गांधीवादियों का दिन है और अग्नि परीक्षा भी
कटनी। 2 अक्टूबर "गांधी का जन्मदिन", देशभर में क्या गांधीवादी, क्या अंबेडकरवादी, क्या गोडसेवादी सब मना रहे हैं। कुछ परम्परावश, कुछ विवशतावश तो कुछ औपचारिकतावश। गांधी भी सालभर 2 अक्टूबर को अपने जन्मदिन मनाने की आशा करते रहते हैं खासतौर पर गांधीवादियों से। मगर गांधीवादी भी परम्परागत औपचारिकता निभा कर निकल लेते हैं।
सच कहा जाय तो गांधी को सबसे ज्यादा छला है गांधीवादियों ने। न गांधी की धोती का पता है, न गांधी की टोपी का पता है, न गांधी की घड़ी का पता है यहां तक कि गांधी की छड़ी तक का भी पता नहीं है। अब तो गांधी केवल रिजर्व बैंक की गारंटी वाले नोटों में दिखता है। गांधीवादी विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टी ने गांधी को चुनाव में वोट कबाडने, सत्ता की कुंजी बनाकर रख दिया है।
वोट कबाडने और सत्ता की चाबी के कारण ही गांधी का जन्मदिन मनाने की विवशता है गोडसेवादियों की। गांधी का कद इतना बड़ा है कि गोडसे विचारधारा वाली पार्टी को भी सत्ता में होने के कारण मजबूरीवश गांधी की समाधि पर जाकर माथा टेकना पड़ता है। दूसरे देशों से आने वाले राष्ट्राध्यक्षों, राजनयिकों को भी गांधी की समाधि पर माथा टिकवाने ले जाना पड़ता है क्योंकि इसके बगैर उनकी भारत यात्रा पूरी नहीं होती है।
एक बार फिर 2 अक्टूबर आ गया है गांधी का जन्मदिन। संयोग देखिये महीने भर बाद हिन्दी पट्टी के राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान सहित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं तथा 6 महीने बाद आम चुनाव होने को है। स्वाभाविक है सारे वादियों को सत्ता सुंदरी का वरण करने के लिए लिए गांधीमाला की जरूरत है। तभी तो गोडसे के अनुयायियों ने 1 अक्टूबर से ही गांधी का जन्मदिन दिन बतौर स्वच्छता अभियान मनाने का ऐलान किया हुआ है। स्वच्छता अभियान मनाने के लिए बकायदा सरकारी फरमान तक जारी किया गया है।
मगर मजे की बात यह है कि स्वच्छता अभियान गंदी बस्तियों में नहीं साफ सुथरी जगह पर कागज की कतरनें बिखरा कर नेताओं - अफसरों द्वारा हाथों में बकायदा दस्ताने और सारे सुरक्षा उपकरण ओढ़ झाड़ू पकड़ कर फोटो सेशन चलाया जाता है। इतना ही नहीं शर्मनाक और निंदनीय पहलू यह भी है कि नेताओं द्वारा अपनी नेतागिरी और अफसरों द्वारा अपनी अफसरी चमकाने के लिए स्कूली बच्चे - बच्चियों से सड़क पर झाड़ू तक लगवाई जाती है। ऊपर से तुर्रा यह कि बच्चों को सफाई का संदेश दिया जा रहा है।
गांधी जयंती है उस पर देशव्यापी चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान की चर्चा है तो कटनी की बात करना लाजमी है। कटनी की बागडोर फिलहाल गोडसेवादियों की ट्रिपल इंजन की सरकार के हाथों में है। हफ्ते भर से सफाई कर्मचारी अपनी मांगों को मनवाने हड़ताल पर हैं। शहर के चारों खूंट कचरा पसरा पड़ा है, नालियां बजबजा रहीं हैं। आम आदमी का सांस लेना दूभर हो रहा है।
ट्रिपल इंजन सरकार के सरदार का फरमान है कि 1 अक्टूबर से ही स्वच्छता अभियान चलाया जाय। अब चूंकि कटनी शहर की कोई गली कुलिया ऐसी नहीं है जो साफ सुथरी हो और वहां कागज की कतरनें बिखरा कर हाथ में झाड़ू थामे नेता और अफसर फोटो खिंचवा कर वायरल कर सकें। वैसे इसके बावजूद भी महापौर, निगमाध्यक्ष, कलेक्टर, एसपी ने कुछ बच्चों के साथ झाड़ू वाली फोटो शेयर कर ही दी। जबकि हकीकत यह है कि 2 अक्टूबर को भी गली - कुलियों में कचरा फैला हुआ है, नालियों की गंदगी सड़क पर बह रही है।
चलो मान लेते हैं कि गोडसेवादियों का गांधी से कोई नजदीकी रिश्ता नहीं है मगर गांधीवादियों का तो है आखिर वे क्या कर रहे हैं। वह भी उस शहर में जहां गांधी ने एक रात गुजारी थी। कटनी को बारडोली नाम दिया था। केवल उस कमरे में जिसमें गांधी ने रात गुजारी थी वहां गांधी को याद कर औपचारिकता निभाई जा रही है।
आज गोडसेवादियों का नहीं गांधीवादियों का दिन है। क्यों नहीं निकलती गांधीवादियों की टोली हाथों में झाड़ू थामे सड़क पर फैला कचरा समेटने। नदियों का कीचड़ निकालने की फोटोज तो सोशल मीडिया में वायरल की जाती हैं तो क्यों नहीं नालियों की गंदगी निकालती फोटोज शेयर की जाती ? क्या गांधीवादियों को भी जिंदा तस्वीरों से डर लगने लगा है। वैसे बहुत से गांधीवादी गोडसेवादियों के पहलू में पनाह ले चुके हैं।
क्या शहरवासी गांधी जयंती के अवसर पर गांधीवादियों को शहर की वास्तविक सफाई करते हुए देख पायेंगे?
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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