किसका खेल बिगाड़ेगा..........

कटनी। बात करते हैं बहोरीबंद विधानसभा क्षेत्र की। जहां भाजपा और कांग्रेस द्वारा अपने - अपने अधिकृत प्रत्याशी की घोषणा के बाद से स्थानीय प्रत्याशी के नाम पर विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं। जिसे हवा दे रहे हैं टिकिट से वंचित रह गए नेतागण। भाजपा में जहां विरोध बतौर अंडर करेंट फैला हुआ है वहीं कांग्रेस में खुलेआम बगावत की सुनामी दिखाई दे रही है।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बहोरीबंद क्षेत्रवासियों द्वारा विधानसभा के लिए लम्बे अर्से से क्षेत्रीय व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने की मांग की जा रही है मगर न तो भाजपा ने और न ही कांग्रेस ने कभी भी क्षेत्रवासियों की भावनाओं को तवज्जो दी। ऐसा नहीं है कि क्षेत्रीय स्तर पर दोनों दलों के पास प्रभावशील नेताओं की कमी है इसके बावजूद भी दोनों दलों ने सदैव अपनी मनमानी चलाते हुए बाहरी उम्मीदवार ही थोपा है।

विधानसभा चुनाव के दौरान बहोरीबंद क्षेत्र से टिकिट की दावेदारी में एक नाम हरबार चर्चा में रहा है वह नाम है शंकर महतो का। जब तक वह भाजपा में रहा उसे भाजपा द्वारा हरदम टिकिट का लालीपाप तो दिखाया गया मगर चूसने के लिए दूसरे को दे दिया गया। इस बार भी भाजपा ऐसा ही करेगी की मनसा भांपते हुए शंकर ने कांग्रेस से सौदेबाज़ी करते हुए पंजा थाम लिया मगर उसे क्या पता था कि कांग्रेस तो दगाबाजी में भाजपा की नानी मां है।

लम्बे समय तक बहोरीबंद विधानसभा से खांटी कांग्रेसी विधायक चुना जाता रहा है। मगर 2014 के उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कांग्रेसी बने सौरभ सिंह को टिकिट दी गई और वह विधायक भी बन गया। 2018 में फिर से सौरभ को मैदान में उतारा गया मगर इस बार उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। 2023 के चुनाव पूर्व शंकर महतो को पार्टी प्रत्याशी बनाये जाने के कमिटमेंट के साथ पंजा छाप भाजपाई बनाया गया मगर टिकिट एकबार फिर सौरभ सिंह को दे दी गई। शंकर के हालात तो धोबी के कुतके (जिस पर धोबी कपड़े सुखाता है) की तरह बनकर रह गई घर का न घाट का।

सौरभ के प्रत्याशी घोषित होते ही बगावत के सुर उठने थे और उठे भी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि शंकर की समाज विशेष में लोकप्रियता है तथा वह समाज विशेष प्रत्याशी की हार - जीत को तय करने की क्षमता भी रखता है जिसका नमूना गत चुनावों में देखा भी गया है।

स्थानीय प्रत्याशी घोषित किए जाने का कैम्पेन चला रहे लोगों द्वारा कांग्रेस के वरिष्ठ कद्दावर नेताओं के मुर्दाबाद के नारों के बीच उनका पुतला दहन तक कर दिया गया। बताया जाता है कि स्थानीय के नाम पर पुतला दहन किए जाने में दूसरे दलों के अनुयायी भी शामिल थे। असंतोष जता रहे पार्टी जनों की भावनाओं को समझने के बजाय कांग्रेस जिलाध्यक्ष (ग्रामीण) (जिसे विजयराघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र में तो पार्टीजनों के बीच भाजपाई विधायक का करीबी और सहयोग कर्ता तक कहा जाता है) द्वारा   कुछ लोगों को शोकाज नोटिस दिया गया। क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में किसान महापंचायत नामक सम्मेलन बुला लिया गया। बताया जाता है कि सम्मेलन में समाज विशेष के लोगों की बहुतायत रही।

सम्मेलन में शंकर महतो की उपस्थिति और उद्बोधन ने आगे की रणनीति भी उजागर सी कर दी है। समाज विशेष द्वारा साफ संदेश देने की कोशिश की गई है कि अगर पार्टियां घोषित उम्मीदवार का टिकिट ड्राप कर किसी स्थानीय को उम्मीदवार नहीं बनाती हैं तो संभवतः शंकर महतो को बतौर निर्दलीय साझा उम्मीदवार बना चुनावी रण समर में उतारा जायेगा।

नाम निर्देशन फार्म जमा करने में एक दिन का समय शेष है। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस बहोरीबंद में क्षेत्रवासियों की भावनाओं को महत्व देते हुए प्रत्याशी चेंज करेगी ठीक उसी तरह जैसे अभी तक 7 प्रत्याशी बदल चुकी है ? या फिर डैमेज कंट्रोल करने में सफल रहेगी।

शंकर महतो की तरह ही विजयराघवगढ़ विधानसभा में धुव्र प्रताप सिंह के साथ भी खेला किया गया है मगर वहां से बहोरीबंद की तरह कांग्रेसियों के बगावती सुर सुनाई तो नहीं दिए मगर खामोश बगावत (भितरघात) से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। बहोरीबंद में जहां कांग्रेसी खुली बगावत कर रहे हैं वही हालात मुडवारा और बडवारा में भाजपाई करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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