रेड लाइन क्रॉस करने पर लाइसेंस ड्राईवर का जप्त होगा या कार के मालिक का
कटनी। जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक प्रधानमंत्री रहते हुए जो इतिहास नहीं रच सके वह नरेन्द्र मोदी ने रच दिया है। वे देश के ऐसे अकेले प्रधानमंत्री बन गये हैं जिन्होंने सर्वाधिक झूठ बोलने, सर्वाधिक साम्प्रदायिक भाषण देने, धर्म और जातीयता के आधार पर विषाक्त वमन करने का रिकॉर्ड तो बनाया ही केन्द्रीय चुनाव आयोग द्वारा परोक्ष रूप से ही सही नोटिस नोटिस प्राप्त करने वाले भी बन गए हैं।
नवम्बर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "देश को घुटनों के बल झुककर सरकार की हाॅं में हाॅं मिलाने वाला चुनाव आयुक्त नहीं चाहिए। यसमैन नहीं चाहिए। देश को ऐसे चुनाव आयुक्त की जरूरत है जो जरूरत पड़ने पर प्रधानमंत्री पर भी कार्रवाई करे। उसके घुटने कमजोर नहीं होने चाहिए। अगर चुनाव आयुक्त ऐसे में प्रधानमंत्री पर कार्रवाई नहीं कर सकता तो क्या ये पूरी व्यवस्था के चरमरा जाने वाली बात नहीं होगी" । कहीं न कहीं चुनाव आयुक्तों की सरकार के आगे नतमस्तक होने वाली प्रवृति को ध्यान में रखकर ही सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पारित किया था कि केंचुआ की आयुक्त चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता और सीजेआई होंगे परन्तु मोदी सरकार ने संसद में नया प्रस्ताव पारित कराकर चयन समिति से सीजेआई को बाहर कर दिया। केंचुआ की कार्यवाहियां बताती हैं कि वह प्रधानमंत्री के आगे थर्डजेंडर दिखाई देता है।
पिछले 10 सालों में पहली बार केंचुआ ने साहस दिखाया है कि उसने राजस्थान के बांसवाडा की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन मानते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा को नोटिस जारी किया है। वैसे पूर्व परम्परानुसार नोटिस सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी को थमाया जाना चाहिए था। लोग केंचुआ पर उंगली न उठायें इसलिए बैलेंस बनाने के लिए कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी के भाषण पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी नोटिस देकर जबाव मांगा है।
21 अप्रैल 2024 को राजस्थान के बांसवाडा की चुनावी रैली में भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस भाषा और शैली का उपयोग किया वह निहायत घटिया और खतरनाक थी बल्कि मोदी का भाषण झूठ का पुलिंदा भी था। मोदी उवाच - "पहले जब उनकी सरकार थी तो उनने कहा था कि देश की सम्पति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब ये सम्पत्ति इकठ्ठी कर किसको बांटेंगे जिनके ज्यादा है बच्चे हैं उनको बांटेंगे। घुसपैठियों को बांटेंगे। क्या आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जायेगा। ये कांग्रेस का मैनीफैस्टो कह रहा है। वो माताओं बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। उसकी जप्ती करेंगे। उसकी जानकारी लेंगे और फिर वो सम्पत्ति को बांट देंगे और उनको बांटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि सम्पत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है"। कायदे से ऐसे बयानबाजों को तो चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने से तत्काल रोक दिया जाना चाहिए। देखना है कि केंचुआ माफी टाईप सफाई से संतुष्ट होता है या फिर कार्रवाई भी करता है। वैसे केंचुआ ने जब भी किसी ने धार्मिक भेद-भाव या धर्म के नाम पर उकसाने वाला बयान दिया है तो केंचुआ ने उसे चुनाव प्रचार से बैन किया है। 2019 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान इतना ही तो कहा था कि "विपक्षी पार्टियों की आस्था अली में है तो हमारी आस्था भी बजरंगबली में है" केंचुआ ने इसी के बाद योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार करने पर 3 दिन की रोक लगाई थी।
