_उस तरह का पैसा_ कह कर ईशारे में बताई निर्मला ताई ने मोदी मैजिक की हकीकत

 

खरी - अखरी। _गारंटी-वारंटी कुछ नहीं पार्टी उस तरह के पैसे से लड़ती है चुनाव और जाति-धरम के समीकरण से मिलती है जीत_

एक तरफ देश की खजांची निर्मला सीतारमन के पतिदेव जाने-माने अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अलोकतांत्रिक करार देकर प्रतिबिंबित कर दिए गए इलेक्टोरल बांड्स को भारत के सबसे बड़े घोटाले के साथ ही इसे दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम काण्ड कह रहे हैं,  दूसरी तरफ़ उनकी पत्नी निर्मला ताई ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है तो वहीं तीसरी ओर 400 का फुग्गा फुलाने में पीएम को हांफी आ रही है। निर्मला ताई ने चुनाव न लड़ने का खुलासा गोदी मीडिया के चहेते एंकर - एंकरनियों द्वारा प्रायोजित साक्षात्कार के दौरान यह कहते हुए किया कि अब्बल तो उनके पास चुनाव लड़ने के लिए "उस तरह का पैसा" नहीं है दुब्बल चूंकि चुनाव जाति और धरम के नाम पर लड़े और जीते जाते हैं तो इस लिहाज से आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में उनके जीतने की संभावनाएं न के बराबर है । सीतारमन ने परोक्ष रूप से यही बताया है कि चुनाव जीतने के लिए मोदी की गारंटी - वारंटी कुछ नहीं है (झूठ का पुलिंदा है) उनकी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी पैसे से वह भी "उस तरह के पैसे" से चुनाव लड़ती है और जाति - धरम के समीकरणों के आधार पर ही जीत पाती है।

ऐसा नहीं है कि निर्मलाजी के पास पैसा नहीं है। राज्यसभा के नामांकन पत्र में उनने ढाई करोड़ के आसपास सम्पत्ति बताई थी। इतनी सम्पदा तो देश के 3/4 से ज्यादा लोगों के पास नहीं है। मतलब पैसा तो है मगर "उस तरह का पैसा" नहीं है जिस तरह का पैसा चुनाव लड़ने के लिए चाहिए होता है। तो सवाल है कि पार्टी द्वारा हज़ारों - करोड़ों का चुनावी चंदा काहे के लिए इकठ्ठा किया गया है। कहा जा सकता है कि पिछले 10 साल में हर जायज-नाजायज तरीके से अकूत धन संपदा बटोरने वाली दुनिया की सबसे भृष्ट पार्टी की रोकड़ मंत्री का यह दावा विशुध्द पाखंड के साथ ही बेईमानी, भृष्टाचार, काली कमाई से अपना पर्सेंटेज वसूलने के लिए केन्द्रीय जांच ऐजेंसियों के माध्यम से ब्लैकमेलिंग तक के आरोपों से घिरी पार्टी की नग्नता को छिपाने के लिए बयानों की झीनी आड़ मुहैया कराने की चतुराई है। खुद को ईमानदार बताने वाली ताई चुनावी चंदा घोटाले से अनभिज्ञता या निर्लिप्तता नहीं बता सकती क्योंकि वह भारत देश के वित्त मंत्रालय की मुखिया हैं न कि चालीस चोरों की तिजोरी के चौकीदारों की थानेदारिनी हैं ।

कहने को तो जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार लोकसभा की छोटी सीट पर 75 लाख और बड़ी सीट पर 95 लाख रुपए खर्च करने की सीमा तय  है लेकिन हकीकत यह है कि हर सीट पर 3 - 5 करोड़ रुपये तक खर्च होते हैं। भाजपा ने तो लोकतंत्र को खोखला बनाने के साथ ही चुनाव को अत्यधिक मंहगा बना दिया है। नव उदारीकरण से चुनाव में जो पैसे की दखल बढ़ने की शुरुआत हुई थी वह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच रहा है। अब तो जिसके पास जितना पैसा होगा उसके जीतने की संभावना उतनी अधिक होगी। पिछले 10 सालों में राजनीतिक संतुलन इस कदर एक पक्षीय हो गया है कि अब भरपूर जनाधार वाली पार्टियों को भी मतदाता तक अपनी बात पहुंचाना दुष्कर हो गया है। पिछले 10 सालों में भाजपा के नेताओं ने चमत्कारिक रफ्तार से अपनी रईसी बढ़ाई है। उदाहरण के तौर पर हांडी के एक चावल के रूप में देश के गृहमंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह की कंपनी को लिया जा सकता है जिसकी सम्पत्ति एक साल में 50 हजार रुपये से बढ़कर 80 करोड़ 50 लाख रुपये हो गई।

वित्त मंत्री की छत्रछाया में ही अरबपतियों की संख्या 55 से 271 हो गई। 17 गुना इजाफा बैंकों के साथ होने वाली धोखाधड़ी में हुआ। बमुश्किल एक प्रतिशत अति रईसों ने देश की 40 फीसदी दौलत पर कब्जा कर लिया है। आधी आबादी के हिस्से में तो 0.1 प्रतिशत भी नहीं बचा। कार्पोरेटस को दी गई कर्ज माफी, टैक्सों में कमी, डूबंत पैसों की अदायगी की सौदेबाज़ी ने जनता और अर्थव्यवस्था को दलदल में डुबो दिया। भाजपा के हिस्से में "उस तरह का पैसा" असल में "इस तरह का पैसा" है के कबूलनामे ने भाजपा की "उस तरह के पैसे" पर निर्भरता उजागर करने के साथ ही उस मुखौटे को भी नोच कर फेंक दिया है जिसे जनता के प्रतिनिधि होने के दावे के रूप में धारण किया जाता है। किस तरह के पैसे से चुनाव जीता जाता है, जीते जिताओं को खरीदा जाता है।

