पतझड़ की परिस्थितियां भिन्न हैं अमृत को बेनकाब किया शिवांबु ने
खरी - अखरी
कटनी। ( जन आवाज ) । मोदी रचित अमृतकाल के मूत्रकाल में बदलते ही प्रकृति के चौमासे के साथ मध्य प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी की संभावित डूबती कश्ती को छोड़कर तथाकथित नामधारी नेता अपने पिछलग्गुओं को लेकर कांग्रेस या अन्य पार्टियों का दामन थामने के लिए फड़फड़ा रहे हैं।
राजनीतिक गतिविधियों पर बारीक नजर रखने वालों का कहना है कि प्रदेश स्तर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वनमैन शो, प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के विवादित बोल और ज्योतिरादित्य सिंधिया की एंट्री को लेकर पार्टी के कुछ कद्दावर नेता खुद को असहज महसूस कर रहे हैं और अपने सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की खातिर दलबदल कर कांग्रेस का हाथ थाम रहे हैं।
जैसी कि खबर आ रही है कि संस्कारधानी के दो बार विधायक रह चुके वरिष्ठ भाजपाई जिन्हें पार्टी ने उम्रदराज मानकर हासिये पर डाल दिया है जल्द ही भाजपा का कमल छोड़ कांग्रेस के पंजे से ईलू-ईलू कर सकते हैं।
महाकौशल के दो कद्दावर नेता शंकर महतो (बहोरीबंद) और पूर्व विधायक धुव्र प्रताप सिंह (विजयराघवगढ़) ने कुछ दिनों पहले ही अपने अनुयायियों के साथ भाजपा को अलविदा कहते हुए कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। विजयराघवगढ़ क्षेत्र से और भी भाजपाई नेताओं के पार्टी छोड़ कर कांग्रेस ज्वाइन करने की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है।
प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों और विजयराघवगढ़ क्षेत्र में हो रहे दलबदल को एक ही तराजू पर रखकर नहीं तौला जा सकता है। प्रदेश के अन्य क्षेत्र में नेताओं के दलबदल के पीछे का कारण शिवराज, विष्णुदत्त और ज्योतिरादित्य हो सकते हैं मगर विजयराघवगढ़ क्षेत्र में हो रहे दलबदल का सबसे बड़ा कारण इन तीनों से कहीं ज्यादा क्षेत्रीय विधायक संजय पाठक को माना जा रहा है।
जिसमें सबसे महती भूमिका निभाई जा रही है खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के द्वारा। अपने निजी और व्यापारिक हितों को साधने के लिए भाजपा ज्वाइन करने के बाद बने फाइव स्टारी नेता, केबिनेट मंत्री, सुपर सीएम का रुतवा पाले जिस लाठी से शासन, प्रशासन, नेता, अभिनेता, मंत्री, संतरी, मुख्यमंत्री, प्रदेशाध्यक्ष को अपने सामने नतमस्तक किया उसी लाठी से क्षेत्र के निखालिस भाजपाईयों को हांका जाना मंजूर नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज और प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त द्वारा लिए जाने वाले अंधत्व निर्णय पार्टी के वरिष्ठ मूल भाजपाईयों को कहीं-न-कहीं अपमानित कर रहे हैं।
स्वाभाविक है जब पार्टी का प्रदेश नेतृत्व ही अलगाव की आग को बुझाने के बजाय भड़का रहा हो तो जिले के अनुभवहीन - नौसिखिया नेतृत्व से कैसे बिखरते परिवार में एका रखने की उम्मीद की जा सकती है। वैसे भी उनको तो एक ही मंत्र जाप करने को कहा गया है "जी भाई साहब - जी भाई साहब"।
लाल सतेन्द्र सिंह बघेल द्वारा तैयार की गई निखालिस भाजपाई जमीन को वर्णसंकरीय जमीन बनाने के लिए प्राणपण से जुटे संजय पर यदि नकेल कसने का साहस हाईकमान नहीं दिखाता है तो विजयराघवगढ़ को निखालिस भाजपा विहीन होने से कोई नहीं रोक पायेगा।
भाजपा नेतृत्व को यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस में संजय को सवा सेर बनाने वाले आज भी कांग्रेस में ही हैं, उन्होंने संजय के साथ भाजपा ज्वाइन नहीं की है। संजय और भाजपा का प्रादेशिक नेतृत्व जिन्हें चवन्नी छाप नेता समझता है उनमें आज भी इतनी क्षमता तो है ही कि जिस शेर के बगल में खड़े हो जायेंगे उसे सवा शेर तो बना ही देंगे। क्षेत्रीय कांग्रेसी नैया की पतवार थामे इन लोगों में अरविंद बडगैया, श्याम तिवारी, सी एल गर्ग, सुरेंद्र दुबे, नीरज अग्रवाल, शाहिद हुसैन, संजय बिलौंहा, हरप्रसाद सोनी, विजय अग्रवाल, विकास पांडे, शहजाद हुसैन रिजवी, सरवर खान, संतोष तिवारी, उमाशंकर गुप्ता, अजय वर्मा जैसे नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं ।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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