अपहरण का एक आरोपी संजय विजयराघवगढ़ से तो दूसरे आरोपी विनय ने अपनी बीवी को मुड़वारा से उतारा चुनाव मैदान में
आपको बताते चलें कि विजयराघवगढ़ से लगातार विधायक का चुनाव जीतने वाले संजय पाठक की सांसे इस बार फूलती हुई नजर आ रही है। हालांकि इस बात का अंदेशा विधायक पाठक को पूर्व में हो ही चुका था जिसकी आत्मसंतुष्टि के लिए जनमत संग्रह का प्रोपोगंडा रचा गया था। अकेले रेस में पार्टिसिपेट करने वाले संजय पाठक ने खुद ही 75 प्रतिशत जनमत संग्रह हासिल कर जीत का सेहरा अपने ही हांथो अपने सिर बांध लिया था। खुद निर्वाचन अधिकारी, खुद ही चुनाव आयोग, और खुद ही जीत का प्रमाणपत्र ये कहकर हासिल कर लिया कि जनता ने अपना जनमत संग्रह देकर चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है।
खैर लोकतंत्र के इस पर्व में संजय पाठक के सामने कांग्रेस नेता नीरज सिंह बघेल प्रतिद्वंद्वी के रूप में दम खम दिखाने के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोंककर खड़े हैं। पूर्व में कांग्रेस प्रत्याशी नीरज सिंह बघेल संजय पाठक पर खनिज माफिया, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण जैसे कई तरह के आरोपों से घेरते हुए विधानसभा चुनाव के मैदान में हुंकार भर रहे हैं। एक बात और क्या विजयराघवगढ़ की जनता फिर एक बार ऐसा विधायक चुनेगी जो हर तरह के अपराध में लिप्त है। यहां तक कि बहन, बेटियों की इज्जत को तार - तार कर देने की धमकी देना क्या विजयराघवगढ़ की आवाम ऐसा नेता चुनेगी, या फिर ऐसा जनप्रतिनिधि जो दीन - दुखियों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहे। ये फैसला तो वहां के वोटरों को करना है कि वह विजयराघवगढ़ में कैसा विधायक चुनती है।
अब यदि बात मुड़वारा विधानसभा की करें तो भाजपा से संदीप जायसवाल तो कांग्रेस से एडवोकेट मिथलेश जैन चुनाव मैदान में हैं। पिछली मर्तबा यही दोनों महारथी आमने सामने थे। लेकिन मुड़वारा विधानसभा की जनता ने मिथलेश को नकारते हुए भाजपा से संदीप को अपना जनप्रतिनिधि चुना था। इस बार हवा का रुख उलटा ही नजर आ रहा है। राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार बयार कांग्रेस की बहती हूई दिखाई दे रही है। जानकारों का जो भी मानना हो फैसला तो जनता को करना है कि इस बार किसे सेवा का मौका देकर किसके कंधो पर विकास का भार डालती है।
भाजपा के बागी आरोपी विनय दीक्षित की बीवी भी मैदान में
यदि बात तीसरे विकल्प की करें तो भाजपा की बागी ज्योति विनय दीक्षित ने अपना नामांकन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दाखिल कर दोनों दिग्गजों को चुनोती देने के लिए चुनावी मैदान में कूद तो पड़ी है। लेकिन सवाल ये उठता है कि ज्योति दीक्षित की चुनाव नैया किसके भरोसे पार लगेगी ? इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ज्योति को राजनीति अखाड़े के दांवपेंच में कोई खास महारत हासिल नहीं है। नहीं तो नगर सरकार बनाने में फिसड्डी साबित ना होती।
गौरतलब है कि भाजपा से मिली टिकिट पर नगर सरकार बनाने का मौका हाथ से निकल जाने की वजह कोई और नहीं बल्कि ज्योति का पति विनय दीक्षित और संजय पाठक ग्रहण के रूप में छाये रहे जिस कारण ज्योति का प्रकाश नगर में फैलने से महरूम रह गया और ज्योति नगर सरकार बनाने में विफल रही। उसके बावजूद भी पूर्व में की गई गलती से ज्योति सबक लेने की वजाय इस बार फिर वही गलती दोहरा कर विधायक बनने की राह में खुद कांटे बो रही हैं और उन्हें एहसास भी नहीं है।
आपको बताते चलें कि महापौर चुनाव के वक्त ज्योति के साथ एक नहीं बल्कि दो ग्रहण साथ में थे। पहला बड़ा ग्रहण संजय पाठक तो दूसरा खुद ज्योति का पति विनय दीक्षित जिनकी आपराधिक छवि के चलते ज्योति को नगर सरकार बनाने से वंचित होना पड़ा। आगें बताते चलें कि इस बार भले ही ज्योति के प्रकाश में बड़ा ग्रहण लगाने वाले संजय पाठक साथ ना हो लेकिन अमावस की काली रात की तरह ज्योति की जीत पर विनय का साथ - साथ रहना ग्रहण का काम कर ही सकता है। मुड़वारा की जनता ये कभी नहीं चाहेगी की जिसे वह अपना जनप्रतिनिधि चुने वह किसी अपराधी से ताल्लुक रखती हो। भले ही ज्योति साफ छवि वाली प्रत्याशी हो लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता और ना ही झुठलाया जा सकता है कि यदि ज्योति विधायक बन भी गई तो पूरी बागडोर विनय के हांथो में सिमट कर रह जायेगी। फिर भला जो व्यक्ति बिना किसी पद में रह कर संजय पाठक के इशारे पर किसी का भी अपहरण कर हर दर्जे के अपराध को अंजाम दे सकता हो, तो भला पद मिलने के बाद नशा तो सिर चढ़कर बोलेगा ही। अब मुड़वारा विधानसभा के वोटर तय करें किसे अपना मशीहा चुनेंगे।
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