किसी के दिल में क्या छुपा है ये तो बस खुदा ही जानता है
कटनी। _बुढिया तो बच गई मगर मौत घर देख गई_ यह कहावत सटीक बैठती है कमलनाथ के कमल थामने की अटकलों के बीच। इस कहावत को अमली जामा पहनाने का काम भी कमलनाथ ने किया और उस पर मुहर लगाई कमल के बेटे नकुलनाथ ने। स्वर्गीय इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कहे जाने वाले कमलनाथ के भाजपा प्रवेश की खबरें सोशल मीडिया से लेकर गोदी मीडिया तक में कलमकारों की लेखनी मुताबिक छायी रही। जहां कमल के बेटे छिंदवाड़ा सांसद नकुल नाथ ने अपने एक्स अकाउंट से कांग्रेस के मोनो को हटाया वहीं खुद कमलनाथ ने पत्रकारों द्वारा पूछे गए भाजपा ज्वाइन करने वाले सवाल पर साफतौर पर इंकार करने के बजाय यह कह कर हवा दी कि सबसे पहले आपको बताऊंगा। कमलनाथ के भाजपा प्रवेश की अटकलों का खंडन करने के लिए न तो दिल्ली ने पहल की न ही मध्यप्रदेश ने।
कमलनाथ के भाजपा ज्वाइन करने की अटकलों के बीच एक बात अच्छी हुई कि कमलनाथ की दम पर कांग्रेस के सिंबल पर अपनी राजनीति चमकाने वाले भी दिगंबर होकर सामने आ गये। साथ ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी भी उजागर हो गई। जहां कमलनाथ के पिछलग्गूओं ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन करने को अलापना शुरू किया तो वहीं दूसरे गुटों के पिछलग्गूओं ने कमलनाथ को कोसना शुरू कर दिया। दो दिनी चिल्ल पों के बाद प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि कमलनाथ कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं वह भी कमलनाथ से बात करने का हवाला देते हुए। ठीक इसी तरह कमलनाथ के भाजपा प्रवेश की वकालत करने वाले सज्जन वर्मा ने कमलनाथ से मुलाकात करने के बाद पत्रकारों से कहा कि फिलहाल कमलनाथ कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं। मगर सवाल यह है कि अगर कमलनाथ का इरादा कांग्रेस छोड़ने का नहीं था तो उन्होंने खुद मीडिया के सामने आकर अपनी बात क्यों नहीं रख्खी। अब तो चटखारे लेकर यह कहा जाने लगा है कि कमलनाथ के भाजपा प्रवेश को रोकने का काम मध्यप्रदेश के भाजपाईयों ने किया है वरना रविवार को कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ के साथ भगवाधारी हो गये होते।
दो दिनों तक चले घटनाक्रम से इतना तो तय हो गया है कि कमलनाथ और उनके पिछलग्गूओं की वफादारी संदेह के दायरे में आ गई है। ये आज नहीं तो कल अपनी महत्वाकांक्षाओं और निजी हितार्थों को पूरा करने के लिए कांग्रेस को टा - टा बाय - बाय करने से नहीं चूकेंगे। इस सारे घटनाक्रम में अगर किसी का नुकसान हुआ है, किसी ने खुद को ठगा सा महसूस किया है तो वह सामान्य कार्यकर्ता।
समंदर शराब होते तो कितना बवाल होता
हकीकत ख्वाब होते तो कितना बवाल होता
किसी के दिल में क्या छुपा है ये तो बस खुदा ही जानता है
दिल बेनकाब होते तो कितना बवाल होता
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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