सियासत--कहीं पर नजरें कहीं पर निशाना

कटनी। भाजपा ने चंद महीने बाद मध्यप्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए जारी उम्मीदवारों की दूसरी सूची में जिन सांसदों और संगठन के राष्ट्रीय महासचिव के नाम घोषित किए हैं। उसमें परदे के पीछे छिपी कहानी का खुलासा होने लगा है। पार्टी नेतृत्व (मोदी - शाह) पर बारीक नजर रखने वाले सूत्रों के अनुसार इंदौर 1 से राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, जबलपुर पश्चिम से सांसद राकेश सिंग तथा सतना से सांसद गणेश सिंग को विधानसभा चुनाव में टिकिट देने के पीछे 2018 में हुए चुनाव में इन्ही विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत के पीछे इन्हीं लोगों की साजिशी भूमिका रही है !

भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय जिन्होंने इंदौर संभाग के अलग - अलग विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। 2018 में इन्होंने अपने पुत्र आकाश को इदौर 3 से विधायक बनवाकर संगठन में राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी संभाली थी। इंदौर 1 में कांग्रेस के उम्मीदवार, जिनसे कैलाश विजयवर्गीय के पारिवारिक और आंतरिक संबंध हैं, की जीत में परदे के पीछे से कैलाश की महती भूमिका रही है ! अब पार्टी ने कैलाश को ही मैदान में उतार दिया है। पूरी संभावना है कि कांग्रेस सिटिंग एमएलए को ही मैदान में उतारेगी तब कैलाश के सामने एक धर्म संकट तो खड़ा हो ही जायेगा कि वे अब किस मुंह से उस जनता से अपने लिए वोट मांगेंगे जिससे पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा कैंडीडेट के लिए वोट मांगने के बजाय कांग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट मांगे गये थे। कैलाश अगर चुनाव जीत गये तो ठीक है मगर खुदा न खास्ता चुनाव हार गये तो उनका राजनीतिक कैरियर भी समाप्त हो सकता है ! इतना ही नहीं पार्टी ने कैलाश के बेटे आकाश को भी निशाने पर ले लिया है। परिवारवाद को कोसने वाले मोदी की पार्टी बाप - बेटे दोनों को टिकिट देते तो नहीं दिख रही। मतलब साफ दिख रहा है कि बाप की करनी का भुगतमान बेटे को भोगना पड़ेगा।

ऐसी ही कहानी जबलपुर पश्चिम से विजयी कांग्रेस उम्मीदवार तरुण भनोट और राकेश सिंग के बीच बताई जा रही है। 2018 में भाजपा उम्मीदवार रहे व्यक्ति से राकेश का छत्तीस का आंकड़ा बताया जाता है। शायद यही कारण था कि राकेश ने अपनी ही पार्टी उम्मीदवार को हराने के लिए पर्दे के पीछे से  कांग्रेस कैंडीडेट की भरपूर मदद की थी। नतीजा भी राकेश के अनुकूल ही रहा। अब भाजपा हाईकमान ने राकेश को ही तरुण भनोट (कांग्रेस से टिकिट मिलने की पूरी संभावना है) के सामने ही खड़ा कर दिया है।

इसी कतार में खड़े कर दिए गए हैं सतना सांसद गणेश सिंग। कहा जाता है कि गणेश सिंग ने अपने राजनीतिक बजूद की लकीर बड़ी बनाने के लिए भाजपा कैंडीडेट रहे शंकर लाल तिवारी की जीत के रास्ते में कांटे बोने में कोई कोर - कसर नहीं छोड़ी। नतीजा भी सबके सामने रहा। अब मोदी - शाह की जोड़ी ने गणेश सिंग को ही सतना से टिकिट देकर अपने पार्टी विरोधी किये गये क्रिया - कलापों पर प्राश्चित करने का मौका दिया है। चुनाव जीत गये तो ठीक वरना पार्टी दरकिनार करने में कोई संकोच नहीं करेगी।

