बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
कटनी। गत दिवस विजयराघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र के कुछ लोगों ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। जिसमें एक - दो लोगों को विधायक संजय पाठक का करीबी बताया जा रहा है। साथ ही इस दलबदल को भाजपा के लिए करारा झटका बताया जा रहा है तथा ऐसे लोगों के कांग्रेस में आने से कांग्रेसी फूले नहीं समा रहे हैं।
दलबदलूओं का विधायक संजय पाठक का करीबी होना, दलबदलूओं से भाजपा को झटका लगना और दलबदलूओं के कांग्रेस में आने से कांग्रेसियों का फूला ना समाना - तीनों के अलग अलग मायने हैं।
जिसे संजय का करीबी बताया जा रहा है उसने भाजपा छोड़ी। मतलब अगर वह करीबी है तो संजय के साथ ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आया होगा। अब कांग्रेस में वापिस गया है तो तय है कि संजय के कहने पर ही गया है।
जिसे संजय का करीबी कहा जा रहा है उसमें खुद का इतना राजनीतिक वजूद नहीं है कि वह खुद कोई निर्णय ले सके। इसके पहले भी संजय के करीबी ने संजय के साथ ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की थी और संजय के कहने पर ही घर वापिसी की थी और आज जिला कांग्रेस की सबसे बड़ी कुर्सी पर विराजमान है।
संजय की राजनीति को करीब से जानने वालों का कहना है कि संजय के आगे पीछे घूमने वालों की इतनी औकात नहीं है कि वे संजय को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा सकें। एक तरह से संजय के करीबियों का अस्तित्व एक गुलाम से ज्यादा नहीं होता और गुलामों की न तो कोई स्वतंत्र विचारधारा होती है न ही कोई भाषा।
मतलब साफ है कि जिन लोगों ने गत दिवस संजय का साथ छोड़ा है उनका खुद का कोई राजनीतिक वजूद नहीं है। उनके जाने से संजय की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हां यह कहा जा सकता है कि वे जहां भी रहेंगे वहां भी संजय की गुलामियत से मुक्त नहीं हो पायेंगे।
रही बात भाजपा को झटका लगने की तो जो भाजपा के कभी थे ही नहीं तो उन अस्तित्वहीनों के जाने से भाजपा की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है और वह भी तब जब उन गुलामों का मालिक उनके पाले में है।
हां भाजपा को जरूर चंद रोज पहले जबरदस्त झटका लगा है जब धुव्र प्रताप सिंह और शंकर महतो जैसे कद्दावर निखालिस भाजपाईयों ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन थी।
कांग्रेस का खुश होना जायज ही है वह भी तब जब कांग्रेस मुफलिसी के दौर में जी रही हो।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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