अपहरण साजिसकर्ता भाजपा विधायक संजय पाठक समेत निगमाध्यक्ष पर केस दर्ज करने कोर्ट ने दिया आदेश

टनी। एक राजा को गुमान और अहंकार था कि ये दो वनवासी उसका क्या बिगाड़ लेंगे, उसी तरह सत्ता और धन के नशे में चूर विजयराघवगढ़ भाजपा विधायक संजय पाठक भी इसी मुगालते में रहे आये कि ये डेढ़ फुटिया पत्रकार रवि गुप्ता जिसका कोई वजूद ही नहीं है वो भला संजय पाठक जैसी हस्ति का क्या बिगाड़ लेगा। हालांकि ये बात भी सच है कि जिसके आगे शासन से लेकर तमाम तरह का प्रशासन जी -हुजूरी करता हो भला उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है। संजय पाठक का यदि रवि गुप्ता एक प्रतिशत भी कुछ बिगाड़ पाया तो वही बात होगी कि एक चींटी ने हाथी को थप्पड़ जड़ दिया। न्यायालय की शरण में जाकर लड़ी जा रही स्वाभिमान की लड़ाई में न्यायालय द्वारा पत्रकार रवि गुप्ता की फरियाद पर संजय पाठक वगैरह के विरुद्ध संगीन धाराओं के तहत दर्ज किये गये मुकदमा से ये बात साफ हो गई कि कहीं न कहीं चींटी ने हाथी को आखिरकार थप्पड़ जड़ ही दिया.?  जिसके बाद अब विधायक पाठक का राजनैतिक भविष्य और विधानसभा चुनाव में मिलने वाली टिकिट पर और भी ज्यादा खतरा मंडराता हुआ नजर आ रहा है।

विधानसभा चुनाव आने से कुछ माह पूर्व ही संजय पाठक वगैरह के खिलाफ संगीन धाराओं के तहत मुकदमा पंजीबद्व हो जाना छोटा नहीं बल्कि भारी नुकसान माना जा सकता है। इस मान सम्मान की लड़ाई में पत्रकार रवि गुप्ता के पास वैसे तो खोने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन संजय पाठक को मिलने वाली ऑक्सीजन सत्ता है जिसके बल पर ये सांस ले रहे हैं, क्योंकि सत्ता के दम से ही व्यापार है। जिस दिन सत्ता खत्म उस दिन व्यापार, इर्द गिर्द घूमने वाले खाली सिलेंडर भी नजर नहीं आएंगे। अब डेढ़ फुटिया से पंगा लिए हो तो हैंडपंप का ध्यान कर लिए होते तो शायद आज इतनी किरकिरी न हो रही होती। खैर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। 

खैर आंगे की जानकारी विस्तार पूर्वक बताते चलें कि विजय राघवगढ़ के भाजपा विधायक संजय पाठक एवं उसके पाले हुए भाजपा गुर्गों के द्वारा डिजिटल मीडिया के पत्रकार को 23, 24 मई 2022 की दरमियानी रात संजय पाठक के लिए कलंक की काली रात उस समय बन गई जब पाठक ने पत्रकार का अपहरण की साजिस रच और अपहरण कराकर जान से मारने की कोशिश की गई थी। उसी दिन से संजय पाठक के सारे ग्रह विपरीत दिशा में चल पड़े थे। 

संजय पाठक को ये तो पता था कि उसकी कालीकरतूत की इबारत ( FIR ) पुलिस तो लिखने से रही, और हुआ भी वही। पीड़ित द्वारा लिखित शिकायत कटनी पुलिस अधीक्षक के नाम दिया गया था। लेकिन कार्रवाई करने के नाम पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुनील जैन तो बलवंत राय का पट्टा डाले हुए थे, जिसके कारण जाते - जाते भी कार्रवाई करने का जिगर नहीं दिखा पाये। और आज दिनांक तक शिकायत पर पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। सबसे मजेदार बात ये है कि गले में बलवंत राय का पट्टा डाले तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुनील कुमार जैन कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये अलबत्ता गुजरते समय के साथ डीआईजी का प्रोमशन लेकर कटनी को टाटा, बाय -बाय करके चले गए।

आगे बताते चलें कि एक साल से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद जब भाजपा विधायक संजय पाठक, उसका चचेरा भाई निगमाध्यक्ष मनीष पाठक, गुड्डा जैन, कांग्रेस के पूर्व विधायक सुनील मिश्रा का छोटा भाई सुधीर मिश्रा उर्फ मट्टू, आरक्षक मुकेश पांडेय, निक्कू सरदार, पूर्व पार्षद एवं भाजपा महापौर प्रत्याशी पति विनय दीक्षित, अनुज तिवारी वगैरह के खिलाफ दिए गए शिकायत पत्र पर नवागत पुलिस अधीक्षक अभिजीत कुमार रंजन से चर्चा की गई तो उनका जवाब सुनकर होश ही उड़ गए। उनका कहना है कि ये मामला मेरे समय का नहीं है। इसलिए मैं इस पर कुछ नहीं कर सकता। उनका कहना है कि जैन साहब के समय का मामला है तो उन्ही से बोलो। है ना हैरान कर देने वाली बात.? अब ऐसे पढ़े - लिखे पुलिस अधीक्षक को क्या ये बताना अच्छा लगता है कि तबादला अधिकारी का होता है पद या कुर्सी का नहीं.?

