बुरे काम का बुरा नतीजा क्यों भाई चाचा हां भतीजा


टनी। सिविल सर्जन डॉक्टर यशवंत वर्मा और उनके भतीजे अर्जित वर्मा के कारनामें जिस तरह शहर की गली गलियारों में चर्चा में बने हुए है उसे देखने और सुनने के बाद एकाएक पुरानी फिल्म में फिल्माया गया एक गाना मेरे जेहन में कोंदने लगा। उस गाने के बोल थे 'बुरे काम का बुरा नतीजा क्यों भाई चाचा हां भतीजा' इस गाने पर गौर किया जाए तो इन दोनों चाचा भतीजे पर सटीक बैठेता है। इनके कारनामे को देखते हुए लगता है जैसे यह गीत इन्ही चाचा भतीजे पर फिल्माया गया हो। खैर आपको आगे बताते चले कि जिला अस्पताल में सिविल सर्जन की कुर्सी में तीन साल से जमे चाचा डॉक्टर यशवंत वर्मा ने अपने पद में रहते हुए भ्रष्टाचार की इबादत लिख कर सुर्खियों में बने हुए है। इसको लेकर दो दिन पहले एक समाज सेवक ने कुछ लोगों को साथ लेकर सिविल सर्जन डॉ यशवंत वर्मा के भ्रष्टाचार को शब्दों की चाशनी में पिरोकर नारे का अमलीजामा पहनाने की कोशिश की थी। नारे के बोल भी ऐसे की स्वाभिमानी व्यक्ति का सिर शर्म से झुक जाए।आरोप लगाने वाले समाज सेवक की बातों पर यदि भरोसा किया जाये तो उसे देखकर सहज ही समझा जा सकता है कि इन महाशय को पैसों की कितनी भूख है। जिस तरह से डॉक्टर वर्मा अपने पद की गरिमा को तारतार करके पैसों की भूख मिटाने का कुत्सित प्रयास लगातार कर रहे है इससे धरती का भगवान समझने वाले मासूम जनता का भरोसा छिन्न-भिन्न हो रहा है। ऐसी दशा में ईमानदार डॉक्टर पर से भी लोगों का विश्वास डगमगा जाएगा। क्योंकि तालाब तो एक मछली खराब करती है लेकिन बदनाम सभी होती है। उसी तरह पूरा स्वास्थ्य महकमा भी बदनाम हो रहा है। स्वास्थ्य पेशे के तालाब को गंदा करने वाली उन्ही में से एक मछली डॉक्टर वर्मा जैसे भी है जो अब भी अपने पद पर जमे हुए है। उसके बावजूद भी क्यों कार्रवाई करने में शासन प्रशासन का कलेजा कांप रहा है। 

 संगत का असर भी एक दिन रंग दिखाता है

इंसान जिस तरह की संगत में रहता है उसका एक न एक दिन रंग जरूर दिखाई देता है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सिविल सर्जन डॉक्टर यशवंत वर्मा का असर भतीजे के सिर चढ़कर बोल रहा है। आपको बता दे कि सिविल सर्जन डॉक्टर यशवंत वर्मा का भतीजा और डॉक्टर दिलीप वर्मा का 30 वर्षीय पुत्र अर्जित वर्मा कम समय में करोड़पति बनने की होड़ में आज उसे जेल की रोटी तोड़ना पड़ रहा है। 