19 मार्च 2024 को तमिलनाडु के सेलम में नरेन्द्र मोदी ने बयान दिया था कि "मुंबई के शिवाजी पार्क में इंडिया एलायंस ने खुलेआम घोषणा की कि हिन्दू धर्म की जिस शक्ति में आस्था होती है उन्हें इस शक्ति का विनाश करना है हिन्दू धर्म में शक्ति किसे कहते हैं ये तमिलनाडु का हर व्यक्ति जानता है" जबकि मुंबई में इंडिया एलायंस की रैली में राहुल गांधी ने यह कहा था कि " हम एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं लड़ रहे हैं न हम बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे हैं। एक व्यक्ति को चेहरा बनाकर ऊपर डाल रखा है। हिन्दू धर्म में शक्ति शब्द होता है। हम उस शक्ति से लड़ रहे हैं। एक शक्ति से लड़ रहे हैं। अब सवाल उठता है कि वो शक्ति क्या है। जैसे किसी ने यहां कहा राजा की आत्मा ईवीएम में है। सही है। हिन्दुस्तान की हर संस्था में है। ईडी में है, सीबीआई में है, इनकम टैक्स के में है"। स्पष्ट है कि मुंबई में राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जैसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तमिलनाडु के सेलम में बोल रहे थे।
राजस्थान के बांसवाडा की रैली में पीएम मोदी के दिये गये विषाक्त भाषण पर भाजपा अध्यक्ष नड्डा को नोटिस मिलने के बाद भी नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के मुरैना में मुसलमानों को लेकर बयानबाजी करने से बाज नहीं आए। मोदी उवाच - "कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक में जितने भी मुस्लिम समाज के लोग हैं उच्च वर्ग के होंगे, धनी होंगे, व्यापारी होंगे, उद्योगपति होंगे, न्यायमूर्ति होंगे, कोई भी होंगे बस वो सिर्फ मुसलमान होना चाहिए। अगर वो मुसलमान है तो उन्होंने रातों-रात एक कागज निकाल कर हस्ताक्षर करके उन सबको ओबीसी घोषित कर दिया। ओबीसी घोषित कर दिया तो बहुत बड़ा तूफान हो गया यानी वहां कांग्रेस ने विद्या और नौकरी में ओबीसी को मिल रहे आरक्षण में इतने सारे नये ओबीसी डाल दिए कि ओबीसी समाज को जो आरक्षण मिलता था वो उनसे छीन लिया, चोरी छिपे छीन लिया और जो मुसलमानों को नया ओबीसी बना दिया, गैर कानूनी तरीके से बना दिया, संविधान के विपरीत बना दिया, बाबा साहब अम्बेडकर की भावना के विरुद्ध बना दिया। उस मुस्लिम समाज को ओबीसी को जो मिलता था वो लूट करके उनको दे दिया"। मोदी के इस बयान पर कांग्रेस का कहना है कि यह पूरी तरह से झूठ है। कर्नाटक के सीएम सिध्दारमैया ने ट्यूट किया है कि" संवैधानिक संशोधन मनमाने तरीके से नहीं किए जाते हैं। सामाजिक, आर्थिक सर्वे के बाद ही आरक्षण की समीक्षा होती है बल्कि राज्य सरकार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मामले में संशोधन का अधिकार ही नहीं है। लगता है कि पीएम मोदी इन बातों की जानकारी भी नहीं रखते। कर्नाटक में मुसलमानों को पिछड़ी जाति में डाला गया है यह कोई नया नहीं किया गया है। 