_गिरफ्तारी कहीं बीजेपी और केजरीवाल की नूरा कुश्ती तो नहीं !_

ना रामलीला मैदान होता --- ना अन्ना होते ---ना मोदी होते

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही स्टेट बैंक ने इलेक्ट्रोरल बांड्स की सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को सौंपी है जिसे निर्वाचन आयोग ने अपनी बेबसाइट पर डाल दिया है। जिससे चंदे के धंधे की सारी पोल खोलने की तैयारी हो चुकी है। इसी तरह कांग्रेस के बैंक खातों पर रोक लगाने पर शायद पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित पूर्व कांग्रेसाध्यक्ष द्वय  श्रीमती सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी ने एक साथ पत्रकार वार्ता को संबोधित किया है और ये अखबारों की हेड लाइन बनने वाली थीं परन्तु इन हेड लाइन को रोकने के लिए हेड लाइन हंटिंग में महारत हासिल कर चुके मोदी ने केजरीवाल की गिरफ्तारी करवाकर अखबारों की हेड लाइन को ही बदलवा दिया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी बीजेपी और केजरीवाल की नूरा कुश्ती है। इसकी आशंका इसलिए भी बलवती होती है कि आप पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह की गिरफ्तारी पर इस तरह का कोई ड्रामा आम आदमी पार्टी ने नहीं किया था। ईडी चाहती तो केजरीवाल को सोरेन की तरह गिरफ्तार कर सकती थी। मगर सवाल तो टाइमिंग का था कि केजरीवाल को कब गिरफ्तार किया जाय या फिर यह भी कह सकते हैं कि केजरीवाल कब गिरफ्तार होना चाहते हैं। देश में वर्तमान सत्ता की हुकूमत को केजरीवाल की ही देन कहा जा सकता है। ना रामलीला मैदान होता ना अन्ना होते ना मोदी होते। केजरीवाल बीजेपी के गेम प्लान का हिस्सा हो सकते हैं ! इस संभावना को मूर्त रूप देता है केजरीवाल का व्यवहार। इंडिया एलायंस में सबसे आखिर में शामिल हुए केजरीवाल। इंडिया एलायंस को सबसे ज्यादा लतियाया केजरीवाल ने। गुजरात, गोवा, एमपी, उत्तराखंड में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारे केजरीवाल ने। यह भी तो कहा जा सकता है कि केजरीवाल मूलतः बीजेपी और आरएसएस की संस्कृति के उत्पाद हैं। उनकी विश्वसनीयता संदेहास्पद है। मुख्यमंत्री मकान, दिल्ली जल बोर्ड, एलजी विवाद, पीएम आलोचना आदि के बाद भी केजरीवाल के खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। मगर जिस दिन खरगे, सोनिया, राहुल की प्रेस कांफ्रेंस होती है उसी दिन केजरीवाल की गिरफ्तारी का प्रपंच रचा जाता है। क्या इसे आवाम के दिमाग का दही बनाना नहीं कहा जा सकता ! हो सकता है यह आवाम को निराशा में डुबो देने की दिशा में उठाया गया कदम हो ।

_मामले को मोदी - बीजेपी के नजरिए से भी देखा जाना चाहिए_

लोगों को तो यह भी लगने लगा है कि मोदी और बीजेपी द्वारा जिस तरह से 400 पार के लक्ष्य को साधने के लिए ओछे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं उससे वे एकतंत्रात्मक राज चाहते हैं जिससे वे अपनी मनमर्जी का संविधान बना सकें क्योंकि वर्तमान संविधान उन्हें अपनी राह का रोड़ा समझ में आता है। वैसे भी उनके वैचारिक पुरखों ने कभी भी तिरंगे को स्वीकार नहीं किया था। देश दुनिया को भी तो पता चलना चाहिए कि मदर आफ डेमोक्रेसी में किस तरह का लोकतंत्र चल रहा है। यह तो कहा ही जाने लगा है कि भारत में रूल आफ ला की जगह रूल आफ रूलर हो गया है।