               चोर मचाये शोर

एक ओर मंत्राणी "उस तरह के पैसे" को अशुध्द और नापाक बता रही है तो दूसरी ओर पीएम "इस तरह के पैसे" को शुध्द और पाक बताने के लिए जी जान लगा रहे हैं। चुनावी चंदे के खुलासे के बाद जहां दुनिया भर में सत्ता पार्टी और सरकार पर थू - थू हो रही हो, हर रोज एक नया खुलासा हो रहा हो जिससे पता चल रहा है कि मानव जिंदगी से खिलवाड़ करने वाली दवा कंपनियों से भी सैकड़ों - करोड़ों रुपये वसूले गये हैं उसके बाद भी बेशर्मी की हद पार करते हुए मेरठ की चुनावी सभा में पीएम खुद को भृष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला सिपाही बताते हुए "चोर मचाये शोर" के मुहावरे को चरितार्थ करते दिख रहे थे। चौधरी चरण सिंह की तस्वीर के पीछे छुपकर किसानों के साथ किये गये अमानवीय जुल्मों पर परदा डालने के लिए झूठ और आधे सच की बौछार करते दिखे। तमिलनाडु में तो एक कदम आगे बढ़ाते हुए चुनावी चंदे का पर्दाफाश करने, उसका हिसाब मांगने वालों को यह कहते हुए धमका रहे थे कि कि कल उनको पछताना होगा।

    मोदी की हड़बड़ाहट अनायास नहीं

नरेन्द्र मोदी द्वारा जनता को नये भारत और विकास की कहानी सुनाकर न केवल गुमराह किया जा रहा है बल्कि असल मुद्दों से भटकाया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के भाषणों से मंहगाई, बेरोजगारी जैसे ज्वलंत शब्द तो गायब हैं ही वे तो दिल्ली और अन्य स्थानों पर किसानों द्वारा अपनी जायज मांगों को लेकर किये गये आन्दोलन के दौरान अलग - अलग तरीकों से कराई गई 700 किसानों की हत्याओं, अपनी आबरू के साथ किये गये खिलवाड़ पर न्याय पाने के लिए धरने पर बैठी महिला पहलवानों को न्याय देने के बजाय दिल्ली की सड़कों पर घसीटे जाने, मणिपुर की महिलाओं के साथ दुष्कर्म के बाद निर्वस्त्र कर सड़कों पर घुमाये जाने, वाराणसी में भाजपा आईटी सेल के तीन सदस्यों द्वारा छात्रा के साथ दुष्कर्म करने की घटना सामने आने के बाद भी अपनी जुबान बंद रखने पर पश्चाताप के दो शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं। घोटालों, काण्डों, जनजीवन की बरबादी के जोड़ से पैदा हुए जनाक्रोश से मुंहबली का धम्मन फूलने लगा है। वित्त मंत्री का चुनाव लड़ने से इंकार, टिकिट मिलने के बाद भी आधा दर्जन उम्मीदवारों का टिकिट लौटाना, मीडिया और नामी-गिरामी ऐजेंसियों का साथ होने के बावजूद पीएम की हड़बड़ाहट अनायास व अस्वाभाविक नहीं है। यह दीवार पर लिखी उस इबारत को पढ़ लेने का नतीजा लगता है जिसमें सत्ता की बिदाई का ऐलान साफ - साफ शब्दों में दर्ज है।

        न सावन सूखे न भादों हरा हो

व्यंगकार राजेन्द्र शर्मा लिखते हैं कि भला हो रामदास आठवाले का जिन्होंने साफ - साफ शब्दों में बता दिया है कि जिस किसी पर भी भृष्टाचार के आरोप हों गद्दीदारियों (भाजपा) के पाले में उनका स्वागत है, भले ही भृष्टाचार का आरोप खुद पीएम ने लगाया हो या गद्दीदारियों ने। जिसको मोदी के घर आने से परहेज हो वह आराम से जेल जा सकता है। मोदी द्वारा बनाई गई वाशिंग मशीन गंगा मैया माॅडल और महात्मा गांधी माॅडल का मिलाजुला रूप है। बापू ने कहा है कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं मतलब भृष्टता या भृष्टाचार से घृणा करो भृष्टाचारियों से नहीं। मोदी ने भृष्टाचारियों से मुहब्बत करने का जो विशालकाय माॅल खड़ा किया है जिसमें रखी वाशिंग मशीन में इधर से भृष्टाचारियों को डालो उधर से पाक साफ निकालो हो रहा है । मोदी की उसी वाशिंग मशीन से मोदी और उनकी पार्टी द्वारा भृष्ट कहे जाने वाले हेमंत विश्रव शर्मा से लेकर नवीन जिंदल तक न केवल पाक साफ होकर बाहर आये बल्कि कुछ को सांसद, विधायक तो कुछ को मंत्री, उप मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री बना दिया गया है। पापियों से इतनी मुहब्बत तो महात्मा गांधी ने भी न की होगी जितनी मुहब्बत नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। मोदी की पार्टी जहां इतना सब बदल रही है तो लगे हाथ उसे अपना निशान "कमल" से बदलकर "वाशिंग मशीन" कर लेना चाहिए। जिससे परम्परा की परम्परा और आधुनिकता की आधुनिकता दोनों बनी रहेगी । यदि कहीं पब्लिक की मति फिर गई तो कमल कुम्हला भी सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का निशान कम से कम सदाबहार तो हो, जो न सावन सूखे न भादों हरा हो।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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