1974 में पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है। कर्नाटक में पिछले 30 साल से आरक्षण लागू है। राज्य में कई बार बीजेपी की सरकार रही है। पिछले 10 साल से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार है कभी भी इस आरक्षण को लेकर सवाल नहीं किया गया न बीजेपी ने किसी कोर्ट में चुनौती दी। 2 साल पहले खुद नरेन्द्र मोदी ने एएनआई के सीता प्रकाश को साक्षात्कार में कहा था कि गुजरात में मुसलमानों की 70 जातियों को आरक्षण मिला है। इसी तरह बिहार में भी आरक्षण है। सितम्बर 2015 में आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य (हिन्दी) तथा आर्गेनाइजर (अंग्रेजी) में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हवाले से छपा था कि आरक्षण की समीक्षा करने की जरूरत है। एक अराजनीतिक समिति बनाकर तय करें कि आरक्षण का फायदा किन लोगों को और कितने समय तक मिलना चाहिए।
1 मार्च 2024 को केंचुआ ने सभी राजनीतिक दलों को एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमें आयोग ने साफ - साफ लिखा है कि "वोटर की जाति या सांप्रदायिक भावना के आधार पर कोई अपील जारी नहीं होगी। ऐसी कोई अपील नहीं होगी जिससे पहले से मौजूद दो समुदायों के बीच के अंतर को बढ़ावा मिले, दोनों के बीच नफरत फैल जाय। जाति, संप्रदाय या भाषा के आधार पर समूहों के बीच तनाव भड़काने का प्रयास नहीं हो। राजनीतिक दल और उनके नेता झूठे बयान नहीं दें। वोटर को नहीं भरमायें। अपुष्ट आधार पर आरोप लगाने से बचना चाहिए"। सीईसी राजीव कुमार ने 16 मार्च 2024 की प्रेस कांफ्रेंस में सबके सामने कहा था कि" पालिटिकल पार्टी के जितने भी बड़े नेतागण स्टार कैंपिनर्स हैं जो कैंपेनिंग करेंगे उनके व्यक्तिगत नोटिस में हमारी गाइडलाइन को पालन कराने की जिम्मेदारी पालिटिकल पार्टी की है"। सीईसी ने यह भी कहा था कि "हेट स्पीच, किसी की प्रायवेट लाइफ पर टीका-टिप्पणी न की जाए। हम केवल गाइडलाइन भर जारी नहीं कर रहे हैं, हम उससे भी आगे जाकर कार्रवाई करेंगे। आचार संहिता उल्लंघन के मामले में एक्शन लेते वक्त उसका इतिहास भी देखेंगे"।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो अपुष्ट आधार पर ढेरों आरोप लगाये हैं। कांग्रेस के घोषणा पत्र को तो मुस्लिम लीग की सोच का बता दिया। मंगलसूत्र, सम्पत्ति का एक्स रे और बांटने का आरोप लगा दिया जबकि कांग्रेस के घोषणा पत्र में ऐसा कुछ नहीं लिखा है। पीएम नरेन्द्र मोदी अपनी हर रैली में अलग - अलग तरीके से मुसलमानों को टारगेट कर रहे हैं। घोषणा पत्रों को लेकर झूठ बोल रहे हैं। 2019 में भी नरेन्द्र मोदी के भाषण आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे थे मगर केंचुआ ने कार्रवाई करने के बजाय क्लीन चिट दी थी। इसके पहले आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले को आयोग सीधे नोटिस देता आया है। रणजीत सुरजेवाला, सुप्रिया श्रीनेत, आतिशी, दिलीप घोष के नाम लिए जा सकते हैं। यह अप्रत्याशित एवं पहली घटना है जब आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों को सीधे तौर पर नोटिस देने के बजाय पार्टी अध्यक्षों को जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 77 के तहत नोटिस देकर जबाव तलब किया गया है।
