों को संसद में प्रवेश करने का पास देने वाले भाजपा सांसद पर क्या कार्रवाई की गई ? इन सब बातों का सच जानने का अधिकार हर देशवासी को है तो  मोदी सरकार द्वारा जनता से सच छुपाने की पर्दादारी की जा रही है आखिर क्यों।

कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र 2024 के आम चुनाव के कुरुक्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेगा जहां से दुनिया भर के अमीरों की कतार में शामिल सावित्री जिंदल के परिवार से नवीन जिंदल चुनाव लड़ रहे हैं। ये वही नवीन जिंदल हैं जो झारखंड की कोयला खदान के घोटाले में फंसे हुए हैं। सलाखों के पीछे जाने से बचने के लिए इन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की और भाजपा द्वारा अगले दिन ही नवीन जिंदल को कुरुक्षेत्र के मैदान में उतार दिया गया।

मोदी भाजपा से ज्यादा टेंशन में तो चुनाव आयोग दिखाई दे रहा है उसे यह चिंता खाये जा रही है कि यदि दुनिया भर के रईसों की कतार में खड़े परिवार का सदस्य चुनाव हार गया तो ! इससे इस बात पर अविश्वास करने की कोई वजह नज़र नहीं आती कि चुनाव आयोग सत्ता के साथ है और वह उसके कैंडीडेट को जिताने के लिए काम कर रहा है। चुनाव आयोग पर वैसे भी सभी राजनीतिक दलों के लिए एक समान प्लेइंग फील्ड नहीं देने के आरोप तो लगाए ही जा रहे हैं।

कांग्रेस के भितरखाने से मिल रही खबरों पर विश्वास किया जाय तो वह देश के नवयुवकों के बीच "राहुल ब्रांड" बन चुकी "टी शर्ट" वितरित करने की योजना पर विचार कर रही है। जो  राहुल को नरेन्द्र से इस मामले में अलग खड़ा करती है कि जहां नरेन्द्र जैसा देश वैसा भेष धरकर बहुरूपिया नजर आते हैं वहीं राहुल पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक एक ही वेषभूषा (टी शर्ट) में घूमते रहते हैं।

2024 के आम चुनाव में जिस तरह का नरेटिव सैट किये जाने की ओर कदम बढ़ते दिख रहे हैं उसमें वसीम बरेलवी का यह शेर सटीक बैठता है  ---

मंदिर चुप है, मस्जिद चुप है, नफरत बोल रही है

और सियासत,जहर कहाँ तक पहुॅंचा,तौल रही है

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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