तथाकथित चमत्कारिक भाजपाई मूत, मूत्र स्नान करते ही लड़के का हुआ कायाकल्प
चमत्कारी दोनों वीडियो ने केवल सोशल मीडिया में ही धूम मचा रखी है ऐसा नहीं है बल्कि उन तस्वीरों को तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने भी तवज्जो दी है।
एक तस्वीर वह है जिसमें प्रवेश शुक्ला कहे जाने वाला व्यक्ति एक आदिवासी समाज से आने वाले युवा को सिर से मूत्र स्नान करा रहा है तो दूसरी तस्वीर वह है जिसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रवेश शुक्ला द्वारा मूत्र स्नान कराये गये व्यक्ति के पांव पखार रहे हैं।
दोनों तस्वीरें अपनी - अपनी कहानी खुदबखुद बयां कर रही हैं।
एक वह तस्वीर है जिसमें एक व्यक्ति खड़े होकर एक युवा के सिर पर मूत रहा है। युवक मासूम सा 15 - 16 साल आयु वर्ग का नजर आ रहा है। सिर के बाल काले और घुंघराले है। मानसिक रूप से भी अस्वस्थ सा दिख रहा है। नाम पाले कोल बताया जा रहा है।
दूसरी तस्वीर वह है जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व्यक्तिशः एक व्यक्ति के पांव पखार रहे हैं। तस्वीर स्वमेव बताती है कि व्यक्ति अधेड़ आयु का है। सिर के बाल चितकबरे और सीधे हैं। नाम दशमत रावत बताया जा रहा है।
अब इसे तथाकथित भाजपाई मूत्र नहान का चत्काराई नमूना नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि 15 - 16 साल का मासूम सा लड़का सीधी में मूत्र स्नान करने के बाद भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने पहुंचते ही अधेड़ हो जाता है। उसके काले घुंघराले बाल सीधे और चितकबरे हो जाते हैं। नाम दशमत रावत हो जाता है।
अभी तक तो प्रायः हर रोज भाजपा पूरे देश में तथाकथित बलात्कारियों, भृष्टाचारियों, संगीनतम अपराधियों को सीबीआई, ईडी जैसी संवैधानिक संस्थाओं के मार्फत अपने में शामिल कर शुध्दीकरण का सर्टिफिकेट बांट ही रही है। मगर यह चमत्कार भाजपा ने पहली बार दिखाया है वह भी मध्यप्रदेश की धरती पर शिवराज सिंह चौहान के मार्फत। जहां तथाकथित भाजपाई मूत स्नान करते ही 15 - 16 साल का मासूम सा दिखने वाला लड़का 40 - 42 साल का अधेड़ हो गया है । उसके काले घुंघराले बाल चितकबरे और सीधे हो गये। नाम भी पाले कोल से दशमत रावत हो गया। मानसिक अवस्था भी सामान्य हो गई। इसे कहते हैं आंखों से काजल चुराना।
देश और प्रदेश में अभी तक न जाने कितने घोटाले सामने आये हैं। मगर कायाकल्प घोटाला पहली बार सामने आया है। अतंर अंध इसे घोटाला तो मानने से रहे तो फिर इस घोटाले की जांच कराने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अंध समर्थक इसे अपने आकाओं का चमत्कार तो मान ही सकते हैं।
अगर यह चमत्कार है तो फिर वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान का नया विषय है। अगर चमत्कार नहीं है तो फिर न केवल आदिवासी अस्मिता के साथ जबरदस्त खिलवाड़ है बल्कि आमजनों के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात है। जिसकी जांच भी होनी चाहिए और दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए।
मगर इस प्रकरण में न तो सरकार कुछ करेगी न अदालत। सरकार और अदालत से किसी भी तरह की उम्मीद करना भी बेमानी होगी इसलिए अब न्यायाधीश की भूमिका तो जनता जनार्दन को ही निभानी होगी बिना राग दोष पाले।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
Post a Comment