जब तक जाति - धन - दौलत की राजनीति के रावण का वध नहीं होगा तब तक ना राम आयेंगे ना ही राम राज्य
जब तक जाति - धन - दौलत की राजनीति के रावण का वध नहीं होगा तब तक ना राम आयेंगे ना ही राम राज्य
सीता - हनुमान भी तलाशते रहेंगे जल - जंगल - जमीन
2024 के आम चुनाव में सरकार चुनने के पहले मतदाताओं को इस बात पर विचार कर लेना चाहिए कि क्या लोकतंत्र में बहुमत की सरकार अपने आवाम को अपमानित कर सकती है ? क्या संसद को अर्थहीन बना सकती है ? क्या संविधान का मजाक उड़ा सकती है ?
देखने में आ रहा है कि राजकाज तो सुबह से शाम तक घोषणाओं, उपदेशों, आत्ममुग्धताओं बीत रहा है। प्रधानमंत्री अपनी छबि, अपना साम्राज्य बचाने में लगे हुए हैं। सरकार लाखों-करोड़ों रुपयों के विज्ञापन छाप - छाप कर अपनी असफलताओं को ढकने की असफल कोशिश में लगी हुई है। जबकि हकीकत तो यही लग रही है कि सरकार के पास झूठे आश्वासन देने के अलावा कुछ बचा नहीं है। देश भूत, भविष्य, वर्तमान, गहरे सामाजिक - आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। विकास और परिवर्तन की वर्तमान राजनीति गरीब को गरीब और अमीर को अमीर बना रही है। नागरिकों को हिन्दू - मुस्लमान में बांट दिया गया है। आम आदमी का रोना बिलखना बेमानी हो गया है।
देखा जाए तो देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं - गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, भृष्टाचार। 2014 - 2019 में हुए आम चुनाव में मतदाताओं ने इन दुश्मनों से निपटने के लिए वोट देने के बजाय वोट दिया था धर्म - जाति के नाम पर। 2024 के आम चुनाव में एकबार फिर से मतदाताओं को धर्म - जाति के नाम पर वोट देने का कुचक्र रचा जा रहा है। मतदाता भी इस कुचक्र में फंसता दिख रहा है। जबकि आम जनता को धर्म - जाति - साम्प्रदायिक राजनीति के चेहरे को पहचान लेना चाहिए था। लोकतंत्र में गरीब की औकात कितनी रह गई है इसे बखूबी समझ जाना चाहिए था। लोकतंत्र साम्प्रदायिक राजनीति के कर्क रोग से पीड़ित है। राम राज्य के स्वप्न लोक में विचरण कर रहे आवाम को समझ लेना चाहिए कि जब तक धर्म - जाति - धन - दौलत की राजनीति के रावण का वध नहीं होगा राम की अयोध्या वापसी असंभव है। राम राज्य नहीं आयेगा। सीता (समाधि के लिए) तथा हनुमान जल - जंगल - जमीन तलाशते रहेंगे !
सत्ता पार्टी के पालित - पोषित न्यूज चैनल्स जुट गए हैं मतदाताओं का माइंड वाश करने !
निर्वाचन आयोग ने जिस दिन से चुनावी कार्यक्रम की घोषणा की है सत्ता पार्टी से पालित - पोषित - उपकृत न्यूज चैनलों ने एक्जिट पोल के जरिए भाजपा की एक तरफा सरकार बनती हुई दिखा कर आम मतदाताओं का माइंड वाश करना शुरू कर दिया है। गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, भृष्टाचार जैसे जन सरोकार के साथ ही इलेक्टोरल बांड्स के जरिए की गई चंदाखोरी के समाचार गोदी मीडिया की खबरों से उसी प्रकार गायब हैं जैसे गदहे के सिर से सींग। सोशल मीडिया में जरूर चंदा दो - धंधा लो वाली खबरों के साथ ही गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, भृष्टाचार वाली खबरें दिखाई दे रही हैं। ईवीएम से खेले जाने वाले खेला को तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने ईवीएम के खिलाफ अभियान चलाने वालों की खिल्ली उडाते हुए चुटकियों में खारिज कर ही दिया है।
पूर्व आम चुनावों की भांति निर्वाचन आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर की जाने वाली कार्यवाही तो दूसरे दिन से ही पक्षपाती दिखाई देने लगी है। देखने आया है कि आदर्श आचार संहिता लगने के पहले ही विपक्षियों को आचार संहिता का कड़ाई से पालन करने की नसीहत देने वाला निर्वाचन आयोग सत्तापक्ष और खासतौर पर कुछ नामचीनों का नाम आने पर चुप्पी साध लेता है।बताया जाता है कि तृणमूल कांग्रेस ने आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किए गए आचार संहिता के उल्लंघन की दो शिकायतें निर्वाचन आयोग को की हैं मगर उस पर आयोग ने क्या कार्रवाई की है उससे देशवासियों को अब तक अवगत नहीं कराया गया है।
इलेक्टोरल बांड्स की तरह पी एम केयर फंड का भी सच जानने के लिए देश बेचैन है। पी एम केयर फंड की सच्चाई भी सुप्रीम कोर्ट ही देशवासियों को बतवा सकता है। सरकार और सत्ताधारी तो बताने से रहे।
_विश्लेषकों के मुताबिक_
ELECTORAL BONDS IS JUST A TEASER, PM CARES FUND IS GOING TO BE THE MOTHER OF ALL SCAMS IN INDIA.
WHEN WILL SC OPEN THIS SCAM ?
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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