या इलाही ए माजरा क्या है

कटनी। विधानसभा चुनाव के चंद महीने पहले धर्म, संस्कृति और परम्परा की त्रिवेणी के नाम पर आयोजित किए जा रहे विजयराघवगढ़ महोत्सव 2023 को लेकर जिले की सीमा से सटे दूसरे जिलों में भी कई तरह की चर्चाएं चल रही है।

तमाम तरह की मीडिया खबरों में कहा जा रहा है कि तकरीबन सैकडों एकड़ शासकीय भूमि को समतल किया जा रहा है। अनेक प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि जमीन को समतल करने के लिए बाधा बन रहे हजारों हरे-भरे वृक्षों का कत्लेआम किया जा रहा है।

उस क्षेत्र पर आधुनिक अलौकिक आध्यात्मिक - धार्मिक तीर्थ स्थल बनाया जायेगा। आधुनिक इसलिए कि वहां पर व्हीआईपी रेस्ट हाउस के साथ ही हैलीपैड भी होगा। रिसार्ट भी बनेगा तो सर्व सुविधा युक्त रेस्टोरेंट भी खोला जायेगा। धर्मशाला के साथ - साथ बारात घर, मैरिज गार्डन, 100 कमरों के साथ ही संतों को रुकने के लिए कुटिया भी बनाई जायेगी।

इतना ही नहीं महानदी और कटनी नदी के संगम पर क्रूज के साथ ही रोपवे भी चलाये जाने की बातें कही जा रही है। आने वाले संभावित पर्यटकों को लुभाने के लिए बडे-बडे लान बनाकर उसमें लाईट शो, लेजर शो, साउंड शो जैसे कुछ मनोरंजक कार्यक्रम भी दिखाये जाने के सपने संजोए जा रहे हैं।

क्षेत्र के राजा पहाड़ पर भगवान परशुराम की अष्टधातु वाली 108 फुटी गगनचुंबी प्रतिमा स्थापित किए जाने की भी बातें कही जा रही है।

अगर इतना सब कुछ होने जा रहा है तो कहा जा सकता है कि विजयराघवगढ़ के बगल में सरकारी जमीन पर एक नया शहर बसाने की तैयारी की जा रही है।

इन सब चर्चाओं के बीच जो चर्चा चारों खूंट दबे स्वर सबसे ज्यादा चर्चित हो रही है वह है कि कहीं यह सब कुछ धर्म - संस्कृति - परम्परा की त्रिवेणी के नाम पर धनबलियों - बाहुबलियों द्वारा शासकीय जमीन पर कब्जा करने की कुत्सित मानसिकता तो नहीं है ?

धनबलियों - बाहुबलियों द्वारा विगत कई सालों से जिले के कई अंचलों में अस्पताल, धर्मशाला, स्कूल, रिसार्ट, जंगली जानवरों आदि के नाम पर सरकारी जमीनों पर कब्जा किया गया है। इसलिए यदि विजयराघवगढ़ में धार्मिकता के नाम पर सरकारी जमीन हडपने के लिए योजनाएं बनाकर शासन और जनता की आंखों में धूल झोंकने की भी कोशिश हो सकती है।

वोटों के ध्रुवीकरण ने रोक रखी हैं सांसें

समझा जा सकता है कि आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में धर्म - समुदाय विशेष के बीच होने वाले वोटीय ध्रुवीकरण ने जहां शासन - प्रशासन को सारी शंकाओं - आशंकाओं को नजरअंदाज करने के लिए मजबूर किया हुआ है तो वहीं विपक्षी दलों की विवशता उनका खामोश रह जाना बनकर रह गई है।वरना क्या कारण हो सकता है कि कुछ महीने पूर्व अवैध रेत खनन के खिलाफ गांव - गांव चौपाल लगाकर जनजागरण की अलख जगाने वाले तथा चंद दिन पहले सड़क पर उतर कर मुर्दाबादी गगनभेदी नारे गुंजायमान करने वाले परिदृश्य से अदृश्य नजर आ रहे हैं।

अश्वनी बड़गैया, अधिवक्ता ( स्वतंत्र पत्रकार )

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