बिजली अधिकारियों को भी उनकी औकात बताने आओ न

कटनी। सरकारी अधिकारियों द्वारा आम तौर पर लोगों के काम उनकी औकात देखकर किये जाते हैं लेकिन बिजली विभाग के अधिकारियों के सामने औकात वाला भी अपनी औकात ढूंढता रह जाता है ! यहां न कलेक्टर की चलती है न विधायक की। यहां चलती है तो केवल रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई करेंसी की। ऊपर से लेकर नीचे तक एक ही सूत्र पर काम होता है "बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया"।

कटनी जिले में देहाती इलाकों की बात तो छोड़िए यहां तो शहरी इलाकों की हालत ही दयनीय है। लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है अनाप-शनाप भारी-भरकम रकम के बिलों ने। सुनने वाला कोई नहीं है । लोगों को बिल भरने के लिए पठानी तरीके से मजबूर किया जाता है वरना गुंडागर्दी तरीके से लाईन ही काट दी जाती है।

देखने में आया है कि जब शहरी बिजली विभाग के बड़े अधिकारी को ही लोगों की कालिंग से एलर्जी है तो फिर छोटे मिंया को तो शुभानाल्लाह होना ही है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि मेंटेनेंस को देखने वाला अधिकारी तो जमीन से डेढ़ फुट ऊपर चलता है। वो तो अपनी जेब में एमडी को भी रखकर घूमता है। फिर यहां पदस्थ एस ई और कलेक्टर की बिसात ही क्या है।

भरोसेमंद सूत्रों से मिली जानकारी बताती है कि नगर निगम द्वारा शहर के अलग - अलग वार्डों में बिजली के खम्बे लगवाकर विद्युत सुविधा देने की खातिर बिजली विभाग के खाते में सुपरविजन चार्ज जमा करने के बाद भी तकरीबन 6 महीने से दर्जन भर से अधिक कार्यादेश (वर्क आर्डर) बस्ते में बंद कर इसलिए रखे गए हैं कि उनका अभी तक एई और ईई को नजराना पेश नहीं किया गया है। कार्यादेश इंजीनियर और शहर का बड़ा इंजीनियर कुंडली मारे वर्क आर्डर पर होने वाली हराम की कमाई को तक कर बैठे हुए हैं।

अधीक्षण इंजीनियर और कलेक्टर क्या शहरी बिजली कार्यालय की जांच कर ऊपरी कमाई के लिए रोके गये कार्यादेशों (वर्क आर्डर) को जारी करायेंगे  या यहां भी सीएम को दखलंदाजी करनी पड़ेगी ? देखा गया है कि बिजली अधिकारी तो विभाग द्वारा दिए गए मोबाईल पर व्हाटसएप को देखने की जुर्रत तक नहीं करते। यही कारण है कि आम लोगों द्वारा बिजली अधिकारियों को भेजे गए व्हाटसएप संदेश नक्कारखाने में तूती की आवाज माफिक दम तोड़ रहे हैं।

"या इलाही माजरा क्या है"

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