जहां एक तबके के अनुसार मोदी - शाह द्वारा विधानसभा चुनाव में जिस तरह सांसदों को उम्मीदवारी दी जा रही है उससे इस बात के भी संकेत मिल रहे हैं कि अब पार्टी इन घिसे-पिटे चेहरों से आजिज आ चुकी है और 2024 के आम चुनाव में नये लोगों को टिकिट देने की रणनीति बनाते दिख रही है । वैसे भी उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है कि मोदी - शाह के लिए 2023 से ज्यादा महत्वपूर्ण 2024 है। भले ही विधानसभा चुनाव हार जायें मगर हरहाल में लोकसभा चुनाव जीतना है चाहे उसके लिए किसी भी हद तक जाकर कुछ भी करना पड़े। वहीं दूसरे तबके का मानना है कि 2024 के आम चुनाव में जीत के लिए पूरी तरह से आश्वस्त मोदी - शाह सांसदों के बलवूते विधानसभा चुनाव जीत कर 2026 तक राज्यसभा में भाजपा सांसदों की संख्या में ईजाफा करने का मंसूबा पाले हुए हैं।

वैसे भी 2024 का आम चुनाव मोदी के लिए आखिरी चुनाव है। इसके बाद वह भी अपनी ही बनाई गई गाइडलाइन के चक्रव्यूह में फंस कर अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी की तरह अपने राजनीतिक चेले अमित शाह द्वारा मार्गदर्शक मंडल की कतार में बैठा दिये जायेंगे !

                कांग्रेस भी सकते में

कल तक मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के लिए पूरी तरह आश्वस्त कांग्रेस की पेशानी पर भी बल पड़ते दिखाई दे रहे हैं। 18 साल के राजा के खिलाफ जनता में परसी पड़ी नकारात्मकता के भरोसे आसानी से सरकार बना लेने का आत्मविश्वास पाले बैठी कांग्रेस की रणनीति मोदी - शाह द्वारा सांसदों की फौज को विधानसभा चुनाव में उतार देने से गड्डमड्ड हो गई है। कल तक जहां कांग्रेस अति आत्मविश्वास के रथ पर सवार होकर विचरण कर रही थी, सांसदों के विधानसभा चुनाव में उतरने से कांग्रेस को अपनी रणनीतिक साझेदारी को बदलने के लिए विवश होना पड़ गया है। भाजपा से पहले अपने उम्मीदवारों का ऐलान करने वाला कांग्रेसी आलाकमान भाजपा के तकरीबन एक चौथाई कैंडीडेट घोषित हो जाने के बावजूद अपने एक उम्मीदवार का नाम तक घोषित नहीं कर पाया है।

कांग्रेस द्वारा भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा का काउंटर करने निकाली जा रही जन आक्रोश यात्रा के लिए प्रभारी बनाये गये जिम्मेदार कुछ जगहों पर भाजपा से सग्गामित्ती करते नजर आ रहे हैं। ऐसा ही वाक्या कटनी जिले में दिखाई दिया जो कांग्रेसियों सहित जनता के बीच भी चर्चा में बना हुआ है। बताया जाता है कि कटनी जिले में कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा का नेतृत्व करने का उत्तरदायित्व अजय सिंह को सौंपा गया था। उनका कटनी की धरा पर आगमन तो हुआ मगर वे कटनी में एक कांग्रेस के पूर्व विधायक के घर में कटनी के सिटिंग एमएलए से तकरीबन एक घंटा गोपनीय मुलाकात कर यात्रा को मझधार में छोड़कर वापस लौट गये। स्थानीय कांग्रेसियों के माले - गुलदस्ते ताकते रह गये। भाजपाई विधायक से कांग्रेस के कद्दावर नेता की गुफ्तगू को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कहीं एक बार फिर से कांग्रेस नेताओं के द्वारा कटनी जिले में पिछले 20 सालों से कांग्रेस की डूबी हुई लुटिया को अगले 5 साल के लिए फिर से डुबाये रखने के ताने-बाने तो नहीं बुने जा रहे हैं ! शायद यही कारण है कि जिस जन आक्रोश यात्रा को कटनी होते हुए सिहोरा की ओर जाना था उसे शहर के बीच मे ही खत्म करना पड़ा।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

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