खजुराहो लोकसभा सीट से इंडिया गठबंधन की सपा प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन रद्द हुआ
मध्यप्रदेश की खजुराहो लोकसभा सीट देश की कुछ चर्चित सीटों में शुमार हैं। एक तो यहां से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा लाख नकारात्मकता के बावजूद चुनाव मैदान में हैं तो दूसरी तरफ़ इंडिया गठबंधन के चलते यही एकमात्र सीट है जिसे कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी है या यूं कहें कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कांग्रेस से मांगी है। खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में शामिल आठ विधानसभाओं में से चांंदला विधानसभा को छोड़कर बाकी सात विधानसभाओं में समाजवादी पार्टी का न तो कोई ज्यादा प्रभाव है न ही वोट बैंक। समाजवादी पार्टी खजुराहो लोकसभा से ज्यादा प्रभावी तो टीकमगढ़, रीवा, सीधी लोकसभा क्षेत्र में बताई जाती है। फिर भी अखिलेश यादव ने कांग्रेस से खजुराहो लोकसभा क्षेत्र ही क्यों मांगा शुरू से ही लोकसभा क्षेत्र के राजनीतिक विश्लेषकों को मथ रहा था।
प्रदेश भाजपाई और सपाई राजनीति को करीब से जानने वालों की चौपाल से मिली खबरों पर यदि विश्वास किया जाय तो यह सीट पार्टी से ज्यादा दो पार्टी प्रमुखों के निजी हितों को साधने के लिए ली गई है ! बड़ी जद्दोजहद के बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पहले तो डाॅ मनोज यादव को कैंडीडेट घोषित किया मगर अखबारों की स्याही सूखी भी नहीं थी कि अखिलेश ने एकबार फिर मनोज यादव की टिकिट काटते हुए श्रीमती मीरा यादव का नाम घोषित कर दिया। विधानसभा चुनाव में भी मनोज यादव को प्रत्याशी घोषित करने के बाद बदला गया था। मीरा यादव पूर्व में मध्यप्रदेश की निवाडी विधानसभा सीट से विधायक रह चुकी हैं जबकि उनके पति दीपनारायण यादव उत्तर प्रदेश में झांसी जिले की गरौठा विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। मतलब यह है कि यादव दंपति को मजा हुआ राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है।
इंडिया गठबंधन की साझा उम्मीदवार मीरा यादव ने पूरे तामझाम के साथ नामांकन पत्र दाखिल कर भाजपा प्रत्याशी के सामने चुनौती पेश की। मगर जब नामांकन पत्रों की जांच का सिलसिला शुरू हुआ तो खबर आई कि इंडिया गठबंधन की साझा उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन पत्र कलेक्टर पन्ना ने निरस्त कर दिया। खबर मिल रही है कि मीरा यादव का नामांकन पत्र दो कारणों से निरस्त किया गया है। पहला कारण यह बताया जा रहा है कि कैंडीडेट को नियमानुसार नामांकन पत्र के साथ नवीन वोटर लिस्ट संलग्न करनी होती है मगर श्रीमती यादव ने पुरानी वोटर लिस्ट संलग्न की है। इसी तरह दूसरा कारण यह है कि प्रत्याशी को नामांकन पत्र के प्रत्येक पृष्ट पर हस्ताक्षर करने होते हैं मगर नामांकन पत्र के एक पृष्ट पर मीरा के हस्ताक्षर नहीं हैं। बताया जाता है कि मीरा यादव द्वारा दिए गए आवेदन पर सुनवाई करने के पश्चात कलेक्टर पन्ना ने मीरा यादव का नामांकन पत्र खारिज कर दिया है।
सवाल यह है कि विधायक रह चुके पति-पत्नी और वकीलों की टीम के द्वारा पूरी जांच पड़ताल के बाद भी नामांकन पत्र में यह कमी कैसे रह गई ? कहा जाता है कि राजनीति में जो दिखता है वैसा होता नहीं है और जो होता है वह दिखाई नहीं देता है। इंडिया गठबंधन की साझा प्रत्याशी श्रीमती मीरा यादव के नामांकन पत्र निरस्त होने के पीछे यही कुछ होता दिख रहा है ! पहले घोषित उम्मीदवार मनोज यादव का टिकिट काट कर मीरा यादव को उम्मीदवार बनाया जाना फिर स्क्रूटनी में मीरा यादव का नामांकन पत्र खारिज हो जाना कहीं यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा प्रत्याशी विष्णुदत्त शर्मा (प्रदेश भाजपाध्यक्ष) को वाकओवर देने की चाल तो नहीं है ! अगर ऐसा किया भी गया हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए ! अगर राष्ट्रीय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और क्षेत्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बीच इस तरह का अघोषित गठबंधन हो गया हो तो उसे राजनीति में दूषित नहीं माना जाता है खासतौर पर आज की दूषित हो चली राजनीति में।
इस तरह निर्मित हुई परिस्थिति को खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के जागरूक मतदाताओं के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है कि उन्हें अगले पांच साल तक एकबार फिर उसी व्यक्ति को झेलना पड़ सकता है जिसे बदलने के लिए वे पिछले पांच सालों से लोकसभा चुनाव का इंतजार कर रहे थे।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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