हाय रे हाय ये कुर्सी

सत्ता की खातिर कुख्यातों की कीमत करोड़ों, नारी सम्मान की आड़ में वोटों का झाड़ काटने का सौदा हजार में

कटनी। सत्ता मिलने के 55 - 56 महीने तक महिलाओं की अस्मिता को रौंदते रहने और चुनाव के 2 - 3 महीने पहले महिलाओं का सम्मान करने के लिए लोकलुभावन योजनाएं लांच कर मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाना राजनीतिक पार्टियों का शगल बन गया है।

बलात्कार, यौन शोषण, हत्या, अपहरण सहित तमाम गंभीर आपराधिक नगीनों से सुसज्जित लोगों को माननीय बनाने वाले राजनीतिक दलों द्वारा एकबार फिर चुनाव की दहलीज पर खड़े होकर सत्ता वरण के लिए महिला सम्मान योजना लांच की जा रही है।

सत्ता में बैठे और सत्ता के बैठने को लालायित दलों ने अब तो महिला सम्मान की कीमत भी लगानी शुरू कर दी है। कोई पार्टी महिला सम्मान की कीमत दो हजार - ढाई हजार रुपैया लगा रही है तो कोई दल हजार - पन्द्रह सौ आंक रहा है।

डेढ़ दशक से सत्ता की चासनी चाट रही पार्टी के मुखिया द्वारा महिलाओं को एकबार फिर सम्मान देने वाले वादे किए जा रहे हैं जबकि पहले किये गये वादे चुनावी जुमले ही साबित हुए हैं और क्या गारंटी है कि अब किए जा रहे वादे चुनावी जुमले साबित नहीं होंगे।

पिछली बार सत्ता मिलने के बावजूद अपने ही दोपायों के बिक जाने से सत्ताच्युत हो चुकी पार्टी द्वारा भी खरबूजे को देखकर खरबूजे के रंग बदलने की माफिक महिला सम्मान योजना लांच की गई है। जिसे प्रदेश भर में एक साथ प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर प्रचार प्रसार किया गया।

कुछ जगह तो पार्टी पदाधिकारियों की कुर्सी चिपको महत्वाकांक्षा ने बड़ी विषम और शर्मनाक स्थिति निर्मित करने में चूक नहीं की। जो मीडिया कर्मियों के कैमरे में कैद होकर सुर्खियां बटोर रही हैं।

ऐसा ही कुछ नजारा कटनी में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया कर्मियों के कैमरे में कैद होकर वायरल हो रहा है। कैमरा साफ - साफ दिखा रहा है कि जिले का एकमात्र विधायक बड़ी मासूमियत के साथ खुद को बैठने के लिए एक अदद खाली कुर्सी तलाश रहा है और पहली लाइन में कुर्सी से चिपके ग्रामीण जिलाध्यक्ष और हाल ही में नवाजे गए शहर कार्यकारी जिलाध्यक्ष खीसें निपोरते नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं ग्रामीण जिलाध्यक्ष तो बाकायदा विधायक को अपनी गोद में बैठाते हुए भी दिखाई दे रहे हैं।

अब अगर विपक्षी पार्टी ये कहने लगे कि जो लोग अपने विधायक को सम्मान नहीं दे सकते वे खुदा न खास्ता सत्ता में आ गये तो महिलाओं को सम्मान क्या खाक देंगे तो इसमें गलत क्या होगा ?

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता (स्वतंत्र पत्रकार)

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