22 मार्च 2024 को पूर्व आईएएस अधिकारी ई ए एस सरमा ने मोदी के बयानों को लेकर केंचुआ में शिकायत दर्ज करायी थी अगर केंचुआ ने तभी एक्शन ले लिया होता तो शायद आज ये नौबत नहीं आती। नरेन्द्र मोदी जिस तरह से रैली दर रैली झूठ बोलने का रिकॉर्ड बनाते जा रहे हैं उसके मद्देनजर आयोग को उनका पिछला इतिहास देखने की जरूरत नहीं है फिर भी वह 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के दिए गए भाषणों पर नजरें इनायत कर सकता है जब उनके खिलाफ 4 - 4 मामलों में आयोग ने अपने एक सदस्य अशोक लवासा द्वारा प्रतिकूल टिप्पणी करने के बावजूद क्लीन चिट दी थी। लवासा चाहते थे कि आयोग उनकी अल्पमत राय को दर्ज करे मगर ऐसा नहीं किया गया। अशोक लवासा की एक चिट्ठी मीडिया में भी आई थी जिसमें उन्होंने कहा है कि "कई मामलों में उनके अल्पमत के फैसले को दर्ज नहीं किया गया और लगातार उनकी राय को दबाया जाता रहा है जो इस बहुसदस्यी वैधानिक निकाय के स्थापित तौर तरीकों से उलट है" । अशोक लवासा ने 18 अगस्त 2020 को चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया था जिसे 13 दिन बाद स्वीकार किया गया था। अशोक लवासा अगर इस्तीफा नहीं देते तो मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते थे।
15 अप्रैल 2024 को तमिलनाडु के नीलगिरी में केंचुआ के पर्यवेक्षक ने राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर की उस समय तलाशी ली थी जब वे वायनाड जा रहे थे। तब लोगों ने सवाल उठाया कि क्या नरेन्द्र मोदी के हेलीकॉप्टर की भी तलाशी लेगा केंचुआ का उड़नदस्ता। 2019 में उडीसा कैडर के आईएएस अधिकारी मोहम्मद मोहसिन ने नरेन्द्र मोदी के हेलीकॉप्टर की जांच की थी तो उसे यह कह कर नियमों के खिलाफ बताया गया था कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों को ऐसी जांच से छूट मिली हुई है। मोहसिन को निलंबित कर दिया गया जिस पर कैट ने रोक लगा दी। फिर आयोग ने उनका निलंबन भी वापस ले लिया था।
राहुल गांधी को भी तमिलनाडु में दिए गए उनके एक बयान को लेकर नोटिस जारी किया गया है। बीजेपी के अनुसार राहुल गांधी ने देश में गरीबी बढ़ने को लेकर गलत दावे किये हैं। राहुल गांधी ने पीएम नरेन्द्र मोदी के बारे में कहा है कि मोदी एक देश - एक भाषा - एक धर्म की बात कर रहे हैं। राहुल गांधी का यह आरोप गलत है। उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के बयानों को लेकर केंचुआ ने जयप्रकाश नड्डा और मल्लिकार्जुन खरगे को नोटिस जारी कर उन्हें धर्म संकट में डालने के साथ ही खुद को भी फंसा लिया है।
यक्ष प्रश्न है कि क्या नड्डा और खरगे में इतना साहस है कि वे नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी को इस बात की चेतावनी दे सकेंगे कि "वे अपनी भाषा को संयमित रखें और धार्मिक भेदभाव न फैलायें, गलत (झूठी) बयानबाजी करने से बाज आयें" । साथ ही क्या खुद केंचुआ इतनी हिम्मत कर पायेगा कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कार्रवाई कर सके। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ 20 हजार से अधिक ई मेल और हस्ताक्षर केंचुआ के पास भेजे जाने की खबरें मीडिया में छपी हैं।
29 अप्रैल 2024 की सुबह 11 बजे जवाब आने के बाद एकबार फिर केंचुआ का इम्तिहान शुरू हो जायेगा और जनता देख सकेगी कि आयोग संतुलन बैठा रहा है या कार्रवाई कर रहा है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Post a Comment