महिलाओं को बराबरी से सत्ता में भागीदारी देने से करते हैं परहेज सभी राजनीतिक दल


कटनी। राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं के वोट कबाडने की खातिर लाडली लक्ष्मी, लाडली बहना के नाम खैरात तो बांटी जा सकती है लेकिन सत्ता में भागीदारी नहीं दी जा सकती, यह एक बार फिर साबित हो गया है।

पिछले महीने ही मोदी सरकार द्वारा नवीन संसद भवन में विशेष सत्र बुलाकर आनन-फानन संसद में नारी शक्ति वंदन (महिला आरक्षण) विधेयक पास कराया गया जिसमें विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई है । महिलाओं को राज्य और देश की सबसे बड़ी पंचायत में कानूनन 33 फीसदी भागीदारी कब तक मिलेगी यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है।

25 सितम्बर 23 को खरी - अखरी ने "कौन जीता है तेरी जुल्फों के सर होने तक" आलेख में लिखा था कि अगर भाजपा और कांग्रेस महिलाओं को सत्ता से भागीदारी देने के लिए मनसा - वाचा - कर्मणा तैयार हैं तो वे चंद महीने के भीतर होने जा रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की कुल सीटों के आधार पर 33 फीसदी सीटों पर महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारें। मगर किसी भी पार्टी ने 33 फीसदी तो दूर 14 फीसदी सीटों पर भी महिलाओं को खड़ा नहीं किया है। मध्य प्रदेश की कुल 230 सीटों पर जहां भाजपा ने 12.72 तो कांग्रेस ने 12.23 फीसदी महिलाओं को ही टिकिट दी है। चुनाव परिणाम आने के बाद विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी कितने प्रतिशत होगा राम जाने।

जबलपुर की चारों विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस ने एक भी महिला को खड़ा नहीं किया है यही हाल कटनी जिले की चार विधानसभाओं के हैं यहां पर भी दोनों दलों ने पुरुषों को ही टिकिट दी है। जबलपुर जिले की बात करें तो कांग्रेस ने जरूर सिहोरा विधानसभा में महिला को टिकिट  दी है। अगर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के संसदीय क्षेत्र खजुराहो की बात की जाय तो यहां भी चंदला, राजनगर, पवई, गन्नौर, पन्ना, विजयराघवगढ़, मुडवारा तथा बहोरीबंद विधानसभा में से किसी भी एक में महिला को टिकिट नहीं दी गई है।

भाजपा और कांग्रेस द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूची बताती है कि महाकौशल में जहां भाजपा ने 2 महिलाओं को टिकिट दी है तो वहीं कांग्रेस ने 5 महिलाओं को टिकिट दी है। इसी तरह बुंदेलखंड में भाजपा ने 2 तो कांग्रेस ने 6 महिलाओं को उम्मीदवारी दी है। बघेलखंड में जरूर दोनों दलों ने बराबर 5 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। गोंडवाना में जरूर केवल भाजपा ने महिला प्रत्याशी उतारा है। जबकि हर दल को 76 सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारना चाहिए था।

दोनों दलों ने साबित कर दिया है कि संवैधानिक विवशता वश भले वे महिलाओं को उनका अधिकार देने विवश हो सकते हैं मगर नैतिकता वश कभी नहीं। हों भी कैसे ! जब देश का निजाम हाथरस, उन्नाव, कठुआ, मणिपुर बिलकसबानो, महिला पहलवान मामलों में अंध-मूक-बधिर की भूमिका का निर्वहन करता हो। इससे ज्यादा हास्यास्पद और शर्मनाक क्या हो सकता है कि आज भी जिस देश में महिलाओं को स्तन ढंकने के लिए टैक्स देना पड़ता हो, दलित महिलाओं का मंदिर प्रवेश वर्जित हो, युवतियों को प्रसाधन के लिए खेत - मैदान बताया जाता हो, मां - बेटी - बहन यहां तक कि 2 माह की नवजात तक की आबरू सुरक्षित न हो, निजाम तक के ऊपर लड़की की जासूसी कराने का आरोप लगता हो फिर भी वह खुद को प्रोग्रेसिव कहता है।

खरी - अखरी ने अपने 31 अगस्त के आलेख में सवाल किया था कि "मिटेगा क्या साढ़े तीन दशक का सूखा" । टिकिट वितरण से तो यही उत्तर निकल कर आया है कि नहीं मिटेगा। जबलपुर शहर की चार विधानसभा में संभवतः तीन दशक से महिला कैंडिडेट का सूखा पड़ा हुआ है। कमोबेश यही हाल बघेलखंड (विन्ध्य) के भी हैं।

कटनी मुडवारा विधानसभा से 35 वर्ष पूर्व श्रीमती रामरानी जौहर कांग्रेस से विधायक रहीं तो 20 साल पहले श्रीमती अलका जैन भाजपा से विधायक रहीं हैं। कुछ ऐसा ही इतिहास विजयराघवगढ़, बहोरीबंद, बडवारा के रहे हैं जहां से सालों साल पहले एक - एक महिला ने विधायक रह कर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है।

क्षेत्रवासियों को उम्मीद थी कि इस बार कोई न कोई दल खासतौर पर कांग्रेस किसी महिला नेत्री को चुनाव मैदान में उतारेगी। मगर किसी भी दल ने जनभावनाओं को महत्व देने की जहमत नही उठाई। कांग्रेस से उम्मीद इसलिए थी कि राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस तकरीबन आधी सीटों पर महिलाओं को टिकिट देगी। मगर प्रियंका गांधी वाड्रा का कहा भी जमीनी हकीकत बनने के बजाय जुमला बनकर रह गया।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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