क्यों तलाशते हैं जिलेवासी हर कप्तान में गौरव तिवारी सा जिगर

कटनी। कडवी सच्चाई यही है कि जब तक अनरजिस्टर्ड गुंडों के सिर पर रजिस्टर्ड गुंडों का वरदहस्त नहीं होगा गुंडागर्दी नामुमकिन है।

गुंडागर्दी का मतलब केवल किसी की मां - बहन करना, चाकूबाजी, बमबाजी, पिस्टलबाजी भर नहीं है, गुंडागर्दी अपने-आप में हर तरह की माफियागिरी को समेटे हुए है।

कटनी जिला भू-माफियागिरी, रेत माफियागिरी, खनिज माफियागिरी, सट्टा माफियागिरी आदि के मामले में राज्य और देश की सीमा पार भी अपनी पहचान बनाता जा रहा है।

और यह सब टुटपुंजहे गुंडों के बस की बात नहीं है। मतलब बहुत साफ है कि इस तरह के कारनामों को अंजाम देने वाले लोग राजनैतिक और प्रशासनिक सरपरस्ती का कवच - कुंडल पहने हुए हैं।

नये नवेले पुलिस कप्तान की आमद पर जन भावनाओं को सामने रखकर खरी - अखरी ने कछ इस तरह का सवाल किया था कि "क्या नवागत कप्तान बिदा लेते कप्तान के द्वारा फैलाये गए रायते को समेट कर साफ कर पायेगा"।

और यह सवाल जनभावनाओ के रुप में यूं कर  सामने आया कि "जब पुलिस का मुखिया माफियाओं के संरक्षणदाता सफेदपोशों की पैरवी करते हुए नजर आयेगा तो क्यों कर पुलिस का खौफ खायेंगे आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले।

नये नवेले पुलिस कप्तान का स्वागत गुंडों ने अपने चिरपरिचित अंदाज में ऐन त्यौहार के पर बमबाजी और गोलीबारी कर के किया। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि इस तरह का कारनामा कर पुलिस को खुली चुनौती देने की कोशिश की गई है। अभी दो दिन पहले एक महिला वकील के घर पर भी फायरिंग और बमबाजी की गई। जिसके सी सी टीवी फुटेज सोशल मीडिया पर भी वायरल किए गए हैं। महिला वकील ने तो पुलिस पर एफआईआर दर्ज नहीं करने का आरोप भी लगाया है।

शहर में देर रात होने वाली पुलिस गस्ती भी लम्बे समय से गदहे के सींग की तरह नदारत नजर आ रही है। दहशतगर्दी में सांस ले रहे लोगों का तो कहना है कि रंगनाथ थाना क्षेत्र को अशांति प्रिय घोषित कर दिया जाय। खरी - अखरी का मानना है कि क्यों न कटनी सहित पूरे जिले को ही अशांति प्रिय घोषित कर दिया जाना चाहिए।

विजयराघवगढ़ और बडवारा विधानसभा क्षेत्र में तो रेत और खनिज माफियाओं के खौफ के चर्चे आये दिन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं।। यदा-कदा पुलिस की रस्म अदायगी कार्रवाई से माफियाओं की सेहत पर कोई फर्क पडता दिखाई नहीं देता है। क्षेत्र में तो जनचर्चा यहां तक सुनाई देती है कि इन सारे कारोबारियों को पुलिस और जनप्रतिनिधियों का संरक्षण मिला हुआ है। इस तरह की जनघर्चाओं का खंडन न तो पुलिस ने किया और न ही जनप्रतिनिधियों ने।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता, ( स्वतंत्र पत्रकार )

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