कैसे जिंदा रहेगी तहजीब मेरे शहर में पाठशाला से ज्यादा तो मधुशाला हैं शहर में !

जन आवाज/ कटनी। जिला जन अधिकार मंच द्वारा कटनी में शासकीय मेडिकल कॉलेज खोले जाने की मांग को लेकर किए जा रहे जन जागरण अभियान ने शहर के आम आदमी को कितना जाग्रत किया है भले ही इसका सटीक अंदाजा संभव ना हो मगर सोशल मीडिया पर जिस तरह की पोस्टें वायरल की जा रही है वे तो यही आभास दे रही है कि भाजपा और उसके नेताओं को छोड़कर बाकी दलों और उनके नेताओं को अपवी - अपनी नेतागिरी चमकाने का अवसर और मंच मिल रहा है।

कटनी में शासकीय मेडिकल कॉलेज सहित इंजीनियरिंग, नर्सिंग काॅलेज की मांग को लेकर किए जा रहे जनान्दोलन से भाजपा और उसके नेताओं की पेशानी में शिकन तक का ना उभरना यही बताता है कि भाजपा और उसके नेता इस आन्दोलन को अपने ठेंगे में रख कर चल रहे हैं।

कटनी नदी का दसियों बाद भी अव्यवस्थित निर्माण, कस्बाई नगरों से भी गया बीता डेढ़ फुटिया ओवरब्रिज, अतिक्रमण हटाकर सडकों के चौड़ीकरण की नामर्दगी, माफियाओं के आगे शासन - प्रशासन का दण्डवत प्रणाम, जायज मांगों को उठाने में भी भैया - भाभी की नाराजगी वाली कस्बाई सोच यही तो बताती हैं कि जनता गुलाम है और शहर विकास पर भारी है दलगत राजनीति।

उनका मानना यही हो सकता है कि कटनी में सारे राजनीतिक दलों की हालत अनाथों की माफिक है। उनका जनाधार लगभग फिशर पर है। उनके पास एक अनार सौ बीमार के माफिक मारामारी मची हुई है। हर किसी का ईगो सातवें आसमान पर है। हर किसी नेता का हाथ अपनी ही पार्टी के दूसरे नेता के नाडे को पकडे हुए है।

तो फिर जनता के पास भाजपा को चुनने के अलावा कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं। इसलिए वह झख मारकर भाजपा को चुनेगी भले ही भाजपा और उसके नेता जनहितैषी मांग को दरकिनार कर छाती में मूंग दलें। वैसे भाजपाईयों का ऐसा सोचना गलत भी नहीं है कारण उन्हें मालूम है कि वोटर शराब - कबाब लेकर वोट देता है और अन्य दलों की तुलना में भाजपा वोट खरीदने में ज्यादा सक्षम दिखाई देती है।

रही शहर में उच्च शिक्षा संस्थानों के स्थापना की बात तो जिस शहर के वाशिंदे दम तोड़ते शिक्षा संस्थानों को बचाने के लिए मृतप्राय पडे हुए हैं उनसे नये शिक्षा संस्थानों को खोलने वास्ते आन्दोलन करने के लिए आगे आने का मुगालता पालना शुभ संकेत कतई नहीं कहा जा सकता।

हकीकत में यह शहर व्यापारिक शहर है। हर कोई "दो दूनी बीस" बनाये में व्यस्त है। इक्का - दुक्का शहर बंद को छोड़ दिया जाय तो हर बंद आगे पाट - पीछे  सपाट ही रहा है। छात्र आन्दोलन की कमर सौरभ - गौरव कांड में जिस तरह से तोडी गई थी उसकी टीस आज भी चमक उठती है। आज की स्थिति में कोई भी छात्र संगठन दलगत राजनीति से हटकर शहर विकासनीति को लेकर आन्दोलन करने के मामले में थर्डजेंडर ही दिखाई देते हैं।

जरा पीछे झांक लें तो भाजपाई सहर विकास की सोच समझ में आ जायेगी। जब "कटनी जिला बनाओ" को लेकर चलाये जा रहे जनान्दोलन को कुचलने के लिए शहर से शिक्षा मंत्री रहे व्यक्ति के ईशारे पर पत्रकारों पर बर्बरता पूर्वक लाठियां बरसाई गई थी। बेशरम राजनीतिज्ञों को इससे कोई लेना-देना नहीं है कि "जहालत में अपनी गिरेबान को इतना मैला ना कर ऐ नादान - कि वक्त जब पलटे तो अपनों से नजर मिलाने में शर्म ना महसूस हो"।

कुछ का यह कहना सच है कि कटनी की जनता ने अपने मताधिकार की ताकत का अहसास कराते हुए "हिजड़े" को अपना जनप्रतिनिधि चुना है मगर उससे भी बड़ी हकीकत यह है कि जिस किसी को भी जनप्रतिनिधि चुना गया है वह" "हिजड़ा" बनकर ही सामने आया है।

बहरहाल जिला जन अधिकार मंच को राजनीतिक दलों की कठपुतली बनने से बचना चाहिए तभी शहर हितैषी जनान्दोलन की सार्थकता होगी अन्यथा तो फिर........... ।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता,

स्वतंत्र पत्रकार

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