सत्ता सदैव नहीं रहती और अहंकार चूर - चूर हो जाता है

( खरी - अखरी ) भीतर से डरा हुआ आदमी चीख चिल्ला कर खुद को निर्भीक दिखाने की कोशिश करता है। ऐसा ही देश में चल रहे आम चुनाव के दौरान भाजपा के नेता खासतौर पर नरेन्द्र मोदी करते हुए दिखाई दे रहे हैं। आम चुनाव में दरक रही सत्तात्मक कुर्सी के पायों को साधने के लिए ठीक वैसे ही हालात पैदा किए जा रहे हैं जैसे त्रेतायुग में राम - रावण के युद्ध के दौरान थे - रावण रथी विरथ रघुवीरा। जो नरेन्द्र मोदी के आन्तरिक भय को व्यक्त कर रहा है। आईटी, ईडी, सीबीआई, ब्यूरोक्रेसी, मीडिया के साथ बीच - बीच में न्यायपालिका के सहयोग से विपक्ष के सामने ऐन चुनाव के बीच ऐसे हालात पैदा किए जा रहे हैं कि वह या तो चुनाव मैदान से पलायन कर जाय फिर मैदान में रहे तो असहाय, निरूपाय, पंगु बनकर।

आम चुनाव में विपक्षी पार्टियों को लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं देना मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के डर को उजागर करने के लिए पर्याप्त है। साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल (एनडीए) जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। उस पर भाजपा के लिए नीम चढ़ता करेला यह कि उडीसा में सीट शेयरिंग करते - करते बीजू जनता दल का छिटक जाना तथा पंजाब में पुराने हमसफ़र अकाली दल का कदमताल करने से मना कर देना। लगता है कि नरेन्द्र मोदी को अब अपने किसी भी दांव पर भरोसा नहीं है, हिन्दू - मुस्लिम का कार्ड चल नहीं रहा (लकड़ी की हांडी बार बार चूल्हे पर नहीं चढती), राम मंदिर ईशू फ्लाप हो गया है शायद इसीलिए असल मुद्दों मसलन बेरोजगारी, मंहगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, भृष्टाचार, असुरक्षा, गुड़ांगर्दी, मेरा हरिश्चन्द्र तेरा नटवरलाल आदि से जनता का ध्यान भटकाने  के लिए 2047 का सपना दिखाया जा रहा है (कौन जीता है तेरी जुल्फों के सहर होने तक)।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और इंस्टीट्यूट आफ ह्यूमन डेवलपमेंट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में बेरोजगारी 65 फीसदी है। देशभर के बेरोजगारों में 83 फीसदी जवान लोग हैं। रिपोर्टें बताती हैं कि पिछले दस सालों में बेरोजगारी तीन गुना बढ़ी है। अमीर आसमान और गरीब पाताल की ओर बढ़ रहे हैं। देश की 40 फीसदी सम्पत्ति एक फीसदी अमीरों की मुठ्ठी में कैद है। इस मामले में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका ज्यादा बेहतर हैं। देश की बड़ी संख्या को 5 किलो मुफ्त अनाज की लाईन में लगाकर मोदी सरकार शर्म को भी शर्मसार करते हुए अपनी पीठ थपथपा रही है। दूसरे नजरिए से देखा जाए तो अमीरों की अमीरी बढ़ाने के लिए देश के बड़े तबके को गरीब बनाकर 5 किलो मुफ्त अनाज देने की लाईन में खड़ा कर देना सरकार के लिए घाटे का सौदा नहीं है।

ऐन आम चुनाव के बीच जिस तरह से 28 दलों के संयुक्त विपक्षी गठबंधन (इंडिया) ने नई दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में शक्ति प्रदर्शन कर मोदी सरकार को इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं कि 18 वीं लोकसभा का चुनाव इतना आसान नहीं है जितना वह और उसके घटक दल मानकर चल रहे हैं। इंडिया गठबंधन की रैली ने नरेन्द्र मोदी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं जिसकी झलक उसी दिन भाजपा की मेरठ में हुई चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी के भाषण में सुनाई दी।

2 माह पहले की गई झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता व झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत की गिरफ्तारी के बाद 21 मार्च को आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी भी मोदी के आंतरिक भय को बखूबी उजागर करती है। 31 मार्च रविवार को दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में हुई विपक्षी दलों की संयुक्त रैली देशवासियों के बीच इस संदेश को देने में कामयाब रही है कि गठबंधन एकजुट और मजबूत है। रैली ने भाजपा, उसके सहयोगी दलों तथा उनके द्वारा पालित पोषित मीडिया द्वारा निर्मित मिथक को भी खंडित कर दिया है कि इंडिया नामक गठबंधन सत्ता पाने के लिए बना है। रैली में उपस्थित पूर्व - पश्चिम - उत्तर - दक्षिण के सभी राज्यों व क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे विभिन्न दलों के वक्ताओं ने स्पष्ट कर दिया कि वे सभी देश में लोकतंत्र एवं संविधान को बचाने के उद्देश्य से एकत्र हुए हैं।

इसका पता तो इस बात से भी चलता है कि गठबंधन में ऐसे दल भी शामिल हैं जिनके बीच सीटों के बंटवारे पर तालमेल नहीं हो पा रहा है। वे सभी अपने - अपने क्षेत्र में एकला चुनाव लड़ रहे हैं। रामलीला मैदान में एकत्रित सभी दलों के नेताओं ने मोदी के दस वर्षीय निरंकुश कार्यशैली की कटु और बेख़ौफ़ आलोचना की है । चुनाव में सभी दलों को समान अवसर देने का दावा करने वाले चुनाव आयोग को अपने दायित्व का निर्वहन करने में असफल होने पर आड़े हाथों लिया गया है । कहा जा सकता है कि विपक्षी गठबंधन की रैली लोकतंत्र पर छाए संकट को उजागर करने में सफल रही है। रैली को जीवंतता प्रदान किया सुनीता अरविंद केजरीवाल तथा कविता हेमंत सोरेन ने। गोदी मीडिया ने भी अपनी गिरती हुई साख को बचाने के लिए मजबूरन सुनीता केजरीवाल और कविता सोरेन की गले मिलती फोटो दिखाई।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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