चाहे लाख करो चतुराई - सवाल कभी मरते नहीं
कटनी से अश्विनी बड़गैया की खास रिपोर्ट
सत्ता बचाने के लिए राम को दांव पर लगा दिया गया है। बिसात बिछ गई है। दांव खेले जा रहे हैं। देखते हैं आखिरी बाजी किसकी होगी सत्ता की या फिर राम की ? नागरिकों की शिक्षा, स्वास्थ्य की परवाह न करने वाले मुल्क के भविष्य का क्या होगा ?
देश देख रहा है कि भांडों की भांडगिरी से लबालब भरे पड़े वर्तमान में किस तरह छद्म हिन्दुत्व और छद्म सनातन धर्म द्वारा खालिस हिन्दुत्व और असली सनातन धर्म को झूठ और गलत सूचनाओं के द्वारा बहिष्कृत किया जा रहा है । कृषि कानून के जरिए किसानों की हत्या, पहलवान बेटियों की आबरू का लूटा जाना, मणिपुर में नफरत की आग - लूटी गई आबरू की सरेराह नुमाइश, चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, ब्यूरोक्रेसी का समर्पण, सांस्थानिक भृष्टाचार सहित करोड़ों लोगों के लाखों सवाल लेकिन मीडिया घरानों ने पत्रकारों की कलम को भोंथरा कर मजबूर कर दिया है कम्बल पत्रकारिता करने के लिए।
22 जनवरी 2024 को आस्था के आगे भले ही कुछ समसामयिक ज्वलंत सवालों को बौना बना दिया गया हो फिर ये समसामयिक ज्वलंत सवाल सदैव जिंदा रहकर पूछे जाते रहेंगे।
अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा क्यों की गई ?
जिस विराजमान रामलला ने देश की सबसे बड़ी अदालत से मुकदमा जीता वह विराजमान रामलला कहां हैं ?
सनातन धर्म के आधार स्तम्भ शंकराचार्यों की धर्माधारित आपत्ति के बाद भी 22 जनवरी 2024 को ही प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजित किया गया आखिर क्यों ? रामनवमीं को क्यों नहीं ?
कहा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी प्रतीकात्मक यजमान होंगे क्योंकि पत्नी के साथ बैठे बिना कोई भी गृहस्थ ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा पूजन नहीं कर सकता, मुख्य यजमान ट्रस्टी मिश्रा होंगे तो फिर ट्रस्टी मिश्रा कहां गायब थे ?
सनातनी परम्परानुसार किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, वह भी ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा, के समय प्रत्येक हिन्दू महिला सिर पर पल्लू डाल कर ही बैठती है तो फिर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन खुले सिर बैठी रहीं आखिर क्यों ?
महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति श्री धनकड, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, परिवहनमंत्री नितिन गडकरी, बीजेपी अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी क्या आमंत्रित नहीं थे, यदि आमंत्रित थे तो आये क्यों नहीं ?
सनातनी धार्मिक मान्यता है कि ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा सार्वजनिक नहीं की जाती फिर भी पूरा ईवेंट कैमरों और टीवी के बीच किया गया आखिर क्यों ?
जब मंदिर विराजमान रामलला (अवधी में लला का अर्थ नवजात होता है) का है तो प्रतिस्थापित नवनिर्मित मूर्ति बालक राम की क्यों ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत किस हैसियत से गर्भगृह में विराजे जबकि उनके पास न तो कोई संवैधानिक प्रशासनिक ओहदा है न ही वे ट्रस्टी हैं ?
तो क्या गर्भगृह में मोहन भागवत की उपस्थित इस बात का परिचारक है कि पूरा ईवेंट भाजपा और आरएसएस की कसरत है ?
मंदिर ट्रस्टियों में से एक चंपतराय द्वारा तो विराजमान रामलला मंदिर को सनातनियों की जगह रामानंद संप्रदाय का बताया गया तो फिर रामानंद सम्प्रदाय के सबसे बड़े आचार्य को आयोजन में क्यों नहीं बुलाया गया ?
आयोजन विशुध्द रुप से धार्मिक था या फिर धार्मिक आवरण में लपेटा हुआ राजनीतिक ?
देश का दुर्भाग्य है कि तथाकथित विशेष राजनीतिक विचारधारा के लोगों ने धार्मिक आस्था को अपना कापीराइट समझ लिया है। कुछ लोगों ने तो चंद महीने बाद होने वाले आम चुनाव का विश्र्लेषण तक कर लिया है मगर वह शायद भूल गए हैं कि 1992 की बाबरी विध्वंस के समय की आक्रामक आस्थाओं के ऊपर भी 1993 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन कल्याण सिंह परास्त हुए थे और सामाजिक न्याय जीता था।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Post a Comment