भाजपा विधायक ने छोड़ा नया शिगूफा जनता के जनमत का इंतजार


टनी/ वि.गढ़। इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हो रहा होगा जब सत्ता काबिज विधायक असली चुनाव के पहले नकली चुनाव ( जनमत संग्रह) करने की बात कर रहे है। ऐसा करने के पीछे की मंशा खुद का आत्मविश्वास का डगमगाना या फिर अपने ही क्षेत्र की जनता का विश्वास खो देना या फिर अतीत का पीछा न छोड़ना? इनमें से कोई न कोई वजह जरूर हो सकती है। जिस तरह से नेता जी ने मंच से खड़े होकर जनता जनार्दन के सामने अपनी पीड़ा व्यक्त की है उसे सुनने के बाद मेरे जेहन में एक फिल्म का गाना एका एक याद आ गया। और उस गाने के बोल थे "कोई क्या पहचाने जिसका दर्द वही जाने'। अब ये तो भलीभांति वही बता सकता है जो इस दर्द से गुजर रहा है? यहां नेता जी अपना दर्द जनता के सामने जाहिर करने में लगे हुए थे और जनता जनार्दन एक स्टोरी की तरह सुनकर ताली बजाने में लगी रही? अब देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि नेता जी को जनता कितना प्यार और पसंद करती है। ये तो नकली वोटिंग का परिणाम आने के बाद ही मालूमात हो पायेगा कि जनता नेता जी को ग्राम, किलो में पसंद करेगी या प्रतिशत में ये तो भविष्य के गर्त में छुपा है। खैर आपको बता दे कि जो विधायक लोकमत से कहीं ज्यादा चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड और भेद जैसे हथकंडों पर भरोसा करते हुए कई पंचवर्षीय से आजमाते चले आ रहे हो, आज वही नेता जिनकी प्रदेश से लेकर केंद्र तक में सत्ता का डंका बज रहा हो वो जनमत संग्रह की बात कर रहे है। आखिर क्या हो गया है नेता जी को। इतने सीधे सादे, मधुर, मिलनसार, गरीबों के मशीहा और क्या बोलूं मेरे पास तो शब्द ही कम पड़ रहे है। इतनी खूबियों के धनी नेता जी को जनता के सामने इतना बेबस होते देख अच्छा नहीं लग रहा है? खैर किया भी क्या जा सकता है।


अब ये बात अलग है कि नेताजी का भोलीभाली जनता के सामने इमोशनल ड्रामा है या फिर कूटरचित राजनीति का एक हिस्सा? खैर जो भी हो आने वाला समय आईने पे पड़ी धूल को खुद पे खुद सूरत के पीछे छिपी सीरत को साफ कर देगा। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। नहीं समझे चलिए जनाब कोई बात नहीं हम ही इस राज से पर्दा उठाने में आपकी मदद कर देते है। जी हां हम बात कर रहे है जाने माने भाजपा विधायक संजय पाठक की। जो दो दिन पहले ही जनता के बीच इमोशनल ड्रामा करते हुए का वीडियो पब्लिस हुआ है। जिसमें विधायक जी गजब की ड्रामेबाजी करते हुए दिखाई दे रहे है। शायद राजनीति के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब चुनाव आयोग के चुनाव कराने से पहले संजय पाठक घर - घर दस्तक देकर नकली चुनाव के साथ नकली वोटिंग करायेंगे। और चुनाव लड़ने के लिए भाग्य का पिटारा बंद होगा टीन नुमा कंसरे के डिब्बे में। हालांकि इस तरह के अजब - गजब कारनामे मध्यप्रदेश के कटनी जिले में ही हो सकते है ..? 


खैर आगे बताते चलें कि 2023 - 24 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर विजयराघवगढ़ के कद्दावर भाजपा विधायक संजय पाठक ने ऐसा पांशा फेका है कि सुनने वाले दांतो तले उंगलियां दबाने के लिए मजबूर हो गए है? अब जनता इस पशोपेश में है और समझने की जुगत भी लगा रही है कि संजय पाठक कौन सा खेल खेलने का प्रयास कर रहे हैं। दरसल इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव को लड़ने का फैसला संजय पाठक ने विजयराघवगढ़ विधानसभा की जनता को सौंप दिए हैं। संजय पाठक का कहना है कि यदि जनता कहती है कि भैया आप चुनाव लड़ो तो लड़ूंगा नहीं तो नहीं लड़ूंगा। उनका ये भी कहना है कि यदि जनता जनमत संग्रह के आधार पर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट देती है तो ही चुनाव लड़ूंगा। यदि इससे कम जनमत मिलता है तो चुनाव नहीं लड़ूंगा चाहे कुछ भी हो जाये। 


इससे आखिर क्या समझाने की कोशिश की जा रही है कि अब जनता ही सब कुछ है। उस समय जनता का ख्याल नहीं आया जब जनपद पंचायत के बाहर सड़क किनारे रोजी रोटी कमाने वाले की अस्थाई दूकान हटावा दिया गया था। और इसी जनता को संजय पाठक मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा पड़ा था? और 17 दुकानदार दर- बदर हो गए थे। आज उसी जनता से जनमत संग्रह (समर्थन) की दुहाई देने में लग गए। आखिर क्यों? क्योंकि संजय पाठक को ये बात भलीभांति पता है कि उनका वजूद तब तक है जब तक सत्ता का पॉवर है। सत्ता खतम तो व्यापार खतम?


 सबसे मजेदार बात ये है कि जो हार का स्वाद कभी न चखा हो और जनता सीधे हार की माला से नवाज दे वो भी शहरी क्षेत्र की उसके लिए दुबारा चुनाव को हारने का जहन में आना नीम चढ़ा करेला से भी बत्तर जैसा स्वाद ही होगा। आपको बता दे कि महापौर की शिकस्त के कड़वा स्वाद का जायका अभी बदल नहीं पाया और सिर पर फिर से विधानसभा चुनाव की तलवार लटकने लगी। सीधी सी बात है इतना सब होने के बाद डरना लाजमी हो जाता है? 

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