पप्पा पास - राजा फेल , चटकारे लेकर पढ़ा जा रहा है वायरल पत्र
कटनी। जिले के पूर्व भाजपाई विधायकों की उपेक्षात्मक पीड़ा के संबंध में प्रकाशित खबर के साथ भाजपा जिलाध्यक्ष कटनी दीपक सोनी के कथन पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए व्यक्तिशः दीपक सोनी को लिखी चिट्ठी के साथ ही 14 अप्रैल 2019 को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह को लिखे गए जिस पत्र को पूर्व विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार ने सोशल मीडिया में वायरल किया है उसने ही भाजपा के कहे को कि "गिरिराज किशोर पोद्दार भाजपा से निष्कासित किये गये हैं" पर मोहर लगा दी है।
सू श्री पाठकों का मानना है कि यदि थोड़ी सी भी अक्ल का उपयोग करते हुए गिरिराज ने अपने ही पत्र का छिद्रान्वेषण कर लिया होता तो भद्द पिटने से बचा जा सकता था। मगर यह स्वाभाविक ही है कि जब व्यक्ति जबरजंगई पर उतर आता है तो ऐसा ही होता है।
अगर बड़े बुजुर्गों की बात मानकर "अध गागर छलकत जाय" वाली हालत को छोड़ रहीम की इस बात को आत्मसात कर लिया जाय तो जग हंसाई से बचा जा सकता है।
रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन का फेर
जब नीके दिन आईंहैं बनत न लगिहैं देर
गिरिराज किशोर द्वारा 14 अप्रैल 2019 को तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह को लिखे पत्र नजर डालें तो विषय के अलावा कहीं भी त्याग पत्र शब्द का उल्लेख नहीं है। भीतरी इबारत में लिखा गया है कि खजुराहो लोकसभा की प्रत्याशी चयन प्रक्रिया से आहत और क्षुब्ध होकर संगठन द्वारा दिए गए समस्त पद और दायित्व से स्वयं को पृथक करता हूं। पत्र में कहीं भी नहीं लिखा गया है कि मैं भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं।
राजनीति के जानकारों का मत है कि गिरिराज ने स्वमेव खुद को पार्टी द्वारा दिए गए पद और दायित्व से पृथक किया था न कि पार्टी ने। पार्टी द्वारा दिए गए पद और दायित्व से खुद को खुद से पृथक करना और पार्टी द्वारा पृथक किए जाने में बहुत अंतर होता है। किसी को भी पद और दायित्व से पृथक करने का अंतिम अधिकार पद प्रदाता के पास होता है न कि पद गृहीता के पास। जब तक पद प्रदाता द्वारा दायित्व मुक्ति पर अपनी अंतिम मोहर न लगा दे तब तक पद गृहीता के स्वमेव दायित्व मुक्ति का एलान अर्थहीन ही होता है।
राजनीतिक दलों की भीतरी कार्रवाई पर बारीक नजर रखने वालों की माने तो जब गिरिराज ने अपनी चिट्ठी पार्टी के पाले में डाल दी तो फिर अंतिम फैसला लेने का काम पार्टी का था। पार्टी हाईकमान को पार्टी प्रत्याशी विष्णुदत्त शर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे पार्टी सदस्य गिरिराज किशोर पोद्दार पर कार्रवाई करते हुए उसे पार्टी से निष्कासित किया जाना चाहिए था और पार्टी ने वैसा ही कर दिया। इसे ही विधि सम्मत कार्रवाई कहा जाएगा।
तो फिर अगर जिलाध्यक्ष दीपक सोनी ने यह कहा कि "पूर्व विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार तो लोकसभा चुनाव के समय से पार्टी से निष्कासित हैं" तो क्या गलत कहा है। राजनीति का ककहरा पढ़ने वालों का भी कहना है कि सोनी का कथन किसी भी कोने से दुराचरण की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
जनता का ऐसा मानना है कि सारी उछलकूद सुर्खियों में बने रहने के लिए की जा रही है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि पार्टी की लोकप्रियता और कार्यकर्ताओं के समर्पण को अपनी लोकप्रियता का मुगालता पालने वालों को अगर अपनी लोकप्रियता का आईना ही देखना हो तो ऐसे तमाम जोधा एकबार निर्दलीय प्रत्याशी बनकर लोकसभा - विधानसभा का चुनाव तो छोडिए पंच - वार्ड मेम्बरी का चुनाव लड़कर देख लें तो उनको अपनी लोकप्रियता का पता चल जाएगा।
हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े-लिखे को फारसी क्या _चार महीने बाद विधानसभा चुनाव होने ही वाले हैं उतर आओ ताल ठोंकते हुए निर्दलीय प्रत्याशी बन चुनावी दंगल में पता चल जायेगा असली धम्मन का।_
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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