दिल्ली दरबार के हाथ है कठपुतलियों की डोर
कटनी। मध्यप्रदेश में पहले सूबेदार तय करने में देरी फिर, सिपहसलारों के नाम तय करने में देरी अब विभागों का बटवारा करने में देरी। खरी - अखरी ने पहले ही अपने आलेख में लिखा था कि मोहन के सिपहसलारों का फैसला दिल्ली दरबार तय करेगा। सिपहसलारों के शपथ लेने के बाद फिर खरी - अखरी ने लिखा कि विभागों का बटवारा भी दिल्ली दरबार से ही तय होगा जो सच होता दिखाई दे रहा है। जिसका सीधा सा मतलब है कि मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक कठपुतली के माफिक हैं जिसकी डोर दिल्ली दरबार के हाथ में है। जब तक दिल्ली दरबार डोर नहीं खींचेगा कठपुतलियां हरकत नहीं करेंगी। नये नवेले मंत्रियों की तो छोड़िए खुद मुख्यमंत्री को भी नहीं मालूम कि उनके पास कौन - कौन विभाग रहेंगे। कौन बनेगा गृह मंत्री - कौन बनेगा वित्त मंत्री इसका जवाब दिल्ली दरबार के पिटारे में बंद है। पहले विधायकों में बैचेनी थी कौन बनेगा मंत्री अब मंत्रियों में बैचेनी है कब और कौन सा मिलेगा मंत्रालय।
होनहार पूत के पांव तो अभी से दिखने लगे हैं कि जब हर फैसला दिल्ली दरबार से ही होगा तो फिर मुख्यमंत्री और मंत्रियों की फौज का क्या औचित्य है। जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि "जो मुख्यमंत्री अपनी मर्जी से अपने मंत्री तय नहीं कर सकता, अपने सिपहसलारों को अपनी मर्जी से मंत्रालय आवंटित नहीं कर सकता वह क्या कर अपने से सीनियर विधायकों से उनका रिपोर्ट कार्ड मांग सकेगा।
मंत्रालय आवंटित ना होने से मंत्री भर बैचेन नहीं है। मंत्रालय के आला अफसर से लेकर चपरासी तक बैचेन हैं कि कौन बनेगा उनके मंत्रालय का मुखिया ? वे भी न्यूज चैनलों पर टकटकी लगाये देखते रहते हैं कि शायद कोई खबर आ जाय। मगर चारों तरफ मरघट सी खामोशी पसरी पड़ी है। हां सोशल मीडिया पर जरूर व्हाटसएप युनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स अपने - अपने हिसाब से मंत्रालय का बंटवारा करते रहते हैं।
चलते - चलते एक बात और - कहने को तो एक मुख्यमंत्री है मगर मंत्रीमंडल में शामिल आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री मुख्यमंत्री से किसी भी दृष्टिकोण में कमतर नहीं हैं। वे मुख्यमंत्री से पहले अपनी मर्जी मुताबिक फरमान दिल्ली दरबार से जारी करवाने का माद्दा रखते हैं।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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