देखा जाए तो पूरा मामला विपक्ष के लिहाज से देखा जा रहा है बीजेपी - मोदी के लिहाज से नहीं। इसे इस नजरिये से भी देखा जाना चाहिए कि मोदी सरकार के जाने से अडानी - अंबानी का क्या होगा ? स्टाक मार्केट का क्या होगा ? इन्वेस्टर्स का क्या होगा ? शेयर होल्डर्स का क्या होगा ? गोदी मीडिया का क्या होगा ? ज्यूडिशरी में बैठे उन तमाम लोगों का क्या होगा जो इस सरकार को बचा रहे हैं ? रिटायर्मेंट के बाद मलाईदार पोस्टिंग लेने वालों का क्या होगा ? उस ब्यूरोक्रेसी का क्या होगा जिसमें 3 फीसदी ही पिछड़ी जाति के हैं ? कहा जा सकता है कि मोदी ने एक ऐसा संसार खड़ा कर दिया है जो विपक्ष को प्राप्त नहीं है। इसीलिए इस हुकूमत को बचाने के लिए बहुत सारी ताकतें लगी हुई हैं।

           सियासत ही सियासत 

चोरों कुतिया मिल गई पहरा किसका देय_  

2013 - 2014 में जब मोदी और बीजेपी ने यह कहते हुए दिल्ली की सल्तनत हथियायी थी कि वह भृष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने आये हैं तब हवा में एक नई तरह की खुशबू के साथ ही इस बात का भी का अह्सास हुआ था कि यह सियासत नहीं है मगर 2024 आते - आते न केवल हवा दूषित हुई है बल्कि देश को इस बात का भी भलीभांति अह्सास हो गया है कि मोदी और बीजेपी का सारा खेला केवल और केवल सियासत के लिए ही खेला गया है। क्योंकि जितने भी भृष्टाचारी चेहरे हैं उनमें से तकरीबन 80 फीसदी चेहरे बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। इसी तरह मोदी और बीजेपी द्वारा परिवारवाद से आरोपित परिवारों में से लगभग 90 फीसदी परिवार या तो बीजेपी परिवार का हिस्सा बन चुके हैं या फिर एनडीए के पाले में जा चुके हैं (बीजेपी के भीतर खुद के परिवारवाद को छोड़कर)। इलेक्टोरल बांड्स के वस्त्रहीन होने से यह भी आईने की तरह साफ हो गया है कि मोदी और बीजेपी द्वारा रागा जा रहा अलाप कि काला धन जमा करने वालों को छोड़ा नहीं जायेगा - लूटने वालों से पाई - पाई वापस ली जायेगी किसी जुमले जैसा ही है । जब इलेक्टोरल बांड्स के जरिए 1364 करोड़ रुपये के आसपास वो कम्पनी चुनावी चंदा देती है जिसकी साढ़े चार सौ करोड़ से ज्यादा की सम्पति ईडी ने जप्त की है (इसी तरह की ढेर सारी कम्पनियां और लोग हैं जिनने छापे के पहले या छापे के बाद इलेक्टोरल बांड्स के जरिए चुनावी चंदा देकर खुद को और अपने धंधे को सिक्योर किया है) तब मोदी और बीजेपी को देश को बताना चाहिए कि ये कौन सी ईमानदारी है, ये कौन सी शुचिता है और ये कौन सा तरीका है बेईमानों को पकड़ने का।

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देखना दिलचस्प होगा कि इलेक्टोरल बांड्स (चुनावी चंदे का धंधा) के खुलासे, अरबों रुपये की धुंध में छुपे पी एम केयर फंड, विपक्षियों को जेल में बंद कर एक तरफा चुनाव कराने की कोशिश, आम आदमी के सरोकार से जुड़े मुद्दे मसलन बेरोजगारी, मंहगाई, भय, भूख, भृष्टाचार, आदि चुनावी प्रचार से दूर रहने के बाद भी चुनावी ऊंट किस करवट बैठक लेता है_

_सच ही कहा होगा नरेन्द्र मोदी ने_ ---

रुपैया उसी देश का गिरता है जिस देश का प्रधानमंत्री गिरा हुआ होता है

_खुद का थूका खुद पर गिर रहा है_

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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