कलम का काम है इंसाफ की तलवार हो जाना जमाना पढ सके जिसको वही अखबार हो जाना

 खरी - अखरी

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

कटनी। साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकारों को भी दाना डालना शुरू कर दिया है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने पत्रकार समागम आयोजित किया जिसमें उन्होंने पत्रकार सुरक्षा, पत्रकार सहायता निधि, पत्रकार सम्मान निधि, पत्रकार आवास जैसे लालीपाप देने की घोषणा की। शिवराज सिंह चौहान की यह हरकत बताती है कि उन्होंने पत्रकारों को चौथा स्तम्भ समझने के बजाय वोट बैंक समझ लिया है। वरना इसकी सुधि उन्हें पहले क्यों नहीं आई ?

लाड़ली बहनों जैसे लाड़ले पत्रकारों को रिझाने के पीछे की हकीकत यह समझ में आ रही है कि सोशल मीडिया में तो शिवराज सरकार की नाकामियों को उजागर किया ही जा रहा है परन्तु अब तो सरकार की गोद में बैठकर अंगूठा चूसने वाला गोदी मीडिया भी शिवराजी सरकार की पोलपट्टी खोलने लगा है। इतना ही नहीं चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी समेत कई जिलों के स्थानीय पत्रकार मुख्यमंत्री के कार्यक्रम का बहिष्कार करने लगे हैं। शायद इसी डेमेज कन्ट्रोल के लिए यह योजना बनाई गई है। मगर पत्रकारों के घाव तो अभी भी हरे ही हैं। वे तो उन घटनाओं को अभी भी नहीं भूले हैं जो गत साल डेढ़ साल के भीतर पत्रकारों के साथ घटी है।

2022 में कटनी के पत्रकार रवि गुप्ता का विजयराघवगढ़ विधायक संजय पाठक द्वारा अपने साथियों के साथ मिलकर आधी रात को उसके घर से अपहरण करा लिया गया। उसको अमानवीय यातनाएं दी गई। पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इंकार कर दिया। एसपी ने भी भगा दिया। इतना ही नहीं एसपी ने तो बकायदा पत्रवार्ता आयोजित कर उल्टा पत्रकार रवि गुप्ता को ही संगीन अपराध में शामिल होना बता दिया। रवि गुप्ता की गुस्ताखी इतनी थी कि उसने कांग्रेस नेता नीरज बघेल की पत्रकार वार्ता को प्रकाशित किया था जो कि कहीं न कहीं संजय पाठक की छबि को धूमिल कर रही थी।

मजबूरन रवि गुप्ता को न्यायालय में संजय पाठक सहित अपहरण करने में शामिल मनीष पाठक, विनय दीक्षित, गुड्डा जैन, अनुज तिवारी, मुकेश पांडे, सुधीर मिश्रा, निक्कू सरदार के खिलाफ परिवाद दाखिल करना पड़ा। लम्बी न्यायालयीन प्रक्रिया उपरांत आखिरकार न्यायालय ने 04 सितम्बर 2023 को अभियुक्त गणों द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323, 294, 365, 366, 506(2) के अन्तर्गत अपराध कारित होना पाते हुए अभियुक्त गणों के ऊपर इन्हीं धाराओं के तहत मामला दर्ज करने का आदेश पारित कर परिवाद स्वीकार कर लिया।

न्यायालय के संज्ञान में लाया गया कि प्रकरण में एक अनावेदक संजय पाठक वर्तमान में विधायक है। ऐसी स्थिति में प्रकरण को जबलपुर स्थित एमपी-एमएलए कोर्ट में ट्रांसफर करने का निर्देश जारी किया है। मतलब संजय के मामले की सुनवाई अब जबलपुर स्थित एमपी-एमएलए कोर्ट में होगी। बताया जाता है कि एक अनावेदक मनीष पाठक वर्तमान में नगर पालिक निगम कटनी में निगमाध्यक्ष है।

जनवरी 2023 में सीधी विधायक केदार शुक्ला के खिलाफ खबर प्रकाशित करने से विधायक की चौखट पर जी हजूरी बजाने वाली पुलिस ने तकरीबन एक दर्जन पत्रकारों को पकड़ कर हवालात में बंद कर दिया। इतना ही नहीं पत्रकारों को अर्ध नग्न कर उन्हें यातनाएं दी गई साथ ही उनकी अधनंगी फोटो खींचकर उन्हें सोशल मीडिया में वायरल भी किया गया। पुलिस के इस अमानवीय कृत्य का दीदार देश और देश के बाहर तक किया गया।

जनवरी में ही भारत की आधुनिक पत्रकारिता के जनक माखनलाल चतुर्वेदी की धरती नर्मदापुरम के माखन नगर में खरगावली ढाना निवासी पत्रकार प्रकाश यादव को पेड़ से बांध कर बुरी तरह से मारा-पीटा गया। उसका भी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में वायरल किया गया।

ये तो हांडी में पके भात के कुछ दाने हैं। प्रदेश भर में तो दर्जनों पत्रकारों पर झूठे मुकदमे दायर किए गए हैं। जो आज भी यथावत हैं। कारोना काल के दौरान हुई पत्रकारों की दुर्दशा जगजाहिर है। मीडिया घरानों ने तो उस पीरियड का वेतन तक नहीं दिया। अधिमान्यता देने में भी खेला किया गया। नेताओं के चहेतों को अधिमान्यता कार्ड जारी कर पत्रकारों के मकान तक उनके नाम एलाट कर दिए गए।

सारा सब कुछ सरकार के संज्ञान में है। मगर अभी भी कार्रवाई के नाम पर निल बटे सन्नाटा ही है। लेकिन अब विधानसभा चुनाव सिर पर है।

तो पहला सवाल यही है कि

क्या पत्रकार जमीनी हकीकत को भूल जायेंगे ?

दूसरा सवाल यह है कि

क्या भाजपा हाईकमान विजयराघवगढ़ और सीधी विधानसभा क्षेत्र से संजय पाठक और केदार शुक्ला के बजाय किसी दूसरे व्यक्ति को टिकिट देकर पत्रकारों के जख्मों पर मलहम लगायेगा ?

तेरे इस तख्त के नीचे हैं ढेर लाशों के

लहू में गर्क ना हो जाए सल्तनत तेरी



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