हम आपको भूल ना पाएंगे
कटनी। सुना है, शहरी सचिव जी का ट्रांफ़र हो गया है! बहुत से लोगों ने व्हाट्सएप्प पर यह सूचना दी। मुझे तो यकीन हीं नही हो रहा था कि उनका तबादला भी हो सकता है! लेकिन आखिरी में मध्य प्रदेश शासन की लिस्ट देखी तो? बड़े भले मानुष थे सचिव जी, उन्होंने किसी का अहित नही किया। ये बात दीगर है कि उन पर तरह – तरह के आरोप प्रत्यारोप लगते रहे। ऐसा भला आदमी कहां मिलेगा जो अपने सरपंच हां वही शहर की महापौर की तमाम कारगुजारियों को अनदेखा कर उनकी कुर्सी को सलामत रखे। याद है ना आपको महापौर प्रीती सूरी ने शासकीय लेटर पेड का बेजा इस्तेमाल कर सचिव जी यानी नगर निगम कमिशनर को एक पत्र लिखा था. लेटर पेड तो सरकारी था लेकिन दस्तखत एक निजी संस्था के सचिव के थे।
चाहते तो कमिशनर साहब लेटर पेड का गलत इस्तेमाल को लेकर कार्यवाही की मांग कर सकते थे, लेकिन मासूम सचिव यानी कमिश्नर ने अपने शहरी सरपंच, हां भाई. महापौर की गलती पर चूं तक नही किया। आज कल भला ऐसा वफदार इंसान आज कल मिलता है क्या ? कोविड काल में जब शहर घरों में सिमटा हुआ था तब साहब ने अपना भी दायरा समेट लिया था। ऐसा करना भी तो लाजमी था जब कोई सड़क पर नही होगा, कोई निर्माण कार्य नही होगा तो मुनाफ़ा कहां से कैसे होगा?
मुनाफ़े का खास ख्याल रखना सचिव जी अरे हां भाई कमिश्नर साहब की प्राथमिकता थी, यही वजह है कि उन्होंने फ़ायदे के अलावा कोई और रास्ता अख्तियार नही किया। शासकीय जमीनों पर टेक्स रसीद के बूते मकान बनवा कर लोगों को घरौंदा देने वाले सहज – सरल कमिश्नर बिरले हीं होते हैं। वरना प्रधान मंत्री आवास के लिए इतने डाक्यूमेंट मांग लिए जाते हैं कि आदमी कागज जुटाते जुटाते खुद हीं बेघर हो जाता है। लेकिन इससे ईतर हमारे मासूम कमिश्नर ने सारे नियम कायदों को दरकिनार कर सिर्फ़ नगर निगम की टेक्स रसीद पर लोगों को आलीशान मकान बनाने की ईजाजत दे दी।
भला आज के जमाने में ऐसा कोई अधिकारी मिलता है क्या? ये बात अलग है कि पशु चिकित्सालय वाले लोगों के आलीशान मकान को जबरन कब्जा बता कर साहब को बदनाम करते रहते हैं। अरे भाई साहब घर बसाना जानते हैं उजाड़ना नही। यही वजह है कि अवैध कालोनियों को साहब के कार्यकाल में हीं निर्माण हुआ है। हम और आप संवैधानिक तौर पर अवैध कह सकते हैं लेकिन घर तो घर होता है, वह अवैध कैसे हो सकता है? इस सिद्धांत को आत्मसात करने वाले सत्येंद्र सिंह धाकड़े का तबादला कटनी के लोगों के लिए वज्रपात से कम नही है। और भी बहुत कुछ है कहने और लिखने को लेकिन क्या करें आपके जाने से हमारा मन ………………। यादें तो बेहिसाब है, क्या लिख्खें क्या क्या कहें? साहब हम आपको भूल ना पाएंगे।
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