कौवे के कोसने से ढोर नहीं मरता
कटनी। भारतीय जनता पार्टी ने जहां कटनी जिले की अपनी तीन सीट बरकरार रखी वहीं कांग्रेस ने अपनी इकलौती सीट भी खो दी। भाजपा ने क्लीन स्विप करते हुए कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया। भाजपा की जीती गई चारों सीटों में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला परिणाम रहा है जिला मुख्यालय की मुडवारा विधानसभा का। जहां से संदीप जायसवाल ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया है। जिसको लेकर विपक्ष तो छोड़िए खुद भाजपाई भी हैरान हैं कि ऐसा कैसे हो गया।
वैसे तो संदीप ने 2018 में लगातार दूसरी जीत दर्ज कर पूर्व रचे गए इतिहास की बराबरी की थी। संदीप के पहले केवल समाजवादी नेता स्वर्गीय रामदास अग्रवाल उर्फ लल्लू भैया ही ऐसे थे जिन्होंने संसोपा (झाड़ छाप) - (बरगद का पेड़) चुनाव चिन्ह पर लगातार दो बार चुनाव जीता था।
2018 में भी संदीप की उम्मीदवारी को लेकर जनता में खासी नाराजगी थी मगर कांग्रेस ने मुकाबले के लिए जिस उम्मीदवार को मैदान में उतारा था उसकी छबि की तुलना में संदीप की छबि ज्यादा साफ सुथरी थी। कहते हैं न कि जब दो दागदारों में से किसी एक को चुनना होता है तो कम दागदार को चुना जाता है।
2023 के चुनाव में संदीप की उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के भीतर जबरदस्त मारकाट मची हुई थी। यहां तक खबर थी कि प्रदेशाध्यक्ष भी संदीप को टिकिट देने के पक्ष में नहीं थे। इसके बाद भी संदीप लगातार तीसरी बार उम्मीदवार बनने में कामयाब रहा। संदीप को टिकिट कैसे मिली इसका संकेत खुद शिवराज सिंह चौहान ने कटनी की चुनावी जनसभा में "ब्लैंक चैक" कहते हुए दिया था जिससे भरे हुए चैक धरे के थरे रह गए थे।
संदीप की उम्मीदवारी घोषित होते ही दिखने लगा था कि स्थानीय भाजपा कोमा में चली गई है जो 17 दिसम्बर तक कोमा में ही पड़ी रही। साफ दिखाई दे रहा था कि स्थानीय भाजपाईयों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है कि किसी भी हालत में संदीप को नहीं जीतना चाहिए। इसके बाद भी संदीप ने अच्छे खासे मार्जिन से जीत हासिल की है। जिससे भितरघाती भाजपाई सदमे में हैं। खबर है कि उनके बीच इस बात की समीक्षा की जा रही है कि ऐसा कैसे हो गया।
चुनाव की हार जीत का फैसला हो गया है फिर भी चौपालों में इस बात की चर्चा चल रही है कि कांग्रेस ने जिस उम्मीदवार को संदीप के खिलाफ मैदान में उतारा था उसकी टिकिट फाइनल संदीप के कहने पर ही की गई थी। खरी - अखरी इस बात से इत्तफाक नहीं रखता।
जहां तक संदीप की उम्मीदवारी की बात है तो टिकिट फाइनल होने के पहले ही अपने आलेखों में खरी-अखरी ने लिखा था कि भाजपा के पास संदीप का कोई विकल्प मौजूद नहीं है। खरी - अखरी ने यह भी लिखा था कि क्या भाजपा संदीप को लगातार तीसरी बार टिकिट देने का रिकॉर्ड बनायेगी और अगर संदीप को टिकिट मिली तो क्या वह लगातार तीसरी बार चुनाव जीत कर ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित कर सकेगा ?
और संदीप ने खुद की लाख नकारात्मक छबि, दलीय भितरघातियों के हथकंडों, बागी भाजपाईयों द्वारा खेले गए खेला के बावजूद उसने अपनी टीम के सिपहसलारों की मदद से नैया पार लगाकर साबित कर दिया कि "लाख मुद्दई बुरा चाहे तो क्या होता है"। वैसे संदीप को कांग्रेस का भी शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने उसके सामने उस पहलवान को उतारा था जिसको वह पहले भी पटकनी दे चुका था। हो सकता है अगर कांग्रेस ने नये चेहरे को मैदान में उतारा होता तो परिणाम उल्टा होता।
अब तो संदीप की पौ बारह है। पार्टी के कंटक भी अब तो मनमसोस कर जिन्दाबाद करते हुए ड्योढी पर दस्तखत देते हुए दिखाई देने लगे हैं।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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