कस्बाई मानसिकता से उबरने का मौका

 खरी - अखरी

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार


कटनी। कांग्रेसी हों या भाजपाई सभी जानते हैं कि कटनी की जनता जिला बनने के वर्षों बाद भी कस्बाई मानसिकता में ही जी रही है। अब भी उसे खुलेआम सच कहने में डर लगता है कि उनके मुंह खोलने से उसके राजनीतिक मम्मी पापा भैया भाभी नाराज हो जायेंगे। अब तो वे लोग अपने नाकारा - निकम्मेपन को छिपाने के लिए यह बात सार्वजनिक रूप से लगने लगे हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही एक भाजपाई ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि कटनी जिले की जनता कस्बाई मानसिकता में जी रही है। वैसे उस भाजपाई ने कटनी जिले की हकीकत ही बयां की है। लाखों-लाख नागरिकों के बीच अंगुलियों में गिने जाने वाले भी नहीं हैं जो दबंगता के साथ कटनी के माथे पर बदनुमा दाग लगाने वालों के चेहरे की कालिख को उजागर करते हों।
चौथे खम्बे की हालत तो और भी दयनीय है। लगता तो यही है कि तकरीबन 99 फीसदी कलमकारों ने अपनी कलम राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों के कदमों में चंद कलदारों की खातिर गिरवी रख दी है। इनकी कलम और इनके कैमरे वही लिखते और दिखाते हैं जो इनके रहनुमा बन चुके राजनीतिज्ञ और पूंजीपति कहते और चाहते हैं।
चाहे सिंगल इंजन का राज रहा हो या फिर ट्रिपल इंजन का राज जो चल रहा है। सभी ने कटनी की जनता को जी भर कर छला है। रंगीन सपने दिखा कर भावनाओं के साथ जारकर्म ही तो किया है। बाहरियों (मुख्यमंत्री, प्रभारी मंत्री, सांसद) को क्या दोष दें कटनी की अस्मिता को सरेआम तार - तार तो भीतरहियों ने भी किया है।
शहर को अपनी जन्मभूमि - कर्मभूमि कहने वालों में से किसी ने अपनी मां को तो किसी ने अपनी पत्नी को तो किसी ने किन्नर को ही प्रथम नागरिक की कुर्सी पर विराजमान कराने के लिए आमजन से ढेरों वादे किए। मगर हर बार जनता छली गई।
एक ने तो शहर को सिंगापुर और शहर में खिलाड़ियों के लिए विश्व स्तरीय खेल मैदान बनाकर देने का खुला वादा किया था। मगर शहर सिंगापुर बनने के बजाय नरकापुर बना दिया गया। इसी तरह विश्व स्तरीय तो छोडिए जिला स्तरीय खेल मैदान भी नहीं बनवा सके बल्कि खिलाड़ियों से याचना करते हुए चार माह के लिए साधूराम स्कूल में लग रही चौपाटी को फारेस्टर प्ले ग्राउंड में लगाने की सहमति ली थी। मगर वादा खिलाफी इतनी कि चौपाटी सालों बाद आज भी फारेस्टर प्ले ग्राउंड की छाती में किसी भाले की तरह गड़ी हुई है।
खिलाड़ियों के बीच से ही बना विधायक फारेस्टर प्ले ग्राउंड के विकास के लिए लाखों रुपये का फंड तो ले आया मगर ग्राउंड विकास में बाधक बनी चौपाटी को हटवाने के मामले में थर्ड जेंडर से भी गया बीता साबित हो रहा है।
इस समय जब चुनाव के मुहाने पर खड़ी सरकार का मुखिया भीतर ही भीतर इतना भयभीत है कि फिर से सत्ता हथियाने के लिए जिला - जिला और मेडिकल - मेडिकल खेल रहा है। इसके बावजूद कटनी की जनता मेडिकल कॉलेज के लिए तरस रही है और भाजपा के छुटभैये से लेकर बड़भैये तक कुंभकर्णी नींद में सो रहे हैं।
वैसे देखा जाय तो कुछ गलत नहीं हो रहा है। मेडिकल कॉलेज की जरूरत तो जिंदा लोगों को पड़ती है मुरदा लोगों को काहे का मेडिकल। उन्हें तो मरघट और कब्रिस्तान की जरूरत होती है। मुठ्ठी भर लोग सालभर से मेडिकल कॉलेज के लिए आवाज उठा रहे हैं। इसी तरह अतिक्रमण मुक्त यातायात के लिए सुविधाजनक सडकों की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन आदि कर रहे हैं। मगर उनके खाते आ रहा है बाबाजी का घंटा।
कहा जाता है कि बुधनी जैसी छोटी जगह पर मेडिकल कॉलेज खोल दिया गया परन्तु औद्योगिक जिले कटनी में नहीं। बुधनी में मेडिकल कॉलेज और मैहर को जिला बनाने के पीछे का सच यह है कि वहां के विधायक ने जनता के समर्थन से सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थी। कटनी के विधायक ने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया।
विधायक ऐसा कुछ करे भी तो क्यों करे। जब जनता चारों तरफ से उपेक्षित होकर भी पिछले चार विधानसभा चुनाव में एक ही पार्टी को चुनती आ रही है। इतना ही नहीं नगर सरकार में भी उसी पार्टी की ताजपोशी कर रही है। पार्टी का अंध भक्त बनकर कटनी की जनता बाहरी व्यक्ति को सांसद तक चुनती आ रही है। इससे उस पार्टी को पता है कि कटनी वासियों को कुछ मिले या न मिले, उस पर चाहे जितने जुल्म करो वह झख मारकर हमारी ही पार्टी को चुनेगी।
मेडिकल कॉलेज की मांग को लेकर किए जाने वाला आन्दोलन कटनी की जनता को एक अवसर दे रहा है कि वह अपने जीवित होने का सबूत दे। गुमानियत में जी रहे नेताओं को अह्सास करा दे कि अब कटनी वासी कस्बाई मानसिकता से उबर चुके हैं अब मां रूठे या पापा, भैया रूठे या भाभी।

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