वोट करते समय इस पर भी सोचेगा मतदाता


संदीप जायसवाल के पूर्णकालिक पन्द्रह साल के कार्यकाल में पांच साल महापौरी तो दस साल विधायकी के शामिल हैं।

कटनी। महापौर के कार्यकाल की उपलब्धियों में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है जनता पर लगाया गया जजिया कर (चक्रवृध्दि) ब्याज। संदीप के बाद जितने भी महापौर हुए किसी ने भी जनता को उस जजिया कर से मुक्ति नहीं दिलाई। वह दंश आज भी जनता भोग रही है।

विधायकी कार्यकाल की उपलब्धियों में तीन उपलब्धि महत्वपूर्ण है। पहला शासकीय हॉस्पिटल में डेढ़ सैकड़ा विस्तर विस्तार, दूसरा शासकीय महिला महाविद्यालय भवन निर्माण और तीसरा सागर पुल के ऊपर बना ओवरब्रिज।

शासकीय हाॅस्पिटल के विस्तर विस्तार का लाभ तो जनता को तब मिलेगा जब हाॅस्पिटल में अन्य सुविधाओं में विस्तार होगा। मसलन डाक्टरों, नर्सों, वार्ड ब्याय की पर्याप्त व्यवस्था । हाॅस्पिटल में तकरीबन 65 फीसदी पद डाक्टरों के रिक्त पड़े हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों का अकाल पड़ा है। तकरीबन 80 फीसदी नर्सों के पद खाली हैं। इसी तरह तकरीबन 85 फीसदी वार्ड ब्याय कम हैं। केवल बिल्डिंग बना देने से जनता को लाभ मिलेगा ऐसा सोचना बचकानापन ही कहा जायेगा। एक बात और हाॅस्पिटल में विस्तर विस्तार कटनी जिले के मरीजों को ध्यान में रखते हुए कराया गया है जबकि कटनी हाॅस्पिटल पर आसपास के अन्य जिलों से भी मरीज ईलाज कराने आते हैं। सबसे मजेदार बात तो यह है कि विस्तर विस्तार के पहले हाॅस्पिटल में 4-5 प्रायवेट वार्ड भी हुआ करते थे। संदीप ने न जाने कौन सा मंत्र फूंका कि हाॅस्पिटल से सारे प्रायवेट वार्ड नौ दो ग्यारह हो गये। चर्चा है कि यह सब कुछ निजी चिकित्सालयों को फायदा पहुंचाने के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है। हाॅस्पिटल में सिविल सर्जन की कुर्सी में आज भी प्रभारी चिकित्सक विराजमान है, वह भी सेकेंड क्लास का।

शासकीय महिला महाविद्यालय का नवीन भवन शहर से 10 किलोमीटर दूर वह भी मुख्य सड़क से 2 किलोमीटर अंदर बनवाया गया है । शिक्षार्थियों को शहर से महाविद्यालय तक जाने के लिए फिलहाल कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। एकांतवास में कुछ अनहोनी घट जाय तो भगवान ही मालिक है। महाविद्यालय की बिल्डिंग तो भारी भरकम बन गई मगर न तो प्रोफेसरों की संख्या में ईजाफा हुआ न ही विषय विशेषज्ञों की नियुक्ति। ये और बता दिया जाय कि शिक्षार्थी क्या करें। बिल्डिंग को बिछाये - ओढे। अपना माथा फोड़े।

अब बात आती है सागर पुल के ऊपर बनाया गया ओवरब्रिज। जिसका एक छोर बरगवां में है तो दूसरा जगन्नाथ मंदिर के सामने। अब दोनों छोर से आने वाले को यदि झंडा बाजार रोड़ पर जाना है या सुभाष चौक जाना है या फिर भट्टा मुहल्ला - मंगल नगर जाना है तो उसके लिए तो यह ओवरब्रिज बेकाम है। ठीक इसी तरह किसी को झंडा बाजार, सुभाष चौक, मंगल नगर से आकर बरगवां या जगन्नाथ मंदिर की ओर जाना है तो उसके लिए भी ओवरब्रिज किसी काम का नहीं है। कहीं पर सीढियां तक नहीं बनी है ब्रिज से उतर कर इन रास्तों पर जाने के लिए। शहरवासी और दूरदराज से आने वाली 80 फीसदी जनता के लिए ओवरब्रिज अनुपयोगी है। पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ तक नहीं बनाया गया है ओवरब्रिज में । साथ ही यह डेढ़ फुटिया ओवरब्रिज हमेशा किसी अनहोनी घटना को निमंत्रण देता रहता है। अंधे मोड़ तो हैं ही। ब्रिज के शैशवकाल में ही जगह-जगह अतंडियां दिखने लगी हैं।

अब एक बार फिर संदीप इतिहास रचने के लिए जनता के बीच ताल ठोंक रहे हैं। देखना है मतदाता शहरवासियों के लिए लगभग अनुपयोगी उपलब्धियों का मूल्यांकन किस तरह करता है।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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