अधिकारी तो आते - जाते रहते हैं, लेकिन पद वही रहता। अब भला ये कहना कहां तक लाजमी है कि मामला तत्कालीन एसपी के समय का है तो कार्रवाई वही करेंगे। इन महाशय के हिसाब से तो फिर वर्तमान एसपी अपनी पुरानी जगह में पदस्थ हो या फिर डीआईजी बन चुके तत्कालीन एसपी सुनील कुमार जैन वापस डीआईजी से एसपी बन कटनी का पदभार पुनः संभाले। भला जिले के पुलिस कप्तान को ये बोलना शोभा देता है.?

ये बात अलग है कि संजय पाठक के खिलाफ कार्रवाई करने का जिगरा कोई पनवाड़ी की दूकान में तो मिलता नहीं है कि खाये चबाए और हो गया.?

सबसे बड़ी और मजेदार बात ये है कि संजय पाठक के खिलाफ पुलिस अधीक्षक के नाम शिकायत क्या दी गई थी पीछे  - पीछे कुछ तलवे चाटू भांड मीडिया भी पहुँच गई थी तत्कालीन पुलिस अधीक्षक को फ़र्ज़ी पत्रकार के खिलाफ ज्ञापन देकर कार्रवाई की मुहिम चलवाने के पक्षधर बनकर। फिर क्या था तलवे चाटुओं को भी मुँह की खानी पड़ी। आलम ये रहा कि आज तक ना तो मुहिम चली और ना ही आज तक जांच पूरी हो पाई। खैर खाक डालिये इन सब बातों पर।

आगें बताये चलें कि पुलिस अधीक्षक को दी गई शिकायत पर जब कोई कार्रवाई नहीं कि गई तो डिजिटल मीडिया जन आवाज के संपादक पीड़ित रवि गुप्ता ने कटनी न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए न्यायालय की शरण में जाकर अपने अधिवक्ता लोकेंद्र दुबे के जरिये जुलाई 2022 में  जिला न्यायालय कटनी में परिवाद दायर किया गया। जिस पर लंबी चली प्रकिया के बाद माननीय न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए परिवादी के कथन और पेश किए सबूतों के आधार पर प्रथम दृष्टया अपराध कारित होना पाया गया। जिस पर माननीय न्यायालय प्रथम व्यवहार वरिष्ठ खंड के द्वितीय अतिरिक्त न्यायाधीश श्रीमती स्नेहा सिंह ने 4 सितंबर 23 को आदेश पारित करते हुए लिखा कि अनावेदकगण द्वारा आवेदक के साथ मारपीट की गई थी तथा सार्वजनिक स्थल पर या उसके समीप उसे अश्लील गालियां दी गई थी एवं इसके साथ ही आवेदक को उसकी मर्जी के बिना कार में बैठाकर ले गये।

 तथा बाद में उसे मारपीट कर कार से बाहर फेंक दिया एवं अनावेदकगण द्वारा आवेदक को जान से मारने की धमकी दी गई। अतः प्रथम दृष्टया अभियुक्तगण के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा - 323, 294, 365, 366 और 506 भाग - 2, के अंर्तगत अपराध बनना प्रतीत होता है। अतः अभियुक्तगण के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 294, 365,366,और 506 भाग - 2 में पंजीबद्ध किया जावे, किंतु इस प्रकरण में एक अनावेदक संजय पाठक एम .एल. ए. है ऐसी स्थिति में उक्त अनावेदक के विरुद्ध प्रकरण इस न्यायालय में विचाराधीन नहीं रह सकता चूंकि मंत्री, विधायकों आदि के लिए जिला जबलपुर में अलग से न्यायालय निर्मित की गई है। उक्त प्रकरण में उसी न्यायालय में विचाराधीन होगा। ऐसी स्थिति में इस प्रकरण को जबलपुर की एम.पी. एम.एल.ए. न्यायालय में स्थानांतरित किया जाना उचित प्रतीत होता है। अतः उक्त प्रकरण को जबलपुर के न्यायालय में स्थानांतरित किया जाता है। 

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