कालिया नाथने अतरे दिन मोहन जा रहे यमुना के तट पर

कटनी। मोहन को सूबे की कमान सम्हाले पखवाड़ा होने को आ रहा है लेकिन वे अपनी टीम के गोप - गोपिकाओं की तलाश में आये दिन भोपाल - दिल्ली का रास्ता नाप रहे हैं। इधर चाटुकारों द्वारा भी गोदी मीडिया के आसरे रोज अपने आकाओं को मंत्री बनाने की खबरें वायरल की जा रही हैं। खबर तो यहां तक है कुछ विधायकों ने तो दिल्ली में ही डेरा डाल रखा है। मोहन के गोप - गोपियां आज शपथ लेंगे - कल शपथ लेंगे - दो दिन बाद शपथ लेंगे की खबरें मंत्री बनने का मंसूबा पालने वालों की सांसे रोज हलक में अटका रही हैं।

आलाकमान ने सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ा कर विधानसभा में बहुमत तो प्राप्त कर लिया मगर यही जीते हुए सांसद अब आलाकमान के जी का जंजाल बने हुए हैं। प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, राव उदय प्रताप सिंह, रीति पाठक, कैलाश विजयवर्गीय और नरेन्द्र सिंह तोमर ये सारे के सारे मुख्यमंत्री बनने के काबिल हैं। चलिए नरेन्द्र सिंह तोमर को तो विधानसभा अध्यक्ष बनाकर पिंड छुड़ा लिया गया मगर बाकी का क्या किया जाए ? जिसे सूबेदार बनाया गया है क्या उसके गोप - गोपिकाओं की मंडली में इनको शामिल करने से इनका स्टेटस बना रहेगा। इतना ही नहीं इन कद्दावरों से कम ओहदेदारों को तो उप मुख्यमंत्री तक बना दिया गया है। शायद यही कारण है कि आलाकमान की हालत सांप - छछूंदर जैसी बनी हुई है।

इतना तो तय है जब तक प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, राव उदय प्रताप सिंह, रीति पाठक, कैलाश विजयवर्गीय का किरदार तय नहीं हो जाता तब तक मोहन के दरबार के दरबारी तय होने से रहे ! इसके अलावा जातिवादी, क्षेत्रवादी, समाजवादी आदि समीकरण भी तो साधने हैं। इसके बाद भी सबसे बड़ा सवाल है कि 18 साल तक विधानसभा में पक्ष की पहली कुर्सी में बैठने वाले शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी कहां और किस कतार में होगी ?

दिल्ली दरबार को यह भी तो तय करना है कि मोहन के दरबारी मोहन से ज्यादा नरेन्द्र के प्रति वफादार हों वरना कहीं मोहन ने चक्र चलाकर इंन्द्रासन को चुनौती दे दी तो ! राजनीति के तो आभूषण और हथियार ही हैं छल - कपट। नरेन्द्र ने भी तो इन्हीं रास्ते चलकर इंन्द्रासन हथियाया है। नरेन्द्र के राजनीतिक गुरु तो तभी से मार्गदर्शन रुपी बियाबान में भटक रहे हैं। चेले ने शायद ही कभी गुरु से सदमार्ग पूछने की जहमत ऊठाई हो या फिर दर्शन करने की ईच्छा जताई हो।

         _तुलसी ने सही कहा है_

समय पड़े कछु और है समय गये कछु और

तुलसी भांवर के पड़े नदी सिरावत मौर

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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