सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों को भारी न पड़ जाए ओबीसी जमात की नाराजगी
कटनी। धन के बल पर पार्टी से टिकिट खरीद लाने, पैसे बांट कर चुनाव जीत जाने, गाडफादरों को नजराना देकर मंत्री बन जाने, चाटुकारों की भीड़ से अपना महिमामंडन कराने से कोई बहुत बड़ा राजनीतिज्ञ नहीं बन जाता है। राजनीति की चाल बड़ी बेढंगी होती है। कब कौन सी चाल खुद को ही मात दे जाय कहना मुश्किल होता है।
राजनीति की बारीक समझ रखने वालों की माने तो अपने चाटुकारों - जर खरीद मीडिया कर्मियों से खुद को कटनी जिले का क्षत्रप प्रचारित करवाने वाले धनबली ने मुडवारा विधानसभा के लिए कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होते ही कुछ ऐसी चाल चली है जो उसकी खुद की खटिया खड़ी कर सकती है।
कांग्रेस ने मुडवारा से मिथिलेश जैन के साथ ही विजयराघवगढ़ से नीरज बघेल व बहोरीबंद से सौरभ सिंह को मैदान में उतारा है। ऐसे ही भाजपा ने बहोरीबंद से प्रणय पांडे, विजयराघवगढ़ से संजय पाठक, मुडवारा से संदीप जायसवाल को टिकिट दी है।
जातिवादी समीकरण से देखा जाय तो जहां भाजपा ने विजयराघवगढ़ और बहोरीबंद से ब्राम्हण को तथा मुडवारा से ओबीसी को टिकिट दी है वहीं कांग्रेस ने विजयराघवगढ़ और बहोरीबंद में ठाकुर तो मुडवारा में जैन समाज से प्रत्याशी बनाया है।
मुडवारा विधानसभा का अधिकांश वोटर शहरी क्षेत्र से आता इसलिए माना जाता है कि यहां पर कोई भी समाज अपने बूते हार - जीत को प्रभावित नहीं कर सकता जबकि बहोरीबंद और विजयराघवगढ़ विधानसभा का वोटर ग्रामीण परिवेश से आता है इसलिए वहां ओबीसी का वोटर हार - जीत को निर्णायक स्तर तक ले जाने में सक्षम है।
मुडवारा और विजयराघवगढ़ के विधायक जो कि एक बार फिर अपनी - अपनी विधानसभा में कमल छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं इनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। इसका नमूना कटनी नगरीय चुनाव के समय महापौर प्रत्याशियों के बीच हुए दंगल में बखूबी दिखाई दिया है। जब बाजी कटनी विधायक के हाथ लगी तो विजयराघवगढ़ विधायक के लिए ऐसा ही कुछ संदेश निकल कर आया था कि "चले थे छब्बे बनने दुबे बना दिए गए"।
राजनीतिक घाव जल्द भरते नहीं है बल्कि रह-रह कर टीस देते हैं। जिसकी एक झलक तो तब सामने आई जब भाजपा ने सिटिंग एमएलए की उम्मीदवारी घोषित की। एक भाजपा पार्षद सहित महापौर की अधिकृत भाजपा प्रत्याशी ने सिटिंग एमएलए की उम्मीदवारी का खुलकर विरोध तो किया ही, महापौर उम्मीदवार तो भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी समर में चुनौती दे रही है।
दूसरी तस्वीर में किसी की खुलकर बगावत तो सामने नहीं आई मगर ब्राम्हण समाज को उकसाने की हरकत जरूर की गई। कहा जाता है कि इस पटकथा की परदेदारी में प्रतिद्वंद्वी विधायक का ही हाथ है। कहते हैं न कि ऊंट की चोरी निहुरे - निहुरे (झुके-झुके) तो होती नहीं। इसकी खबर चहुंओर पहुंच गई है। जिसको लेकर खासतौर पर ओबीसी वर्ग खासा नाराज बताया जा रहा है। उसका मानना है कि मनुवादी विचारधारा के पोषक ब्राम्हण वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे अर्थबली विधायक द्वारा जानबूझकर अपने अहम की संतुष्टि के लिए ओबीसी वर्ग के विधायक के रास्ते में कंटक बिछाया जा रहा है।
विजयराघवगढ़ और बहोरीबंद क्षेत्र से मिल रही खबरों पर भरोसा किया जाय तो वहां का ओबीसी वोटर एकजुट होकर सत्ता पार्टी के उम्मीदवार को सबक सिखाने की रणनीति बनाने में जुट गया है। सही पता तो मतगणना के दिन ही चलेगा फिर भी लक्ष्मी पुत्र की इस हरकत ने खुद के साथ ही बहोरीबंद के प्रत्याशी की धड़कनें तो बढा ही दी हैं।
खरी - अखरी इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि मुडवारा में प्रमुख पार्टियों द्वारा ब्राम्हण उम्मीदवार उतारा जाना चाहिए था का शिगूफा पूंजीपति विधायक द्वारा छोड़ा गया है। हां चुनाव मैदान में जरूर तकरीबन आधा दर्जन ब्राम्हण ताल ठोकने उतर गए हैं। इसका सीधा फायदा गैर ब्राम्हण कैंडीडेटस को मिलने की संभावना है वह भी इस वजह से कि ब्राम्हण मतों का बिखराव होगा। वैसे भी ब्राम्हण मतदाताओं को एकजुट करना तराजू पर मेंढक तौलने से ज्यादा दुश्वार है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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