कलम खामोश हो गई तो संसद आवारा हो जायेगी
कटनी। कलमकारों को शुक्रगुजार होना चाहिए उन तमाम लोगों का जिन्होंने दल विशेष की मानसिक गुलामी इस हद तक ओढ़ी हुई है कि दिन को दिन कहने के लिए भी वे अपने - अपने आकाओं की ओर देखते हैं तथा दल विशेष की नग्नता की एक झलक को भी स्वीकार करने की बजाय बेसिरपैर के शब्दों का इस्तेमाल करते हुए आलोचना का पहाड़ खड़ा करने की असफल कोशिश करने लगते हैं। उनकी यही कोशिश सच के करीब पहुंच कर लिखने की हौसला अफजाई करती है लेखनी की।
निंदक नियरे राखिए
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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