गौरतलब है कि 28 दिन पूर्व जिला अस्पताल में कटनी कोतवाली में कटनी समेत अन्य जगह के लोग अर्जित वर्मा की ठगी का शिकार होने पर लिखित शिकायत दी गई थी। जिसको लेकर कार्रवाई करने के नाम पर पुलिस द्वारा काफी दिनों तक टाइम पास करते हुए आरोपी अर्जित वर्मा को बचाने का प्रयास किया जाता रहा है। मामला तूल पकड़ता देख पुलिस ऐक्टिव हुई और ठग अर्जित वर्मा को पुलिस ने घर से दबोच लिया। आपको बता दे कि स्वास्थ्य मंत्री के तथाकथित लैटर पैड के बल पर मेटरनिटी पैड की सप्लाई और सरकारी टेंडर मिलने की बात पर लगभग आधा दर्जन लोगों से 1करोड़ 39 लाख की ठगी की गई थी। और यह खबर जग जाहिर होने के बाद भी कार्रवाई देर से होने पर पुलिस पर भी कई तरह के सवाल खड़े होना लाजमी है। जग जाहिर कहना भी उचित होगा क्योंकि मामला स्वास्थ्य मंत्री से जुड़ा हुआ होने के कारण और भी ज्यादा हाईप्रोफाइल हो गया था। खैर देर आये दुरुस्त आये वाली भी कहावत पुलिस पर ठीक ठाक बैठती है।

 सबसे बड़ी बात तो यह है कि महज 30 साल का अर्जित वर्मा इतना बड़ा कदम अकेले तो नहीं उठा सकता। करोड़ो की ठगी वह भी स्वास्थ्य मंत्री के फर्जी लेटर पैड का उपयोग करते हुए या उपयोग करवाने वाला अर्जित वर्मा के पीछे कौन है इसका मास्टर माइंड। इतनी कम उम्र का युवक इतनी बड़ी ठगी करने की हिम्मत कर पाना समझ से परे है। पुलिस ने भी अपनी जांच में एक बात साफ कर दी कि स्वास्थ्य मंत्री का अर्जित वर्मा द्वारा इस्तेमाल किया गया लैटर पेड पूरी तरह फर्जी साबित हुआ। जिसकी जांच के बाद कोतवाली पुलिस ने माधवनगर थाना क्षेत्र के समदडिया सिटी से अर्जित वर्मा को घर से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की। पुलिस ने आरोपी अर्जित वर्मा पर अपराध क्रमांक 351/ 2023 धारा 420, 467,468,471 IPC के तहत मामला कायम कर न्यायालय में पेश किया जहां से अर्जित वर्मा को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। इसी तरह पुलिस यदि इस मामले की जांच और भी बारीकी से करे तो और भी कई खुलासे होने से इंकार नहीं किया जा सकता। हो सकता है अर्जित वर्मा इस ठगी का मात्र एक मोहरा हो और इसका सूत्रधार एवं मास्टरमाइंड अस्पताल का ही कोई शातिर निकले। आपको बता दे कि 1 करोड़ 39 लाख का जो मामला उजागर हुआ है ये तो महज ऊंट के मुंह में जीरा से ज्यादा कुछ भी नहीं है। जिस तरह कोतवाली पुलिस ने अपनी सोई हुई ऊर्जा को जाग्रित करके अर्जित वर्मा को बेनकाब किया है इसी कड़ी को साथ लेकर और खोजबीन में जुटने का प्रयास करे तो सम्भवतः भ्रष्टाचार करने वालों का एक बड़ा नेटवर्क निकलकर सामने आ सकता है। सूत्रों पर भरोसा करें तो स्वास्थ्य मंत्री के फर्जी लैटर पैड का उपयोग करने और करवाने में पर्दे के पीछे सफेद पोशों के हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि इतने बड़े षडयंत्र के पीछे एक मामूली सा अर्जित वर्मा के अकेले का हाथ होना संभव नहीं है। सघन जांच के बाद ही तमाम भ्रष्टाचारी पर्दे के पीछे से निकल कर सामने आएंगे और फिर हो सकता है सफेद पोशाक में अपने आप को उजला दिखाने वाले राजनेता पर भी भ्रष्टाचार की स्याही नजर आये और इनके पकड़े जाने से जेल में चार चांद लग जाये।

        रवि कुमार गुप्ता - संपादक ( जन आवाज )         

                   

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